nehru gi na kase jana ki sabha ma ya kisano ko bharat ka jayan tha.
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ये कहानी बँटवारे के समय की है, जब दक्षिण एशिया में दो देश भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आए. उस दौरान कुछ देसी रियासतें भी थीं जो इन नए बने दोनों देशों में शामिल हो रही थीं.
पश्चिमी हिस्से सौराष्ट्र के पास जूनागढ़ इन्हीं में एक बड़ी रियासत थी. यहां की 80 फ़ीसदी हिंदू आबादी थी जबकि यहां से शासक मुस्लिम नवाब महबत ख़ान तृतीय थे.
यहां अंदरूनी सत्ता संघर्ष भी चल रहा था और मई 1947 में सिंध मुस्लिम लीग के नेता शाहनवाज़ भुट्टो को यहां का दीवान (प्रशासक) नियुक्त किया गया. वो मुहम्मद अली जिन्ना के क़रीबी संपर्क में थे.
जिन्ना की सलाह पर भुट्टो ने 15 अगस्त 1947 तक भारत या पाकिस्तान में शामिल होने पर कोई फ़ैसला नहीं लिया.
हालांकि जैसे ही आज़ादी की घोषणा हुई, जूनागढ़ ने पाकिस्तान के साथ जाने का फ़ैसला ले लिया था जबकि पाकिस्तान ने एक महीने तक इस अपील का कोई जवाब नहीं दिया.
13 सितंबर को पाकिस्तान ने एक टेलीग्राम भेजा और जूनागढ़ को पाकिस्तान के साथ मिलाने की घोषणा की. काठियावाड़ सरकार और भारत सरकार के लिए भी ये एक बड़ा झटका था
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