नवाब साहब ने खीरे की सब फांकों को खिड़की से बाहर फेंक कर तौलिये से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया, मानो कह रहे हो यह है खानदानी रईसों का तरीका। नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा यह है खानदानी तहजीब, नफसत और नजाकत! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म नफीस या एब्सट्रेक्ट् तरीका जरूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उधर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊंचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देख कर कह दिया, “खीर ल़जी़ज होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है”।
1. नवाब साहब का खीर खाने का ढंग किस तरह अलग था?
2. नवाब साहब खीरा खाने के अपने ढंग के माध्यम से क्या दिखाना चाहते थे?
3. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए क्या किया?
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1. नवाब साहब का खीर खाने का ढंग किस तरह अलग था? :-
नवाब साहब ने खीरे की सब फांकों को खिड़की से बाहर फेंक कर तौलिये से हाथ और होंठ पोंछ लिए |
2. नवाब साहब खीरा खाने के अपने ढंग के माध्यम से क्या दिखाना चाहते थे? :- मानो कह रहे हो यह है खानदानी रईसों का तरीका।
3. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए क्या किया? :- लेट गए |
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