Hindi, asked by maltisiroliya, 2 months ago

नद्रियो मिालयीस्या बताया गया ​

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Answered by akanksharatri
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Answer:

मुझसे कहें, साथ ही इसके इस बात पर भी ध्यान रहे कि यदि आपकी नीयत अच्छी रही तो आपका कसूर क्षमा कराने के लिए मैं उद्योग करूँगा, नहीं तो राजा वीरेन्द्रसिंह के विषय में मुझसे मदद पाने की आशा आप कदापि न रखें!

दारोगा―क्या आप भैरोंसिंह से मिलकर तिलिस्मी खंजर उसके हवाले करेंगे?

इन्द्रदेव―क्या आपको इसमें शक है? अफसोस!

दारोगा ने फिर कुछ न पूछा और चुपचाप वहाँ से उठकर अपने कमरे में चला गया। मायारानी यह जानने के लिए कि इन्द्रदेव में और दारोगा में क्या बातें हुई, पहले ही से दारोगा के कमरे में बैठी हुई थी। जब दारोगा लम्बी साँस लेकर बैठ गया तो उसने पूछा―

मायारानी―कहिए, क्या हुआ? कम्बख्त नागर से तो खूब बदला लिया गया।

दारोगा―ठीक है, मगर इससे यह न समझना चाहिए कि इन्द्रदेव हमारी मदद करेगा।

मायारानी―(चौंककर) तो क्या उसने इशारे में कुछ इनकार किया?

दारोगा―इशारे में नहीं बल्कि साफ-साफ जवाब दे दिया।

मायारानी―तब तो वह बड़ा ही डरपोक निकला! अच्छा, कहिये तो क्या-क्या बातें हुई?

इन्द्रदेव और दारोगा में जो कुछ बातें हुई थीं, इस समय उसने मायारानी से साफ-साफ कह दीं और भैरोंसिंह की चिट्ठी का हाल भी सुना दिया।

मायारानी―(ऊँची साँस लेकर और यह सोचकर कि इन्द्रदेव की बातों में पड़ कर दारोगा कहीं मेरा भी साथ न छोड़ दे) अफसोस, इन्द्रदेव कुछ भी न निकला! वह निरा डरपोक और कम-हिम्मत है, घर बैठे-बैठे खाना-पीना और सो रहना जानता है, उद्योग की कदर कुछ भी नहीं जानता। ऐसा मनुष्या दुनिया में क्या खाक नाम और इज्जत पैदा कर सकता है? मगर हम लोग ऐसे सुस्त और भौंडी किस्मत पर भरोसा करके चुप बैठे रहने वाले नहीं हैं। हम लोग उनमें से हैं जो गरीब और लाचार होकर भी और चक्रवर्ती होने के लिए कृतकार्य न होने पर भी उद्योग किये ही जाते हैं और अन्त में सफल-मनोरथ होकर ही पीछा छोड़ते हैं। जरा गौर तो कीजिये और सोचिये तो सही कि मैं कौन थी और उद्योग ने मुझे कहाँ पहुँचा दिया? तो क्या ऐसे समय में जब किसी कारण से दुश्मन हम पर बलवान हो गया, उद्योग को तिलांजलि दे बैठना उचित होगा? नहीं, कदापि नहीं! क्या हुआ यदि इन्द्रदेव डरपोक और कम-हिम्मत निकला, मैं तो हिम्मत हारने वाली नहीं हूँ और न आप ऐसे हैं। देखिए तो सही, मैं क्या हिम्मत करती हूँ और दुश्मनों को कैसा नाच नचाती हूँ। आप मेरी और अपनी हिम्मत पर भरोसा करें और इन्द्रदेव की आशा छोड़ मौका देखकर चुपचाप यहाँ से निकल चलें।

अफसोस! दुनिया में अच्छी नसीहत का असर बहुत कम होता है और बुरी सोहबत की बुरी शिक्षा शीघ्र अपना असर करके मनुष्य को बुराई के शिकंजे में फँसाकर उनका सत्यानाश कर डालती है। मगर यह बात उन लोगों के लिए नहीं है जिनके दिमाग में सोचने-समझने और गौर करने की ताकत है। सन्तति के इस बयान में दोनों

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