नवरस का एक एक उदाहरण जो आसानी से याद किया जा सके। कल हिंदी की परीक्षा है।
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नाट्यशास्त्र में भरत मुनि ने रस की व्याख्या करते हुये कहा है -
विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्ररस निष्पत्ति:।
अर्थात विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। सुप्रसिद्ध साहित्य दर्पण में कहा गया है हृदय का स्थायी भाव, जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का संयोग प्राप्त कर लेता है तो रस रूप में निष्पन्न हो जाता है।
रीतिकाल के प्रमुख कवि देव ने रस की परिभाषा इन शब्दों में की है :
जो विभाव अनुभाव अरू, विभचारिणु करि होई।
थिति की पूरन वासना, सुकवि कहत रस होई॥
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विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्ररस निष्पत्ति:।
अर्थात विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। सुप्रसिद्ध साहित्य दर्पण में कहा गया है हृदय का स्थायी भाव, जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का संयोग प्राप्त कर लेता है तो रस रूप में निष्पन्न हो जाता है।
रीतिकाल के प्रमुख कवि देव ने रस की परिभाषा इन शब्दों में की है :
जो विभाव अनुभाव अरू, विभचारिणु करि होई।
थिति की पूरन वासना, सुकवि कहत रस होई॥
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Pratishtha2003:
ye ras nhi
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