niband swadhyay ka mahatva
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स्वाध्याय का सीधा मतलब है – स्वयं का स्वयं के द्वारा अध्ययन । सामान्यतया हमारे साथ ऐसा होता है कि हम अपना अधिकांश समय दुसरे मनुष्यों तथा वस्तुओं का अध्ययन करने में निकाल देते है । परिणामस्वरूप हमारे पास स्वयं का अध्ययन करने के लिए समय ही नहीं बचता है । जब हम स्वयं को समय नहीं दे पाते है तो आस – पास के वातावरण का रंग हमारे ऊपर चढने लगता है । जो हमें दिन – प्रतिदिन कुविचारों के कीचड़ से मैला करता रहता है ।
यदि हम प्रतिदिन के अपने सभी साफ – सफाई के क्रियाकलापों को बंद कर दे, तो क्या हम स्वच्छ और स्वस्थ रह पाएंगे ? कभी नहीं ! यदि हमने घर में झाड़ू लगाना बंद कर दिया तो कुछ ही दिनों में सब जगह धुल और मिट्टी ही नजर आएगी । यदि हम एक दिन के लिए भी ना नहाये तो शरीर बदबू मारने लगता है । इसीलिए हम प्रतिदिन अपनी भौतिक साफ सफाई का ध्यान बखूबी रखते है । किन्तु क्या हम अपने मन की भी साफ – सफाई का ऐसा ही खयाल रखते है ? शायद नहीं ! क्यों ?
शायद इसलिए कि हमें उसकी गन्दगी दिखती नहीं । किन्तु यदि गहराई से विचार किया जाये तो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, कपट, पैशुनता, हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य, अशौच, ईश्वर में अश्रृद्धा और अविश्वास, परिग्रह और भय आदि इसी वातावरण के कीचड़ की गन्दगी है जो हमारे विचारों तथा संस्कारों को प्रदूषित करती रहती है । जब कोई ध्यान नहीं दिया जाता तो यही कुविचार हमारे मन की गहराइयों में जमने लगते है जिन्हें संस्कार कहा जाता है । आपने तो सुना होगा –
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।
बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥