नवम श्रेणी
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों लिखिए
1. तुलसीदास किस प्रकार से ईश्वर की अविचल भक्ति पाने की बात करते हैं? 'विनय के पद' के आधार पर वर्णन करें।
2. स्त्री शिक्षा के विरोधियों ने स्त्री शिक्षा के विषय में क्या कुतर्क दिए है? पठित पाठ के आधार लिखें।
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Answer:
विनय के पद तुलसीदास द्वारा रचित अद्भुत कवितावली है जो श्री राम को समर्पित है उनके आराध्य भगवान श्रीराम को समर्पित है इस पद में इस कविता में 2 पद हैं दोनों पद में अलग-अलग दो बातों की चर्चा है तुलसीदास पहले पद में भगवान श्री राम के प्रति प्रेम भाव को प्रकट करते हैं और उनके दूसरे पद में यह है कि उनके आराध्य के प्रति जिनका प्रेम भाव नहीं है उसे त्याग कर देना सर्वथा उचित है इसकी चर्चा पहले पद में वह बताते हैं कि भगवान राम के जैसा व्यक्तित्व उनके जैसा उदार व्यक्तित्व का धनी परम स्नेही भक्तवत्सल वह जिसने अपने आराध्य के प्रति कुछ अभी किया भी नहीं है उसे भी भगवान राम किस तरह गले लगा लेते हैं उसे भी किस प्रकार अपना प्रेम देते हैं जिस तरह जटायु को उन्होंने दिया जिस तरह सबरी को उन्होंने दिया जिस तरह निषादराज गुह को उन्होंने दिया ऐसा व्यक्तित्व मिलना कठिन है ऐसा व्यक्तित्व दूसरा हुआ नहीं ऐसा भगवत भक्त वत्सल कोई दूसरी सर हुए नहीं निषादराज गुह एक मल्लाह था सबरी एक मिलनी थी और जटायु पक्षी था और इन तीनों को उन्होंने अपना परम स्नेह परम प्रेम दिया यही नहीं डिजिटल रावण ने अपने 10 सीट चढ़ाकर भी जिस सिम को नहीं पा सका विभीषण जिसमें कुछ ना चढ़ाया उसे यूं ही राम प्राप्त हो गए और यहां तक कि उन्हें मिलते ही लंका का राजा घोषित कर दिया ऐसे भक्तवत्सल भगवान श्री राम की उन्होंने अर्चना की है अपने पहले पद में उनका गुण गाया है उनके प्रेम को बताया है उनके प्रेम का वक्त वक्त संता का वर्णन उन्होंने अपने पहले पद में किया है और दूसरा जो पद है उस पद में उन्होंने भगवान राम की प्रेम को बताते हुए उन्होंने यह जताया है कि किस तरह चाहे वह प्रहलाद हो चाहे भरत हो चाहे वह विभीषण हो पहलाद जिसके पिता ईश्वर को नहीं पूछते थे इसलिए अपने पिता को छोड़ देना उसका यह उचित ही था डिवीजन जिसके भाई को रावण को ईश्वर से कोई मतलब नहीं इस पर को वह गाली देता था ईश्वर को वह कुछ नहीं समझता था अपने सामने ऐसे भाई को छोड़ देना उसका सर्वथा उचित था ऐसे ही कुछ उदाहरण उनके दूसरे पद में हैं और इन उदाहरणों से तुलसीदास यही बताते हैं कि ऐसे लोगों का साथ छोड़ देना सर्वथा उचित है जिनकी भगवान में उनकी प्रभु श्रीराम में कोई रुचि ना हो ऐसे लोगों को छोड़ देना पुण्य का ही काम है ऐसे लोगों का साथ छोड़ देना अपने जीवन को संवारने का ही काम है और इस पर की शरण में आ जाना इस से बढ़कर कोई अच्छी बात नहीं जीवन की कोई सार्थकता नहीं कुल मिलाकर वह अपने पदों में यही कहते हैं कि एक मात्र से नाम है जिनकी जिनकी पूजा की जानी चाहिए जिनकी आराधना की जानी चाहिए जो सबके भक्तवत्सल हैं सबके प्रिय हैं और सब पर प्रेम बरसाने वाले हैं इसीलिए उस नाम को भेजो उस नाम का गुणगान करो उसी से तुम्हारा बेड़ा पार लगेगा
Explanation:
I hope fully answer