Netaji ka chashma kahaani ka uddeshaya
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‘नेता जी का चश्मा’ पाठ के लेखक स्वयंप्रकाश हैं। इस पाठ का उद्देश्य देश-प्रेम का वर्णन करना है।
देश का निर्माण कोई अकेला नहीं कर सकता है। जब-जब देश का निर्माण होता है उसमें कुछ नाम प्रसिद्ध हो जाते हैं और कुछ नाम गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। प्रस्तुत पाठ में भी यही दर्शाया गया है कि नगरपालिका वाले कस्बे के चौराहे पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगवाते हैं। मूर्तिकार नेता जी की मूर्ति का चश्मा बनाना भूल जाता है। उस कस्बे में कैप्टन नाम का व्यक्ति चश्मे बेचने वाला है। उसे बिना चश्मे के नेता जी का व्यक्तित्व अधूरा लगता है। इसलिए वह उस मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगवा देता है। सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। उसके मरने के बाद नेता जी की मूर्ति बिना चश्मे के चौराहे पर लगी रहती है। बिना चश्मे की मूर्ति हालदार साहब को भी दु:खी कर देती है। वह ड्राइवर से चौराहे पर बिना रुके आगे बढ़ने को कहते हैं लेकिन उनकी नजर अचानक मूर्ति पर पड़ती है जिस पर किसी बच्चे द्वारा सरकंडे का बनाया चश्मा लगा हुआ था। यह दृश्य हालदार साहब को देशभक्ति की भावना से भर देता है। अत: इस पाठ का प्रमुख लक्ष्य है कि देश के निर्माण में करोड़ों गुमनाम व्यक्ति अपने-अपने ढंग से योगदान देते हैं। इस योगदान में बड़े ही नहीं अपितु बच्चे भी शामिल होते हैं।
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नेताजी का चश्मा कहानी में लेखक
बताते हैं कि एक कस्बे के मुख्य चौराहे पर नेताजी की एक संगमरमर की मूर्ति थी।
लेकिन उस पर संगमरमर का चश्मा नहीं था। हालदार साहब हर पन्द्रहवें दिन उस कस्बे से
गुजरते थे। वे देखते थे कि हर बार नेताजी की आँखों पर एक नया चश्मा लगा होता था।
जब उन्होंने पान वाले से पूछा तो उसने उन्हें बताया कि कैप्टन नाम का एक बूढ़ा,
लंगड़ा आदमी चश्मे बेचता था। वही उनकी मूर्ति को बदल बदल कर चश्मा पहनाता था। एक
बार जब वे आये तो उन्होंने देखा कि नेताजी का चश्मा नहीं था। पूछने पर उन्हें पता
चला कि कैप्टन की मृत्यु हो गयी थी। अगली बार जब वे आये उन्होंने देखा कि उनके चेहरे
पर एक सरकंडे से बना चश्मा था। यह देखकर वे बहुत दुखी हुए।
इस कहानी के माध्यम से
स्वयं प्रकाश जी यह बताना चाहते हैं कि सभी नागरिकों में देश भक्ति की भावना होनी
चाहिए। हर व्यक्ति चाहें वह बड़ा हो या छोटा, अपने देश और समाज के लिए कुछ न कुछ कर सकता है। कैप्टन एक सामान्य और साधारण आदमी था। लेकिन उसमें भी देश भक्ति की भावना थी। वह अपनी क्षमता के अनुसार अपनी इस भावना को व्यक्त करता था।