नदिया जल कोयला भई, समुन्दर लागी आग।मच्छी बिरछा चढ़ि गई, उठ कबीरा जाग।।तिल समान तो गाय है, बछड़ा नौ-नौ हाथ।मटकी भरि-भरि दुहि लिया, पूँछ अठारह हाथ।। bikshet kariya
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नदिया जल कोयला भई, समुन्दर लागी आग।
मच्छी बिरछा चढ़ि गई, उठ कबीरा जाग।।
तिल समान तो गाय है, बछड़ा नौ-नौ हाथ।
मटकी भरि-भरि दुहि लिया, पूँछ अठारह हाथ।।
व्याख्या ⦂ यह पंक्तियां कबीर दास द्वारा रचित उलटबांसी की हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कबीर ने रहस्यवाद के माध्यम से आत्मा और परमात्मा को जोड़ा है।
कबीरदास उलटबांसी अर्थात उल्टी बात करते हुए कहते हैं कि इस हृदय में जीवन रूपी जो नदी बहती है, वह सूख गई है। इस ज्ञान रूपी समुद्र में विषय व मोह-माया को आग लग गई है। मछली रूपी आत्मा शरीर से निकल गई है। इस संसार में जो माया रूपी जो गाय है, वो है तो बड़ी छोटी लेकिन उसका बछड़ा बहुत ही बड़ा है। इस माया रूपी गाय से मटकी में भर-भर कर दूध तो दूह लिया यानि इस माया के जाल में फंसकर अपनी कामनाओं की पूर्ति तो कर ली लेकिन वही कामना रूपी पूछ अब अठारह हाथ लंबी हो गयी है। ये माया भ्रमजाल में उलझाये रखती है, और असत्य होते हुए भी सत्य का भ्रम बनाये रखती है। ये हमारी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति तो करती रहती है, फिर भी हमारी कामना हमेशा अतृप्त रहती हैं।
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