Hindi, asked by ashujaguar4704, 11 months ago

need a speech on DHARM TODTA NAHI JODTA HAI

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Answered by Jiya1114
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Answer:

धर्म तोड़ता नहीं जोड़ता है ” में कुछ जानकारी भ्रामक है और कुछ अधूरी। गुरुकुल काँगड़ी की स्थापना मुख्य रूप से वेदों की एवं वैदिक साहित्य की शिक्षा देने के लिए की गई थी। वेदान्त उस साहित्य का केवल एक भाग है। वैदिक धर्म में जिन छह दर्शनों को मान्यता दी गई है, वेदान्त उनमें से एक है ; अन्य पांच दर्शन हैं – सांख्य, न्याय, वैशेषिक, योग और पूर्व मीमांसा। वेदान्त को ” उत्तर मीमांसा ” भी कहते हैं। गुरुकुल काँगड़ी में इन सभी की शिक्षा दी जाती थी। और हिंदी वहां केवल एक विषय नहीं, सम्पूर्ण शिक्षा का, प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक का माध्यम थी। हिंदी माध्यम से उच्च शिक्षा देने वाली वह उस युग में एकमात्र संस्था थी। गुरुकुल के स्नातकों ने विभिन्न विषयों के अद्वितीय ग्रन्थ लिखे हैं जिन्हें आज भी हिंदी का गौरव ग्रन्थ माना जाता है।

वहां सभी धर्मानुयायियों का स्वागत होता था। हाकिम अजमल खां उस समय कांग्रेस के एक प्रतिष्ठित नेता थे। वे गुरुकुल कांगड़ी में आए। बड़ी रुचि से उन्होंने गुरुकुल की गतिविधियाँ देखीं। शाम के समय स्वामी श्रद्धानंद से बोले “स्वामी जी, हमारी नमाज का वक्त हो गया है। ऐसी जगह बताइए जहाँ हम नमाज पढ़ सकें।” स्वामी जी ने तुरंत उत्तर दिया ” यह यज्ञशाला है। हम तो यज्ञ कर चुके हैं । आप यहाँ नमाज पढ़ सकते हैं। ” वास्तव में धर्म तोड़ता नहीं, जोड़ता है।

Answered by ekakshmaheshjeena
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धर्म तोड़ता नहीं जोड़ता है ” में कुछ जानकारी भ्रामक है और कुछ अधूरी। गुरुकुल काँगड़ी की स्थापना मुख्य रूप से वेदों की एवं वैदिक साहित्य की शिक्षा देने के लिए की गई थी। वेदान्त उस साहित्य का केवल एक भाग है। वैदिक धर्म में जिन छह दर्शनों को मान्यता दी गई है, वेदान्त उनमें से एक है ; अन्य पांच दर्शन हैं – सांख्य, न्याय, वैशेषिक, योग और पूर्व मीमांसा। वेदान्त को ” उत्तर मीमांसा ” भी कहते हैं। गुरुकुल काँगड़ी में इन सभी की शिक्षा दी जाती थी। और हिंदी वहां केवल एक विषय नहीं, सम्पूर्ण शिक्षा का, प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक का माध्यम थी। हिंदी माध्यम से उच्च शिक्षा देने वाली वह उस युग में एकमात्र संस्था थी। गुरुकुल के स्नातकों ने विभिन्न विषयों के अद्वितीय ग्रन्थ लिखे हैं जिन्हें आज भी हिंदी का गौरव ग्रन्थ माना जाता है।

वहां सभी धर्मानुयायियों का स्वागत होता था। हाकिम अजमल खां उस समय कांग्रेस के एक प्रतिष्ठित नेता थे। वे गुरुकुल कांगड़ी में आए। बड़ी रुचि से उन्होंने गुरुकुल की गतिविधियाँ देखीं। शाम के समय स्वामी श्रद्धानंद से बोले “स्वामी जी, हमारी नमाज का वक्त हो गया है। ऐसी जगह बताइए जहाँ हम नमाज पढ़ सकें।” स्वामी जी ने तुरंत उत्तर दिया ” यह यज्ञशाला है। हम तो यज्ञ कर चुके हैं । आप यहाँ नमाज पढ़ सकते हैं। ” वास्तव में धर्म तोड़ता नहीं, जोड़ता है।

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