Hindi, asked by manjulasrivastava, 10 months ago

Need an essay about boat in hindi for class V

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Answered by Anonymous
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Answer:

hey mate right answer is here.

Explanation:

निर्मल निश्छल धारा जन जन मांगे किनारा "

अरे दूर देखि एक ठाँव,वहां खड़ी है प्यारी नावI"

जब धाराएँ सामने हो दूर खड़ी नाव दिखाई दे दे तो हम 4 दोस्त जोर से आवाज़ लगाते हैं I ओ नाविक !इधर आ शाम ढलती जा रही है I हमें उस पार जाना है और नाविक चप्पू चलता हुआ धीरे धीरे हमारे पास आ जाता है और कहता है भैया मैं तो घर जा रहा था  तुम्हारी आवाज़ सुनी  तो आ गया I हमलोगों ने कहा अरे भाई !हम तुम्हें पैसे देंगे तुम ऐसे ही थोड़े ले जाओगे I नाविक  हम पैसों के लिए आपकी समस्याया के समाधान बनके आये हैं Iइस वक़्त यहाँ कोई नाव नहीं रहती और रात भी होने को है I हम गरीब ज़रूर हैं पर हमारा काम पैसों की तुलना में जन जन का कल्याण करना ज्यादा आवश्यक है Iउसकी बात पर चुप रहकर हम चुप चाप उसके नाव पर चढ़ जाते हैं I

नाविक भैया हर चीज़ को पैसे से मत तोलना" संसार सागर का एक ही नाविक है ईश्वर वो क्या हमें उस पार पहुंचाने के लिए पैसे लेता है

Answered by srinithinreddy2001
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Explanation:

प्राचीन चित्रों में बड़े बड़े जहाज तो कुछ अच्छी तरह चित्रित देखे जाते हैं, किंतु नावों के चित्र यदि कहीं हैं भी तो अत्यंत अनगढ़ और असावधानीपूर्वक बने हुए। केवल कहीं कहीं खुदाइयों में प्रस्तरयुगीय अवशेषों के साथ इनके भी भग्नावशेष मिले हैं। पौराणिक जलप्लावन के बाद शतपथ ब्राह्मण के अनुसार मनु के, बाइबिल के अनुसार नूह के और यूनान के अपोलोडारेस के अनुसार दिउकलियान के नाव में चढ़कर बचने की कथाएँ अनेक देशों में मिलती हैं। और भी अनेक ग्रंथों में नावों का जिक्र आया है, किंतु कहीं भी नाव के स्वरूप का वर्णन नहीं है। इसलिए बड़े बड़े जहाजों की तुलना में नावों का प्रारंभिक इतिहास प्राय: अज्ञात ही है। आजकल नावों के आदिम स्वरूपों को देखकर उनके उद्भव और विकास की रूपरेखा का केवल काल्पनिक अनुमान ही लगाया जा सकता है।

आदिवासियों ने इधर उधर जाने और अपना सामान ढाने के लिए जब नदी नाले पार करने के आरंभिक प्रयास किए होंगे तब उन्हें लकड़ी या हलके पदार्थों की कुछ मात्रा बाँधकर, या फिर किसी वृक्ष का तना कोलकर तथा उसे पानी में तैराकर, अपने उद्देश्य में सफलता मिली होगी। इन्हीं में हम नाव या जहाज का मूल निहित मान सकते हैं। यह विवादास्पद है कि तना कोलकर बनाई हुई डोंगी पहले अस्तित्व में आई या पानी पर तैरनेवाले सरपत, नरकुल आदि का बेड़ा। शायद छाल की डोंगियाँ और भी बाद में बनी और इसके बाद पशुओं के चमड़े के मशकों में हवा भरकर, उसके ऊपर घास फूस, लकड़ी आदि का पाटन लगाकर, इनसे लोग पानी में पार उतरने लगे। साथ ही साथ चमड़े की पनसुइया भी बनने लगी होंगी। ये कुछ सुधरे हुए स्वरूप थे। कुछ भी हो, यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि बहुत दूर दूर देशों में स्थित, आपस में कभी भी एक दूसरे से संपर्क में न आ सकनेवाले लोगों के मन में अलग अलग, एक जैसे ही विचार उत्पन्न हुए।

आरंभ में ये बेड़े या डोंगियाँ, अपनी गति के लिए पानी के प्रवाह पर ही निर्भर होंगी। किंतु जब किसी ने यह खोज की होगी कि किसी लट्ठे या चप्पू की सहायता से वह इन्हें इच्छानुसार इधर उधर, नदी की धारा के आर पार, या प्रवाह के साथ, अथवा उलटे भी ले जा सकता है, तब उसे अपनी सफलता पर अवश्य ही बड़ा हर्ष और गर्व हुआ होगा। फिर तो नदियों, झीलों और कच्छों में विहार करते करते लोगों ने कभी कभी अच्छे मौसम में तट से दूर समुद्र में भी जाना आरंभ कर दिया होगा। धीरे धीरे प्रयोग से उसकी माँग बढ़ी, त्रुटियों की खोज हुई और सुधार भी सूझे। गति बढ़ाने की आवश्यकता अनुभव हुई। बेड़े के चारों ओर से और उसके बीच में से भी, पानी उछलकर ऊपर आ जाता था, इससे भी बचना था। यही गति और ऊपर सूखा रखने की आवश्यकता ही नाथ्व के इतिहास में आदि काल से आजतक मनुष्य को अपने आविष्कार में भाँति भाँति के सुधार करने की ओर प्रेरित करती रही। कुछ दृष्टियों से डोंगी अच्छी रही, तो कुछ दृष्टियों से बेड़ा। जैसे डोंगी में पानी भीतर नहीं आता, किंतु उसमें न तो बेड़े के बराबर वहनक्षमता ही है और न उतना स्थैर्य। नाव नाम से दोनों ही आज तक काम आते हैं और दोनों ही उपयोगिताओं को मिलाकर ही भाँति भाँति की नावें बनाई गई हैं। जैसे ही लकड़ी के तख्ते, भले ही वे कुल्हाड़ी से काट फाड़कर अनगढ़ रूप से बनाए गए हों, जोड़ने की कला लोगों ने सीखी, वे जलाभेद्य वकसानुमा नाव भी बनाने लगे। इसमें चौड़े पेंदे के कारण बेड़े की भांति स्थैर्य और ऊँची दीवारों के कारण डोंगी की भाँति सूखा स्थान उपलब्ध हुए। धीरे धीरे इसके सिरे कुछ कुछ गोल, कुछ कुछ नुकीले, कुछ कुछ ऊपर उठे हुए, इसी प्रकार भाँति भाँति के बनाए जाने लगे।

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