Hindi, asked by rvishasethi04, 10 months ago

need of cinema in Hindi​

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Answered by vyshnavi74
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भारतीय सिनेमा

India film clapperboard (variant).svg

पर्दों की संख्या  6,000 सिंगलप्लेक्स स्क्रीन (2016)

2,100 मल्टीप्लेक्स स्क्रीन [1]

• प्रति व्यक्ति  0.6 प्रति 100,000 (2016)[2]

निर्मित कथा चित्र  (2017)[3]

कुल  1,986

कुल लागत  (2016)[4]

कुल  2,200,000,000

कुल कमाई  (2017)[7]

कुल  156 करोड़ डॉलर / 11059 करोड़ रुपए [5] (US$)

राष्ट्रीय फ़िल्में  India: US$2.1 (2015)[6]

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भारतीय सिनेमा के अन्तर्गत भारत के विभिन्न भागों और भाषाओं में बनने वाली फिल्में आती हैं जिनमें हिन्दी सिनेमा (बॉलीवुड), तेलुगू सिनेमा (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना), असमिया सिनेमा (असम), मैथिली सिनेमा (बिहार), ब्रजभाषा चलचित्रपट (उत्तर प्रदेश), गुजराती सिनेमा (गुजरात), हरियाणवी सिनेमा (हरियाणा), कश्मीरी (जम्मू एवं कश्मीर), झॉलीवुड (झारखंड), कन्नड सिनेमा (कर्नाटक), मलयालम सिनेमा (केरल), मराठी सिनेमा (महाराष्ट्र), उड़िया सिनेमा (ओडिशा), पंजाबी सिनेमा (पंजाब), राजस्थान का सिनेमा (राजस्थान), कॉलीवुड (तमिलनाडु) और बाङ्ला सिनेमा (पश्चिम बंगाल) शामिल हैं।[8] भारतीय सिनेमा ने २०वीं सदी की शुरुआत से ही विश्व के चलचित्र जगत पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।। भारतीय फिल्मों का अनुकरण पूरे दक्षिणी एशिया, ग्रेटर मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व सोवियत संघ में भी होता है। भारतीय प्रवासियों की बढ़ती संख्या की वजह से अब संयुक्त राज्य अमरीका और यूनाइटेड किंगडम भी भारतीय फिल्मों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार बन गए हैं। एक माध्यम(परिवर्तन) के रूप में सिनेमा ने देश में अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल की और सिनेमा की लोकप्रियता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ सभी भाषाओं में मिलाकर प्रति वर्ष 1,600 तक फिल्में बनी हैं। भारतीय सिनेमा किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक लोगों द्वारा देखी गई फिल्मों का उत्पादन करता है; 2011 में, पूरे भारत में 3.5 बिलियन से अधिक टिकट बेचे गए, जो हॉलीवुड से 900,000 अधिक थे।भारतीय सिनेमा कभी-कभी बोलचाल की भाषा में इंडीवूड के रूप में जाना जाता है [9][10]

दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के जनक के रूप में जाना जाते हैं।[11][12][13][14] दादा साहब फाल्के के भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के प्रतीक स्वरुप और 1969 में दादा साहब के जन्म शताब्दी वर्ष में भारत सरकार द्वारा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना उनके सम्मान में की गयी। आज यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित और वांछित पुरस्कार हो गया है।[15]

२०वीं सदी में भारतीय सिनेमा, संयुक्त राज्य अमरीका का सिनेमा हॉलीवुड तथा चीनी फिल्म उद्योग के साथ एक वैश्विक उद्योग बन गया।[16] 2013 में भारत वार्षिक फिल्म निर्माण में पहले स्थान पर था इसके बाद नाइजीरिया सिनेमा, हॉलीवुड और चीन के सिनेमा का स्थान आता है।[17][18] वर्ष 2012 में भारत में 1602 फ़िल्मों का निर्माण हुआ जिसमें तमिल सिनेमा अग्रणी रहा जिसके बाद तेलुगु और बॉलीवुड का स्थान आता है।[9] भारतीय फ़िल्म उद्योग की वर्ष 2011 में कुल आय $1.86 अरब (₹ 93 अरब) की रही। [19] बढ़ती हुई तकनीक और ग्लोबल प्रभाव ने भारतीय सिनेमा का चेहरा बदला है। अब सुपर हीरो तथा विज्ञानं कल्प जैसी फ़िल्में न केवल बन रही हैं बल्कि ऐसी कई फिल्में एंथीरन, रा.वन, ईगा और कृष 3 ब्लॉकबस्टर फिल्मों के रूप में सफल हुई है।[16] भारतीय सिनेमा ने 90 से ज़्यादा देशों में बाजार पाया है जहाँ भारतीय फिल्मे प्रदर्शित होती हैं। [20] दंगल दुनिया भर में $ 300 मिलियन से अधिक की कमाई करके अंतरराष्ट्रीय ब्लॉकबस्टर बन गयी Biopics including Dangal became transnational blockbusters grossing over $300 million worldwide.[21]

Answered by Anonymous
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सिनेमा आधुनिक युग में मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन बन गया है । सिनेमा की शुरूआत भारत में परतंत्रता काल में हुई । दादा साहेब फाल्के जैसे जुझारू लोगों ने निजी प्रयत्नों से सिनेमा को भारत में प्रतिष्ठित किया । फिर धीरे- धीरे लोगों का सिनेमा के प्रति आकर्षण बढ़ा । आज भारत का चलचित्र उद्‌योग विश्व सिनेमा से प्रतिस्पर्धा कर रहा है ।

सिनेमा विज्ञान की अद्‌भुत देन है । फिल्मों के निर्माण में अनेक प्रकार के वैज्ञानिक यंत्रों का प्रयोग होता है । शक्तिशाली कैमरे, स्टूडियो, कंप्यूटर, संगीत के उपकरणों आदि के मेल से फिल्मों का निर्माण होता है । इसे पूर्णता प्रदान करने में तकनीकी-विशेषज्ञों, साज-सज्जा और प्रकाश-व्यवस्था की बड़ी भूमिका होती है । फिल्म बनाने में हजारों लोगों का सहयोग लेना पड़ता है । यह जोखिम भी होता है कि लोग इसे पसंद करते हैं या नापसंद करते हैं । अत: सिनेमा क्षेत्र में एक व्यवसाय की सभी विशेषताएँ पायी जाती हैं ।

शुरूआत में मूक सिनेमा का प्रचलन था । अर्थात् सिनेमा मैं किसी प्रकार की आवाज नहीं होती थी । लोग केवल चलता-फिरता चित्र देख सकते थे । बाद में आवाज वाली फिल्में बनने लगीं । चित्र के साथ ध्वनि के मिश्रण से इस क्षेत्र में क्रांति आई । इससे फिल्मों में गीत-संगीत का दौर आरंभ हुआ । लोगों का भरपूर मनोरंजन होने लगा । नौटंकी, थियेटर आदि मनोरंजन के परंपरागत साधन पीछे छूटने लगे । सिनेमाघरों का फैलाव महानगरों से लेकर छोटे-बड़े शहरों तक हो गया । बाद में श्वेत-श्याम फिल्मों की जगह जब रंगीन फिल्में बनने लगीं तो सिनेमा-उद्‌योग ने नई ऊँचाइयों को छूआ ।

सिनेमा का विश्व- भर में प्रसार हुआ है । दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में फिल्में बन रही हैं । भारत में भी सभी प्रमुख भाषाओं में फिल्में बनती हैं । इनमें भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी में बनी फिल्मों का सबसे अधिक बोलबाला है । भारत की व्यवसायिक राजधानी मुंबई इसका केन्द्र है । इसीलिए यह मायानगरी के नाम से प्रसिद्ध है ।

सिनेमा आम लोगों में बहुत लोकप्रिय है । लोग सिनेमाघर या टेलीविजन पर बहुत सारी फिल्में देखते हैं । युवा वर्ग हर नई फिल्म को देखना चाहता है । लोग फिल्मों के गाने भी पसंद करते हैं । पुरानी फिल्मों के गाने तो लोगों की जुबान पर होते हैं । नए गाने युवाओं को बहुत भाते हैं । विवाह, जन्मदिन और किसी विशेष अवसर पर लोग रेडियो और टेलीविजन पर फिल्मों के गाने सुनते हैं । टेलीविजन पर फिल्मों तथा फिल्म आधारित कार्यक्रमों का प्रसारण होता ही रहता है ।

सिनेमा को समाज का दर्पण माना जाता है । ममाज में जो कुछ अच्छी-बुरी घटनाएँ घटती हैं उनकी झलक फिल्मों में देखी जा सकती है । साथ ही साथ इनमें कल्पनागत बहुत सी ऐसी बातें दिखाई जाती हैं जिससे दर्शकों में भ्रम पैदा होता है । हिंसा और अश्लीलता की भी सिनेमा में प्रचुरता होती है । चूँकि युवा वर्ग नए फैशन की नकल करता है इसलिए उस पर सिनेमा का अत्यधिक प्रभाव पडता है । जहाँ लोग सिनेमा से अच्छी बातें सीखते हैं वहीं दूसरी ओर इसके बुरे प्रभाव से भी अछूते नहीं रहते ।

सिनेमा का निर्माण एक कला है । यह एक महँगी कला है । एक फिल्म के निर्माण में ही करोड़ों रुपये व्यय किए जाते हैं । फिल्म की कहानी तैयार की जाती है फिर इसमें काम करने वाले लोगों का चुनाव किया जाता है । फिल्म की कमान निर्देशक के हाथ में होती है । साथ ही आभीनेता, अभिनेत्री, सह- अभिनेता और अन्य कलाकार अपने-अपने अभिनय से फिल्म में जान डालने का कार्य करते हैं । गीत-संगीत देने वालों का भी प्रमुख स्थान होता है । अच्छी पटकथा तथा अच्छे निर्देशन से फिल्म सफल हो जाती है । फिल्म सफल होने पर निर्माता को अच्छी कमाई होती है ।

ADVERTISEMENTS:

फिल्मों की लोकप्रियता के साथ-साथ फिल्मी कलाकारों की भी समाज में बहुत प्रतिष्ठा है । लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे, आशा भोंसले जैसे गायक-गायिकाओं को उनके सुमधुर गीतों के कारण याद किया जाता है । दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, वहीदा रहमान, हेमा मालिनी जैसे कलाकारों से जनता लगाव महसूस करती है ।

इस तरह सिनेमा वर्तमान समय में मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन बना हुआ है । सिनेमा उद्‌योग निरंतर फल-फूल रहा है । आनेवाले समय में इसके विकास की ढेरों संभावनाएँ हैं ।

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