naya rasta upanyas saransh???
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मीनू की बचपन से ही पढ़ाई में रुचि थी |
वह सदैव कक्षा में प्रथम आती थी | m.a. की परीक्षा भी उसने प्रथम श्रेणी से पास की |
वह सिलाई ,बुनाई ,कटाई ,खाना बनाना तथा पेंटिंग आधी सभी कामों में निपुण थी |कद-काटी में पतली छोटी सी दिखने वाली मीनू ने वैसे तो सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी से पास की थी, पर शादी के लिए जब उसे कोई देखने जाता तो साॅवली होने के कारण वह मीनू को नापसंद कर देते थे |
उसकी छोटी बहन आशा रंग रूप में मीनू से कहीं ज्यादा सुंदर थी |
मेरठ निवासी मायाराम जी अपने पुत्र अमित के रिश्ते के लिए पत्नी शहीद उसे देखने आए तो अमित के ह्रदय में मीनू का भोला-भाला चेहरा समा गया |
मायाराम जी जब वापस जाने लगे तो दयाराम जी के यह पूछने पर भाई साहब , क्या जवाब रहा ? उन्होंने कहा कि घर जाकर विचार करेंगे | उसके बाद आपको पत्र लिखेंगे |
मायाराम जी जब अपने घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मेरठ शहर के एक धनी व्यक्ति धनीमाल उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं | धनीमल ने अपने छूट सबसे छोटी पुत्री सरिता का रिश्ता अमित से प्रस्ताव रखा तथा साथी यह भी बताया कि वह शादी में 500000 रुपया खर्च करेंगे |
मायाराम जी दहेज विरोधी थे, मायाराम की पत्नी 5 लाख की बात सुनते ही यह भूल गई कि वह अभी मीनू को देख कर आई है और अमित को मीनू पसंद भी है |
मायाराम जी की पत्नी ने अपने पति को विवश कर दिया कि किसी भी तरह से मीरापुर वाला रिश्ता अस्वीकार कार कर दे |
पत्नी के सुझाव पर मायाराम जी ने दयाराम जी को पत्र लिखा कि हमें तुम्हारी छोटी बैटी आशा पस्रन्द है । यदि आप हमारे यहाँ शादी करना चाहते हैं तो मीनूसे नहीं बल्कि आशा से कर दें ।
दयाराम जो घर के सभी सदस्यों की सलाह मानकर इस नथे प्रस्ताव को पक्का करने के लिए मेरठ गए तो वहाँ पर उन्हें फ्ता कि उन्होने अमित का रिश्ता धनीमल जी का बेटी सरिता से पवका का लिया है । धनीमल शादी में पचि लाख रुपये खर्च करेगे' ।
घर पहुचने पर दयाराम जी का उदास चेहरा दखकार तथा वास्तविकता जानने पर सबका हदय मायाराम जी के परिवार के प्रति घृणा से भर गया ।
मीनू के अन्दर एक ही भावना घर कर गईं । शायद वह विवाह के योग्य नहीं है । यह स्रोचका उसने निर्णय लिया कि वह विवाह नहीं करेगी । उसने विवाह का सपना देखना ही छोड दिया ।
मीनू में साहस की कमी न थी । उसने वकील बनने का दृढ निश्चय किया ताकि अपने पाँव पर खडी होकर वह इतना पैसा कमा सके कि जिससे वह समाज में सिर ऊचा" करके रह सके । दयाराम जी ने भी मीनू के मन में उभरी लगन को देखका उसे वकालत की पढाई करके प्रैक्टिस करने की आज्ञा दे दी l मीनू नये रास्ते की तलाश में निकल पडी ।
माँ ने उसे सीने से लगाकर अाशीर्वाद दिया , बेटी एक देदीप्यमान नक्षत्र वनकर तुम जग को प्रकाशमय कर दो । जीवन की सारी खुशियाँ तुम्हारे पास हों , तुम अपने उद्देश्य प्राप्ति मेँ सफल हो, यही ईश्वर से मेरी प्रार्थना है ।
मीनू ने मेरठ में वकालत में दाखिला ले लिया । माँ के आशीर्वाद से उसने पहली दूसरी और अन्तिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और फिर मेरठ मे' ही वकालत करने लगी ।
आठ महीनों में ही मीनू ने वकालत में अपनी धाक जमा ली I उसकी आवाज में जोश था, काम करने में उत्साह . था | उसकी बुलंदी के चर्चे चारों ओर फैल गये थे । उसकी रौबीली आवाज ने सबके मन को मोह लिया था । दिखने में मतली, छोटी-सी मीनू क्रो साधारण रूप से देखने वाला व्यक्ति विश्वास ही नहीं का सकता था कि वह इतनी साहसी होगी |
धनीमल जी अपनी लडकी को दहेज में फ्लैट अवश्य देना चाहते थे किन्तु मायाराम जी तथा उनकी फ्लॉ यह नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र उनसे अलग' रहे । इस बात को लेकर मायाराम जी ने थनीमल की बेटी सरिता का रिश्ता अस्वीकार कर दिया । अमित ने शादी काने से इन्कार का दिया । अमित का एक्सीडेप्टे हो गया । मीनू को जब नीलिमा के माध्यम से सच्चाई का पता चलता है तो वह अमित को मेडिकल कालेज में देखने जाती है । अमित अपनी व्यथा-कथा मीनू को बताता है । अमित को आत्मग्लानि महसूस होती है । मानू के हदय से उसके प्रति घृणा के भाव' हट जाते है' ।
अन्त में मायाराम जी दयाराम जी से क्षमा याचना काते हुए अमित का रिश्ता मीनू से कर देने की प्रार्थना कस्ते हैँ । दयाराम जो अपनी पुत्री मोनू से बात कर उसकी राय जानना चाहते हैँ । मीनू के अपनी माँ से यह कहने पर कि जैसा आप उचित समझें बैसा ही करें उसकी माता-पिता चैन की साँस लेते है' । शादी की तिथि निश्चिता हो जाती है ।
मानू दुल्हन बनी l उसकी डोली सजी और वह अपने पिया संग ससुराल को चल दी ।
उसे जिस मंजिल क्री तलाश ' थी आज बह उसे मिल गईं । उसने अपने साहस, लगन और परिश्रम से नये रास्ते की खोज की थी इसलिए इस उपन्यास का शीर्षक 'नया रास्ता' सार्थक है । उपन्यास के कथानक के अनुसार शीर्षक के अौवित्य पर किसी प्रकार क्री टीका-टिप्पणी काना व्यर्थ की आलोचना मात्र होगी ।
Answer:
नया रास्ता दो दोस्तों नीलिमा और मीनू की कहानी है। नीलिमा खूबसूरत है लेकिन मीनू थोड़ी दिलकश है। दोनों एक दूसरे की परवाह करते थे। मीनू के आने पर नीलिमा आईने में खुद को निहार रही थी। नीलिमा की सुंदरता को देखकर उसे अपने आप में हीन भावना का आभास हुआ, जिसका एहसास नीलिमा को हो गया था, लेकिन उसका भाई तुरंत नीलिमा की माँ के साथ कमरे में आया और एमए लेकर आया। परिणाम जिसमें मीनू प्रथम श्रेणी में तथा नीलिमा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। मीनू बहुत खुशी से झूमने लगी और अपने घर चली गई। दयाराम जी के घर लड़कों के स्वागत की तैयारी चल रही थी। कुछ देर बाद बालक अमित, उसके पिता मायाराम जी, उसकी माता और बहन आ गए। बात चलती रही और फिर अमित और मीनू अकेले ही बात करने लगे। अमित ने उसकी पसंद पूछी और फिर पूछा कि क्या वह उनके संयुक्त परिवार में रह पाएगी, जिस पर मीनू ने हां कर दी। तभी उनकी बहन आशा और भाई रोहित आए। आशा सुंदर थी और वह सुंदर चेहरा अमित की माँ को पसंद आया। जाते समय अमित के परिजनों ने कहा कि वे विचार कर पत्र भेजेंगे।
अमित और मायाराम जब घर पहुंचे तो एक सज्जन उनका इंतजार कर रहे थे। वह एक धनी व्यक्ति था जिसका नाम धनिमाल था। वह अपनी बेटी सरिता का रिश्ता लेकर आए। सरिता की फोटो और शादी पर पांच लाख खर्च करने का प्रस्ताव मायाराम जी दहेज विरोधी थे और उन्होंने अपना प्रस्ताव नहीं कहा। उसने बताया कि वह पसंद करने वाली लड़की को देखने आ रहा है। मायाराम जी अपने बेटे को पैसों में बांधकर नहीं रखना चाहते थे। धनीमल जी फिर भी एक बार विचार माँगने गए। बाद में जब सबने सोचा तो मायाराम जी को मेन्यू ठीक लगा, लेकिन माताजी को पैसों का लालच दिया गया। उन्होंने सरिता का साथ दिया। अमित को शक था कि बड़े घर की लड़की संयुक्त परिवार में रह पाएगी, लेकिन मां की दलील पर कोई कुछ नहीं कह सका. मीनू को मना करने का फैसला किया गया लेकिन समझ नहीं आया कि कैसे। माताजी ने सुझाव दिया कि पत्र में मीनू की जगह आशा का कोई ऐसा रिश्ता पूछा जाए जिस पर लड़की खुद न बताए। मायाराम जी ने चिट्ठी लिखी लेकिन इस सब से खुश नहीं थे और खुद को दोषी महसूस कर रहे थे। वह बच्ची के दर्द से वाकिफ थे।
मीनू की बचपन से ही पढ़ाई में रुचि थी। वह सिलाई, बुनाई, काटने, खाना पकाने और सभी कामों के आधे हिस्से की पेंटिंग में माहिर थी। दुबली-पतली दिखने वाली मीनू ने सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी से पास की थी, लेकिन जब कोई उसे शादी के लिए देखने गया। वह मीनू को नापसंद करता था क्योंकि वह सावली था। उसकी छोटी बहन आशा रंग में मीनू से भी ज्यादा खूबसूरत थी। मेरठ निवासी मायाराम जी अपने बेटे अमित को उसकी पत्नी शहीद के साथ रिश्ते के लिए देखने आए और मीनू का मासूम चेहरा अमित के दिल में कैद हो गया।
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