नवनीत हिन्दी निबंधमाला : कक्षा 8-9
74. सिनेमा से लाभ-हानि
Answers
Explanation:
भूमिका :
प्राचीनकाल में मनुष्य आखेट करके, पत्थरों से खेलकर, एक-दूसरे से बात करके अपना मनोरंजन करता था, लेकिन सभ्यता के विकास के साथ-साथ वैज्ञानिकों ने नए-नए आविष्कार किए। मनोरंजन के नए-नए साधन हमारे सामने आए, जिनमें से ‘चलचित्र’ भी एक है। यह विज्ञान का अत्यन्त आश्चर्यजनक तथा महत्त्वपूर्ण आविष्कार है।
चलचित्र का इतिहास :
चलचित्र का अर्थ है चलता-फिरता चित्र। ये चित्र चलने के साथ-साथ बोलते भी हैं। ध्वनि तथा प्रकाश की सहायता से चलचित्र का आविष्कार किया गया है । चलचित्र की खोज का श्रेय अमेरिकन वैज्ञानिक ‘एडीसन’ को जाता है। प्रारंभ में ये चित्र मूक (बिना आवाज) होते थे।
तत्पश्चात् इन चित्रों को आवाज देने के प्रयास किए गए। कछ वर्षों बाद ‘डाउप्टे’ नामक वैज्ञानिक ने इस कार्य में सफलता प्राप्त की। आज इसका रंगीन तथा बढ़ा हुआ रूप भी हमारे समक्ष है।
मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन :
हर व्यक्ति के लिए मनोरंजन आवश्यक है। इसके बिना जीवन नीरस और बेरंग लगता है, जबकि मनोरंजन से जीवन में नवीन स्फूर्ति, नई शक्ति तथा जोश का संचार होता है। आज विज्ञान की बदौलत हमारे पास मनोरंजन के अनेक साधन हैं जैसे-दूरदर्शन, रेडियो, खेलकूद, चित्रकला, प्रदर्शनियाँ, बड़े-बड़े मेले इत्यादि।
लेकिन इन सभी में चलचित्र सबसे सस्ता, सुगम तथा लोकप्रिय साधन है। चलचित्र ने नाटक, एकांकी तथा रंगमंचीय कलाओं का भी स्थान ले लिया है।
चलचित्र के सदुपयोग से लाभ :
चलचित्र के सदुपयोग द्वारा शिक्षा प्रसार तथा समाज-सुधार के कार्यों में बहुत अधिक सफलता प्राप्त की जा सकती है। बाल-विवाह, विधवा-विवाह उल्लंघन, बाल-श्रम, छुआछूत, जात-पात आदि कुरीतियों को चलचित्र के माध्यम से संदेशात्मक रूप में दिखाया जा सकता है।
चलचित्रों के माध्यम से दर्शक उन विषयों पर विचार कर ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं तथा कुछ जागरूक व्यक्ति बुराइयों के खिलाफ लड़ भी सकते हैं। चलचित्र पर दिखाई जाने वाली ‘डाक्यूमेन्ट्री फिल्मे’ बहुत ज्ञानवर्धक होती हैं।
चलचित्र के दुरुपयोग से हानियाँ :
हर वस्तु का दूसरा पहलू भी होता है। समझदार व्यक्ति चलचित्र का सदुपयोग करके यदि लाभान्वित हो रहे हैं तो कुछ नासमझ लोग इसके दुरुपयोग से नैतिक पतन के रास्ते पर जा रहे हैं। चित्रपट पर गन्दे, भद्दे तथा अश्लील नृत्य दिखाए जाते हैं, बेढंगे हास्य कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं, जिनका दर्शकों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कुछ विद्यार्थी घर से भागकर या माता-पिता से झूठ बोलकर अश्लील चलचित्र देखने जाते हैं, जिसका उन पर कुप्रभाव पड़ता है।
वे चोरी, डकैती, बलात्कार, अपहरण आदि की जो घटनाएँ देखते हैं, उन्हीं को अपने जीवन में अपनाने लगते हैं, जिससे उनका समय भी बर्बाद होता है तथा चारित्रिक पतन भी होता है। अधिक चलचित्र हमारी सेहत पर भी बहुत प्रभाव डालते हैं। हमारी आँखों की रोशनी क्षीण होने लगती है तथा हमारे शरीर में आलस्य आ जाता है।
उपसंहार :
सिनेमा आज हमारे सामाजिक जीवन की आवश्यकता बन चका है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम चलचित्र को अपने मनोरंजन के लिए देखते हैं या फिर उसके आदी ही हो जाते हैं।
चलचित्र के लाभ और हानियाँ पर निबंध
मानव जीवन के लिए मनोरंजन की अत्यंत आवश्यकता है। मनोरंजन के कार्य तथा साधन कुछ क्षण के लिए मानव जीवन के गहन बोझ को कम करके व्यक्ति में उत्साह का संचालन कर देते हैं। मानव सृष्टि के आरंभ से ही मनोरंजन की आवश्यकता प्राणियों ने अनुभव की होगी और जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया वैसे-वैसे नवीनतम खोज इस अभाव को पूरा करने के लिए की गई।
वर्तमान काल में चारों ओर विज्ञान की तूती बोल रही है। मनोरंजन के क्षेत्र में जितने भी सुंदर अन्वेषण एवं आविष्कार हुए हैं, उनमें सिनेमा (चलचित्र) भी एक है। चलचित्र का आविष्कार १८९० ई. में टामस एल्वा एडीसन द्वारा अमेरिका में किया गया। जनसाधारण के सम्मुख सिनेमा पहली बार लंदन में ‘लुमैर’ द्वारा उपस्थित किया गया। भारत में पहले सिनेमा के संस्थापक ‘दादा साहब फाल्के’ समझे जाते हैं। उन्होंने पहला चलचित्र १९१३ में बनाया। भारतीय जनता ने इसकी भरि-भरि प्रशंसा की। आज इस व्यवसाय पर करोड़ों रुपया लगाया जा रहा है और विश्व में भारत का स्थान इस क्षेत्र में प्रथम है।
पहले-पहल चलचित्र जगत् में केवल मूक चित्रों का ही निर्माण होता था, पर धीरे-धीरे इसमें ध्वनिकरण होता गया। चलचित्र निर्माण में कैमरे का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह कैमरा एक विशेष प्रकार का बना होता है। इसके द्वारा ली गई स्थिर तसवीरों को क्रम से जब सिनेमा यंत्र पर घुमाया जाता है, तो चित्रों की चलती-फिरती छाया सामने के परदे पर पड़ती है और इस | प्रकार से शृंखलित कहानी हमारे सम्मुख क्रमपूर्वक चलती रहती है।
सिनेमा संसार में लगातार परिवर्तन व सुधार होते ही रहते हैं। आजकल रंगीन चित्रों की सरगर्मी है। अभिनय, गीत, नृत्य और कहानी चलचित्रों के प्रधान अंग हैं। सिनेमा में सारी कलाओं का संगम है। इसीलिए यह मनोरंजन का सबसे श्रेष्ठ साधन हो गया है। सिनेमा के प्रचार से हमें बहुत लाभ हैं। मनोविनोद के साथ-ही-साथ शिक्षा-प्रचार में भी इससे बहुत सहायता मिलती है। इसके द्वारा देश-विदेश के लोगों का रहन-सहन एवं कार्यकर्ताओं का परिचय बहुत ही सस्ते में हमको मिल जाता है। राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक चित्रों से देश में मनोवांछित सुधार भी किया जा सकता है। व्यापारोन्नति के लिए भी सिनेमा का योग बहुत ही लाभप्रद है।
उपर्युक्त लाभों के साथ ही सिनेमा से कुछ हानियाँ (दोष) भी हैं। नित्य प्रति सिनेमा देखने से आर्थिक हानि के साथ नेत्रों को ज्योति पर बुरा असर पड़ता है। फैशन का भूत भी सिनेमा के कारण ही भारतवासियों को चिपटा है। गंदे और अश्लील चित्रों को देखने से आचार भ्रष्ट हो रहा है।