नदियों से होने वाले नुकसान। in 10 lines
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के बनने से पहले 1951 तक भारत में एक करोड़ हेक्टेयर बाढ़ क्षेत्र था। बने बांधों के बाद अब 2013 में बाढ़ क्षेत्र बढ़कर सात करोड़ हेक्टेयर पहुंचने का आंकड़ा है। अकेले गुजरात में बीते तीन दशक के भीतर बाढ़ क्षेत्र में डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। नदी जोड़ परियोजना में 400 बांध प्रस्तावित हैं। इनसे बाढ़ का क्षेत्रफल और बढ़ेगा।
2. गुजरात और महाराष्ट्र ज्यादा सिंचाई बांधों वाले दो बड़े राज्य हैं। बांधों के बनने के बाद से सबसे ज्यादा बांधों वाले महाराष्ट्र सूखा बढ़ा है। छोटे तालाबों, एनीकट, चेकडैम के हिस्से का पैसा सरदार सरोवर बांध में लग गया। परिणामस्वरूप गुजरात के 550 छोटे बांध संरक्षण के अभाव में सूखे पड़े हैं। तीन दशक में सूखा प्रभावित जिलों की संख्या 74 से बढ़कर 100 हुई है। सैंड्रप का अध्ययन यह बताता है कि देश में सुखाड़ के इलाके और बढ़ेंगे।
3. बांधों के कारण भारत में अब तक चार करोड़ लोगों के विस्थापित होने का आंकड़ा है। नदी जोड़ के कारण 2700 लाख मवेशियों के विस्थापन का अनुमान है। डेल्टा पर होने वाले दुष्प्रभाव बांग्लादेश और बंगाल में ही करीब 130 लाख लोग विस्थापित होंगे। जाहिर है कि नदी जोड़ योजना विस्थापितों की संख्या को और बढ़ाएगी। अब तक एक करोड़ लोगों का भी ठीक से पुनर्वास नहीं किया जा सका है।
4. श्रीनगर, सोलन, अल्मोड़ा, मसूरी, धामीजी, अटगांव, रानौली, सबसे ज्यादा वर्षा वाले चेरापूंजी और सबसे बड़े बांध वाले टिहरी में पेयजल संकट है। दूर रहने वालों को तो पेयजल मिलेगा, लेकिन बांध क्षेत्र के करीब के क्षेत्र पेयजल का संकट झेलेंगे।
5. परियोजना में निजी कंपनियों की भागीदारी होगी। जिन्हें पानी मिलेगा, कंपनियां पेयजल के बदले उनकी जेब खाली करेगी। पेयजल का अधिकार छिनेगा।
6. अधिक सिंचाई के कारण पाकितान के लायलपुर, सरगोधा, मॉण्टगुमरी आजतक खारेपन से जूझ रहे हैं। मेसोपोटामिया सभ्यता के इलाके आज तक बंजर पड़े हैं। अकेले उत्तर प्रदेश के नहरी क्षेत्रों की ही कई लाख एकड़ जमीन ऊसर हो चुकी है। राजस्थान में इंदिरा नहर से बढ़े खारेपन के कारण आई बर्बादी जगजाहिर है। पंजाब में 20 प्रतिशत और हरियाणा में 31 प्रतिशत खेती बांधों के कारण होती है। पहले लाभ मिला, अब नहरी जल रिसाव बढ़ने से हानि हो रही है। बिहार में गंडक नदी ने भी यही किया है। नदी जोड़ भी एक ओर नहरी सिंचाई में पानी के दुरुपयोग के कारण बंजर और खारी भूमि बढ़ाएगी। दूसरी ओर नदियों का पानी समुद्रों तक कम पहुंचने से समुद्र किनारे के इलाके मं खारापन बढ़ेगा। डेल्टा व बंदरगाहों का खात्मा होगा।
7. अनुभव है कि जल विद्युत बांधों से प्रस्तावित क्षमता का 5 प्रतिशत भी लक्ष्य हासिल नहीं हुआ है। नदियों में पानी घट रहा है। क्षमता से कम उत्पादन का प्रतिशत और घटेगा। यूं भी गाद भराव के कारण जल विद्युत परियोजनाओं की आयु भी कम ही होती है। लाभ की बजाय, हानि होगी।
8. कोलकाता से नागदा तक पहले मलेरिया नहीं होता था। बाढ़ से बचाने के लिए तटबंध बने। उसके बाद से 1920 और बाद में मलेरिया ही नहीं, महामारी भी फैली। ओडिशा को लेकर बनी एक रिपोर्ट प्रदेश में मलेरिया व गरीबी का जिम्मेदार तटबंधों का बताया। 1992 में नागार्जुन बांध क्षेत्र में नॉक-नी नाम की हड्डी की बीमारी फैली। 1999 में हीराकुंड बांध क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेचिस, दस्त और मलेरिया हुआ। सरदार सरोवर बांध क्षेत्र के पास परबेटा में बच्चों की मृत्युदर अचानक बढ़ गई। जलभराव व कुपोषण के कारण गुजरात के रामेश्वरपुरा में विस्थापित बूढ़े तथा बच्चे भी अचानक मौत के शिकार हुए। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विश्व रिपोर्ट – 1995 ने विस्थापितों में मानसिक रोगियों की संख्या अन्य की तुलना में अधिक पाई। स्पष्ट है कि नदी जोड़ भारत की सेहत और गिराएगी।
9. नदी जोड़ से बड़े रोजगार का दावा किया गया है एक अकेले फरक्का बैराज से ही हजारों मछुआरे बेरोजगार हो गए। विस्थापन का आंकड़ा इससे और बढ़ेगा। जो वनक्षेत्र और कृषि भूमि डूब क्षेत्र में आएगी, उससे जो रोजगार छिनेगा, सो अलग।
10. नदी जोड़ अप्राकृतिक है। यह पांच लाख वर्ग हेक्टेयर वन क्षेत्र को डूबोएगी।
Har cheez se hame laabh aur Hani Hoti hai Lekin vo hampar hai ki ham kaise istemal karte hai usee tarah hamne nadiyo Ko Ganda kar Apne liye swayam Bura Kiya hai agar nadiya saaf Hoti to hame saaf Sheetal Pani peene Ko milta Lekin gandagi ki vajah se bahut bimari fael Rahi hai aur ye sab kevval hamari vajah se hota
नदियाँ सदैव ही जीवन दायिनी रही है । नदियाँ , प्रकृति का एक अभिन्न अंग है। नदियाँ , अपने साथ बारिस का जल एकत्र कर ,उसे भू-भाग मे पहुंचाने का कार्य करती है। गंगा, सिन्धु, अमेज़न, नील , थेम्स, यंगतिशि आदि विश्व की प्रमुख नदियां है।
नदियों के कई सामाजिक, वैज्ञानिक व् आर्थिक लाभ है । नदियों से जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक स्वच्छ जल प्राप्त होता है यही कारण है कि अधिकांश प्राचीन सभ्यताएं ,जनजातियाँ नदियों के समीप ही विकसित हुईं। उदाहरण के लिए सिंधु घाटी सभ्यता , सिंधु नदी के पास विकसित होने के प्रमाण मिले है । सम्पूर्ण विश्व के बहुत बड़े भाग मे , पीने का पानी और घरेलू उपयोग के लिए पानी , नदियो के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। आर्थिक दृष्टि से भी देखे तो नदियाँ बहुत उपयोगी होती है क्योंकि उद्योगो के लिए आवश्यक जल नदियों से सरलता से प्राप्त किया जा सकता है । कृषि के लिए , सिंचाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, इसके लिए आवश्यक पानी नदियों द्वारा प्रदान किया जाता है । नदियाँ खेती के लिए लाभदायक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का उत्तम स्त्रोत होती हैं। नदियां न केवल जल प्रदान करती है बल्कि घरेलू एवं उद्योगिक गंदे व अवशिष्ट पानी को अपने साथ बहकर ले भी जाती है। बड़ी नदियों का उपयोग जल परिवहन के रूप मे भी किया जा रहा है। सैलानिओ के लिए भी नदियों कई मनोरंजन के साधन जैसे बोटिंग , रिवर रैफ्टिंग आदि उपलब्ध करती है जिससे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है। नदियो से मछली के रूप मे खाद्य पदार्थ भी प्राप्त होते है। नदियों पर बांध बनाकर उनसे हाइड्रो बिजली प्राप्त होती है ।
नदियां हमारी सदैव मित्र रही है और हमे उनसे अनेक महत्वपूर्ण लाभ होते है । हमारा कर्तव्य है कि उनका अति दोहन न करे एवं उन्हे प्रदूषित होने से बचाये।