NG Ranga Ne sanvidhan Sabha Mein alpsankhyak Shabd ki Vyakhya Arthik star per kiye jaane ka apman Kyon Kiya spasht kijiye?
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अपने जीवन के विषाद, विष, अंधेरे को निराला ने जिस तरह से करुणा और प्रकाश में बदला, वह हिंदी साहित्य में अद्वितीय है.Suryakant Tripathi Nirala The Wireसूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’. (जन्म: 21 फरवरी 1896 – मृत्यु: 15 अक्टूबर 1961)निराला की मृत्यु के बाद धर्मवीर भारती ने निराला पर एक स्मरण-लेख लिखा था. उसमें उन्होंने निराला की तुलना पृथ्वी पर गंगा उतार कर लाने वाले भगीरथ से की थी. धर्मवीर भारती ने लिखा है:‘भगीरथ अपने पूर्वजों के लिए गंगा लेकर आए थे. निराला अपनी उत्तर-पीढ़ी के लिए.’ निराला को याद करते हुए भगीरथ की याद आए या ग्रीक मिथकीय देवता प्रमेथियस/प्रमथ्यु की, तो यह आश्चर्य की बात नहीं है.निराला वास्तव में हिंदी कविता के प्रमथ्यु थे. प्रमथ्यु, मानव जाति का जन्मदाता, जो मनुष्यों के लिए ओलिम्पिस पर्वत से अग्नि उतार लाया था; जिसने अन्याय के खिलाफ, न्याय के पक्ष में मनुष्यों का साथ दिया था! क्या निराला की साहित्यिक साधना भी ऐसी ही नहीं थी?अपने रंग-रूप और डील-डौल में वास्तव में किसी ग्रीक देवता की तरह नजर आने वाले निराला में क्या वास्तव में ग्रीक देवता प्रमथ्यु की छाया नहीं थी? प्रमथ्यु ने मानवता के लिए असीम कष्ट सहे थे. निराला का कष्ट भी हिंदी जाति और उससे भी बढ़कर मनुष्यता को ऊपर उठाने के लिए सहा गया कष्ट था.More in भारत :जीएसटी कर संग्रह में कमी की वजह से हो रही राज्यों को भुगतान में देरी: निर्मला सीतारमणउत्तर प्रदेश: रेप आरोपी ने की पीड़िता के पिता की हत्या, पुलिस पर लापरवाही का आरोपकिसी नाबालिग को जेल में या पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता: सुप्रीम कोर्टजम्मू कश्मीर को केंद्रीय जेल में क्यों नहीं बदल देती केंद्र सरकार: यूसुफ़ तारिगामीनागरिकता क़ानून: यूपी में नागरिक सत्याग्रह निकाल रहे छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता गिरफ़्तारदागी उम्मीदवारों की जानकारी प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर डालें राजनीतिक दल: सुप्रीम कोर्टयह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि अगर हिंदी को निराला नहीं मिले होते, हिंदी साहित्य वैसा नहीं होता, जैसा कि वह है. निराला ने हिंदी कविता को एक आग दी, जो आज तक जल रही है. प्रमथ्यु को देवताओं के सरपंच जीयस ने पर्वत से बांध देने की सजा दी थी. उसकी सजा में यह भी शामिल था कि एक गिद्ध दिन में उसके कलेजे का मांस खाएगा और रात में उतना ही मांस फिर बढ़ जाएगा. निराला ने भी हिंदी साहित्य के लिए कुछ ऐसी ही यातना सही थी.निराला ने हिंदी के विष को पिया और उसे बदले में अमृत का वरदान दिया. 1923 ईस्वी में जब कलकत्ता से ‘मतवाला’ का प्रकाशन हुआ, उस समय (रामविलास शर्मा के अनुसार) निराला ने उसके कवर पेज के लिए दो पंक्तियां लिखी थीं:अमिय गरल शशि सीकर रविकर राग-विराग भरा प्याला
पीते हैं, जो साधक उनका प्यारा है यह मतवालाशर्मा आगे लिखते हैं: ‘निराला ने सोचा था, ‘मतवाला ऐसा पत्र होगा जिसमें जीवन, मृत्यु, अमृत और विष और राग और विराग-संसार के इस सनातन द्वंद्व पर रचनाएं प्रकाशित होंगीं. किंतु न ‘मतवाला’ इन पंक्तियों को सार्थक करता था, न हिंदी का कोई और पत्र. इन पंक्तियों के योग्य थी केवल निराला की कविता जिसमें एक ओर राग-रंजित धरती है- रंग गई पग-पग धन्य धरा- तो दूसरी ओर विराग का अंधकारमय आकाश है: है अमानिशा उगलता गगन घन अंधकार.’ इसलिए वे निराला की कविताओं में एक तरफ आनंद का अमृत तो दूसरी तरफ वेदना का विष होने की बात करते हैं.आनंद का अमृत निराला की प्रारंभिक कविताओं में है, वेदना का विष बाद की कविताओं में. निराला की कविता में इसीलिए लगातार ‘तम’ यानी अंधकार का जिक्र आता है. निराला खुद को और खुद के साथ अपने समय को अंधकार से घिरा पाते हैं- ‘है अमानिशा’. उनकी कविता लगातार इस अंधकार से लड़ती है. वह तम में खोती नहीं, तम के पार के प्रकाश में जाने का संघर्ष करती है ‘कौन तम के पार? (रे कह)’ और अपने पाठक को भी इस संघर्ष का माद्दा देती है. अपने जीवन में हर रोज प्रमथ्यु की तरह वेदना सहनेवाला यह कवि अंधकार को प्रकाश से तार-तार कर देता है.तम के अमार्ज्य रे तार-तार
जो, उन पर पड़ी प्रकाश-धारअपने जीवन के विषाद, विष, अंधेरे को निराला ने जिस तरह से करुणा और प्रकाश में बदला, वह हिंदी साहित्य में अद्वितीय है. रामविलास शर्मा की किताब निराला की साहित्य साधना (भाग-1), निराला के कष्टों से भरे जीवन का मार्मिक चित्र खींचती है.रामविलास शर्मा द्वारा लिखी गई निराला की यह जीवनी, दुनिया की श्रेष्ठतम जीवनियों में गिने जाने के लायक है. वास्तव में जीवनियां उतनी ही महान होती हैं, जितना महान जीवन होता है. निराला का जीवन भी उनकी कविता की तरह ही विलक्षण है. इस जीवनी को पढ़ने के बाद टॉलस्टॉय द्वारा मैक्सिम गोर्की के लिए कही गई बात याद आती है.गोर्की के जीवन के कष्टों के बारे में सुनकर टॉलस्टॉय ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा था कि आखिर ऐसी भीषण कष्टमय परिस्थितियों में रहने के बाद भी वह इतने करुणा से भरे कथाकार कैसे बन गए, जबकि उनके पास बुरा इनसान होने के तमाम मौके थे. निराला का जीवन और लेखन भी कुछ ऐसा ही था. उन्होंने भी अपने कष्टों को करुणा के अमृत में बदल दिया.आज इस बात की शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती कि निराला को बगैर अपना नाम दिए सिर्फ पैसे के लिए बांग्ला से हिंदी अनुवाद का काम करना पड़ा होगा, पैसों के लिए उन्होंने प्रूफ का काम किया होगा, संपादक होने का श्रेय मिले बगैर दूसरों के लिखे को चमकाया होगा, बच्चों के लिए बाजार की मांग के हिसाब से पुस्तिका लिखी होगी, दवाइयों के लिए विज्ञापन लिखे होंगे, शादी-विवाद जैसे मौकों के लिए कवितानुमा पंक्तियां तक लिखी होंगी.निराला ने अपने व्यक्तिगत दुर्भाग्य के साथ दुनिया के इस क्रूर छल और अपमान को भी सहा. पर हिंदी साहित्य के खाते में निराला का होना हिंदी का सौभाग्य है.
Newton's Color Disk: When rotated, appears white. Newton's Color Disk is mounted on a motor shaft. When the motor is turned on, the disk rotates rapidly. The segments of color on the disc are apportioned so that, when the disc is rotating, an approximate white is formed by the mixing of the colors.