नवाब साहब द्वारा खीरे खाने के लिए लखनवी अंदाज का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए उनका यह कीड़े खाने का तरीका कैसा था
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नवाब साहब दूसरों के सामने साधारण खाद्य पदार्थ नहीं खाना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने खीरे को एक कीमती वस्तु की तरह तैयार किया । ... उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे वह लेखक से कह रहे हो कि यह खीरा खाने का नवाबी तरीका है ।
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नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखे तौलिए को झार के सामने बिछाया फीर सीट के नीचे लोटा उठाकर दोनों खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिए से पोंछ लिया , इसके बाद जेब से चाकू निकालकर खीरो के किनारे काटे तथा उनका झाग निकाला और बड़ी सावधानी से छीलकर खीरे की फाकों को तौलिए पर सजाया, फिर उन पर जीरा मिली लाल मिर्च एवं नमक लगाया । लेखक द्वारा मना करने पर खीरों को सूंघकर स्वाद का आनंद लिया और एक-एक करके खीरे के फाँके के बाहर फेंकने के बाद लेखक की ओर देखते हुए अपने होंठ तौलिए से पोंछ लिए । यही खीरे खाने का उनका 'लखनवी अंदाज़' था।