नदी निकलती है पर्वत से, मैदानों में बहती है।
और अंत में मिल सागर से, एक कहानी कहती है।
बचपन में छोटी थी पर मैं, बड़े वेग से बहती थी।
आँधी-तूफाँ, बाढ़-बवंडर, सब कुछ हँसकर सहती थी।
मैदानों में आकर मैंने, सेवा का संकल्प लिया।
और बना जैसे भी मुझसे, मानव का उपकार किया।
अंत समय में बचा शेष जो, सागर को उपहार दिया
सब कुछ अर्पित करके अपने, जीवन को साकार किया।
कविता का भावार्थ लिखिए|
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ID = 801 720 6270 Pas = 1234 only F not M...only f...
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