नदियों के विषाक्त होने के क्या - क्या कारण
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दुनियाभर में बढ़ रही पानी की किल्लत के बीच जल स्रोतों में बढ़ते प्रदूषण के कारण विशेषज्ञों को इस बात का भारी अंदेशा है कि कहीं हमारी नदियाँ विषाक्त न हो जाएँ। उनकी राय में जल प्रबंधन में पारंपरिक विवेक और तकनीक तथा जनसहयोग जोड़े बिना कुछ ठोस हासिल नहीं किया जा सकता।
जाने-माने गाँधीवादी और जल-जंगल-जमीन मुद्दे पर आंदोलन चला रहे राजगोपाल टीवी ने कहा कि हमें नदियों और पानी के साथ खिलवाड़ तुरंत बंद करना होगा अन्यथा हमारी नदियाँ जो अभी तक हमें पानी के रूप में जीवन प्रदान कर रही हैं, भविष्य में जहर उगलना शुरू कर देंगी।
उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया नदियों और पानी के मामले में काफी समृद्ध क्षेत्र माना जाता है लेकिन यहाँ पानी को लेकर इतनी हायतौबा क्यों है, यह एक विचारणीय विषय है।
राजगोपाल ने कहा कि पानी पर सरकार के एकाधिकार को खत्म करना होगा। पानी के क्षेत्र में निजी कंपनियों ने स्थिति को और बिगाड़ा है क्योंकि बहुरराष्ट्रीय कंपनियों ने जमीन के नीचे उपलब्ध जल का अंधाधुंध इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
राजगोपाल ने कहा कि यदि जल संबंधी मुद्दे को सही ढंग से नहीं सुलझाया गया तो विशेषज्ञों के अनुसार अगला विश्वयुद्ध पेट्रोल के लिए नहीं पानी के लिए होगा। गाँधीजी कहा करते थे कि प्रकृति को समझो, उसके साथ चलो। उसे गुलाम बनाने की कोशिश मत करो।
राजगोपाल ने सुझाव दिया कि हमें पानी के प्रबंधन के लिए राजस्थान जैसे क्षेत्रों तथा देश के अन्य स्थानों में इस्तेमाल किए जाने वाले पारंपरिक विवेक और तकनीक को अपनाना होगा। पानी की कमी का समाधान कोई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ नहीं दे सकते। इस मामले में हमें जन सहयोग और जनभागीदारी बढ़ानी होगी।
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