नव पाषाण काल के लोगों के जीवन की एक झाँकी प्रस्तुत कीजिए
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Explanation:
नवपाषाण शब्द उस काल को सूचित करता है जब मनुष्य को धातु के बारे में जानकारी नही थी। परन्तु उसने स्थायी निवास, पशु-पालन, कृषि कर्म, चाक पर निर्मित मृदभांड बनाने शुरू कर दिए थे। इस काल की जलवायु लगभग आज कल के समान थी इसलिए ऐसे पौधे पैदा हुए जो लगभग आज के गेंहू तथा जौ के समान थे। मानव ने उनमें से दाने निकालकर भोजन के रूप में प्रयुक्त करना शुरू कर दिया और उनके पकने के विषय में भी जानकारी एकित्रात की। इस प्रकार स्थाई निवास की शुरूआत हुई। जिस कारण पशुपालन और कृषि कर्म को प्रोत्साहन मिला। कृषि और पशुपालन दोनों एक-दूसरे के पूरक है।
तकनीकी विकास और औजार -
नवपाषाण संस्कृति समाज में हुए निम्न परिवर्तनों को दर्शाता है। तकनीकी तौर पर मुख्य परिवर्तन यह हुआ कि इस काल के मानव ने औजारों को घर्षित कर उन्हें पालिश करके चमकदार बना दिया। आर्थिक तौर पर परिवर्तन यह हुआ कि इस काल का मानव खाद्य संग्रहकर्ता से खाद्य उत्पादनकर्ता बन गया। नवपाषाण स्तर पर धातुक्रम के व्यापक संकेत नही मिलते, वास्तविक नवपाषाण काल धातुरहित माना जाता है। जहां कहीं नवपाषाण स्तर पर धातु की सीमित मात्रा दिखाई दी उस काल को पुरातत्वेताओं ने ताम्रपाषाण काल की संज्ञा दी है।
इस काल के मानव ने नई तकनीक से औजारों का विकास किया जिन्हें घिसकर तथा पालिश करके चमकदार बना दिया गया। औजार बनाने के लिए सर्वप्रथम पत्थर के फलक उतारे जाते थे, दूसरी अवस्था में उसके ऊबड़-खाबड़ उभारों को साफ किया जाता था इसे पैकिंग कहा जाता था। तृतीय अवस्था में उस औजार को किसी बड़े पत्थर या चट्टान से घिसकर साफ किया जाता था तथा उसके किनारों को घर्षित कर तीखा किया जाता था। अंतिम अवस्था में उन पर पशुओं की चर्बी या वनस्पति के तेल से पालिश करके चिकना किया जाता था। इस प्रकार नवपाषाणकाल के मानव में चिकने-चमकदार तथा सुडौल औजार बनाए। जिनमें कुल्हाडियाँ, छैनियां, हथौड़े, बसौले, इत्यादि प्रमुख है। इसके अतिरिक्त हल, दाने अलग करने का औजार (गिरड़ी) तथा ब्लेड़ इत्यादि थे। ये औजार कृषि कर्म में उपयुक्त होने के अतिरिक्त गृहकायों में भी प्रयोग किए जाते थे। इस काल में आए मानव के जीवन ने इन महत्वपूर्ण परिवर्तनों को कई विद्वानों जैसे कि गार्डन चाइल्ड ने नवपाषाण क्रांति की संज्ञा दी है। क्योंकि पाषाण काल के मानव की अपेक्षा इस काल के मानव में मूलभूत परिवर्तन हुए। पहले के काल में वह घुमक्कड़ था। इस काल में उसके जीवन में स्थायित्व आ गया। पहले वह खाद्य सामग्री के लिए प्रकृति पर निर्भर था इस काल में स्वयं अन्न उत्पादन करने लगा। मानव के जीवन में ये परिवर्तन अचानक से नही हुए बल्कि इन परिवर्तनों के प्रारंभिक स्वरूपों के शुरूआत हम पुरापाषाण काल एवम् नवपाषाण काल के बीच देखने को मिलती है।
Explanation:
नियोलिथिक युग, काल, या अवधि, या नव पाषाण युग मानव प्रौद्योगिकी के विकास की एक अवधि थी जिसकी शुरुआत मध्य पूर्व में 9500 ई.पू. के आसपास हुई थी, जिसे पारंपरिक रूप से पाषाण युग का अंतिम हिस्सा माना जाता है। नियोलिथिक युग का आगमन सीमावर्ती होलोसीन एपिपेलियोलिथिक अवधि के बाद कृषि की शुरुआत के साथ हुआ और इसने "नियोलिथिक क्रांति" को जन्म दिया; इसका अंत भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर धातु के औजारों के ताम्र युग (चालकोलिथिक) या कांस्य युग में सर्वव्यापी होने या सीधे लौह युग में विकसित होने के साथ हुआ। नियोलिथिक कोई विशिष्ट कालानुक्रमिक अवधि नहीं है बल्कि यह व्यावहारिक और सांस्कृतिक विशेषताओं का एक समूह है जिसमें जंगली और घरेलू फसलों का उपयोग और पालतू जानवरों का इस्तेमाल शामिल है
नई खोजों से पता चला है कि नियोलिथिक संस्कृति का आरम्भ एलेप्पो से 25 किमी उत्तर की तरफ उत्तरी सीरिया में टेल कैरामेल में 10,700 से 9,400 ई.पू. के आसपास हुआ था। पुरातात्विक समुदाय के भीतर उन निष्कर्षों को अपनाए जाने तक नियोलिथिक संस्कृति का आरम्भ लेवंत (जेरिको, वर्तमानकालीन वेस्ट बैंक) में लगभग 9,500 ई.पू. के आसपास माना जाता है। क्षेत्र में इसका विकास सीधे एपिपेलियोलिथिक नैचुफियन संस्कृति से हुआ था जिसके लोगों ने जंगली अनाजों के इस्तेमाल का मार्ग प्रशस्त किया जो बाद में सही मायने में कृषि के रूप में विकसित हुआ। इस प्रकार नैचुफियन को "प्रोटो-नियोलिथिक" (12,500–9500 ई.पू. या 12,000–9500 ई.पू.कहा जा सकता है। चूंकि नैचुफियन अपने आहार में जंगली अनाजों पर निर्भर हो गए थे और उनके बीच एक तरह की सुस्त जीवन शैली का आरम्भ हो गया था इसलिए यंगर ड्रायस से जुड़े जलवायु परिवर्तनों ने संभवतः लोगों को खेती का विकास करने पर मजबूर कर दिया होगा। 9500-9000 ई.पू. तक लेवंत में कृषक समुदाय का जन्म हुआ और वे एशिया माइनर, उत्तर अफ्रीका और उत्तर मेसोपोटामिया में फ़ैल गए। आरंभिक नियोलिथिक खेती केवल कुछ पौधों तक ही सीमित थी जिनमें जंगली और घरेलू दोनों तरह के पौधे शामिल थे जिनमें एंकोर्न गेहूं, बाजरा और स्पेल्ट (जर्मन गेहूं) और कुत्ता, भेड़ और बकरीपालन शामिल था। लगभग 8000 ई.पू. तक इसमें पालतू मवेशी और सूअर शामिल हुए और स्थायी रूप से या मौसम के अनुसार बस्तियां बसाई गई बर्तन का इस्तेमाल शुरू हुआ।