Hindi, asked by tanush7996, 1 year ago

नवरात्रिनका महत्त्व और उसकी पूजा विधि को बताईये|

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Answered by vibhash31
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नवरात्रि का महत्त्व
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नवरात्र यानी 9 विशेष रात्रियां। इस समय शक्ति के 9 रूपों की उपासना का श्रेष्ठ काल माना जाता है। 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है। प्रत्येक संवत्सर (साल) में 4 नवरात्र होते हैं जिनमें विद्वानों ने वर्ष में 2 बार नवरात्रों में आराधना का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चै‍त्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9 दिन यानी नवमी तक नवरात्र होते हैं। ठीक इसी तरह 6 माह बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी यानी विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक देवी की उपासना की जाती है। स‍िद्धि और साधना की दृष्टि से से शारदीय नवरात्र को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति के संचय के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं। मुख्यत: शक्ति की उपासना आदिकाल से चली आ रही है। वस्तुत: श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के अंतर्गत देवासुर संग्राम का विवरण दुर्गा की उत्पत्ति के रूप में उल्लेखित है। समस्त देवताओं की शक्ति का समुच्चय जो आसुरी शक्तियों से देवत्व को बचाने के लिए एकत्रित हुआ था, उसकी आदिकाल से आराधना दुर्गा-उपासना के रूप में चली आ रही है। 

पूजा विधि
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वास्‍तुशास्त्र के अनुसार, उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण को पूजा के लिए सर्वोत्तम स्‍थान माना गया है। इस दिशा को देवस्‍थान माना जाता है और यहां सर्वाधिक सकारात्‍मक ऊर्जा रहती है। नवरात्र में इसी कोण में कलश की स्‍थापना की जानी चाहिए। पूजाघर को इस प्रकार से व्‍यवस्थित करना चाहिए कि पूजा करते वक्‍त आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। पूर्व दिशा में देवताओं का वास होने की वजह से इस दिशा को शक्ति का स्रोत माना जाता है। नवरात्र में माता की मूर्ति को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्थापित करना चाहिए। जहां मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें वहां पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। माना जाता है कि चंदन और आम की लकड़ी की चौकी पर माता की प्रतिमा स्थापित करना उत्तम होता है। नवरात्र में कई लोग 9 दिन तक माता की ज्‍योति जलाकर रखते हैं। इसे अखंड ज्‍योति कहा जाता है। इसे अगर आप आग्‍नेय कोण में रखें तो यह अधिक शुभफलदायी होगा। अखंड ज्योति जलाकर पूजा करने वालों को पहले इसका संकल्प लेना चाहिए फिर ज्योति जलाकर माता की पूजा करनी चाहिए। पूजा की सारी सामग्री आप अपने मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें। इनमें गुग्‍गल, लोबान, कपूर और देशी घी प्रमुख तौर पर शामिल हैं। माता की पूजा लाल रंग का बड़ा महत्व है इसलिए पूजन सामग्री लाल कपड़े के ऊपर रखें। पूजन में तांबा और पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें। अगर चांदी की थाल या जलपात्र हो तो यह भी प्रयोग में ला सकते हैं। नवरात्र के पहले दिन घर के मुख्‍य द्वार के दोनों तरफ स्‍वास्तिक बनाएं और दरवाजे पर आम के पत्ते का तोरण लगाएं। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि माता इस दिन भक्तों के घर में आती हैं। जहां कलश बैठा रहे हों वहां भी पहले स्वास्तिक बना लेना चाहिए इससे वास्तु दोष दूर होता है।


Answered by shailajavyas
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नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। पूरे भारत में विविध प्रकार से मनाया जाता है | नवरात्रि का अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों के दौरान, शक्ति / देवी(दुर्गा) के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो वर्ष में पौष, चैत्र, आषाढ, अश्विन इन चार महिनों में चार नवरात्री आती है किन्तु पौष और आषाढ़ की गुप्त मानी जाती है | चैत्र (वासंती नवरात्र) और अश्विन (शारदीय नवरात्र) की नवरात्रि प्रकट मानी गई है | इसमें भी शारदीय नवरात्र विशेष रूप मे प्रचलित है इसमें प्रतिपदा को घट स्थापना होती है | नवमी तक प्रत्येक दिन शक्ति की नौ भिन्न -भिन्न स्वरुपों में पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं | नवमी के दिन पूर्णाहुति यज्ञ के साथ कन्या पूजन (नौ वर्ष तक की बालिकाओं का पूजन) के अतिरिक्त देवी के समक्ष नौ दिवस, रात्रि के अवसर पर डांडिया खेला जाता है | गरबा (गुजराती ) नृत्य इसीका परिचायक है |  दसवें दिन देवी का विसर्जन होता है | इसी दिन बंगाली शादीशुदा महिलांए सबसे पहले दुर्गा मां को सिंदूर लगाती हैं | इसके बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं | इसे सिंदूर खेला कहते हैं |  भारत के विभिन्न प्रान्तों में इसे विविध रूपों में मनाया जाता है |


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