नया युग करना है निर्माण
जिसमें हम सब हों एक समान,
नहीं है कहीं किसी में भेद।
न कोई निर्धन न धनवान,
नया युग करना है निर्माण।।
न कोई धर्म न कोई पंथ,
न कोई जाति न कोई रंग।
सभी में बहता रक्त समान,
नया युग करना है निर्माण।।
आज हम सब पर यह गुरु-भार,
विश्व फिर बने एक परिवार।
सभी धरती माँ की संतान,
नया युग करना है निर्माण।।
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very nice poem dear ........
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