nibandh Dahej Pratha
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भारत में पुराने समय से ही बहुत सी कुरीतिक प्रथाए चली आ रही है जिसकी वजह से महिलाओ पर बहुत अत्याचार होता है| दहेज़ प्रथा उन्ही में से एक है| यह प्रथा पुराने समय से चली आ रही है और अब भी काम नहीं हुई है| इस प्रथा के चलते लड़की के माँ और पिता को शादी करवाने के लिए बहुत भारी दहेज़ या पैसे देने पड़ते है जो की एक गलत कार्य है| आज के समय में लड़किया लड़को के कंधे से खंडा मिलाते हुए चलती आ रही है तो इस प्रथा का होना ग़ैरक़ानूनीक है| आज के इस पोस्ट में हम आपको दहेज प्रथा पर निबंध wikipedia, दहेज प्रथा पर निबंध हिंदी में, दहेज प्रथा पर निबंध लिखे, दहेज प्रथा एक अभिशाप पर निबंध, आदि की जानकारी देंगे|
भारत में दहेज एक पुरानी प्रथा है । मनुस्मृति मे ऐसा उल्लेख आता है कि माता-कन्या के विवाह के समय दाय भाग के रूप में धन-सम्पत्ति, गउवें आदि कन्या को देकर वर को समर्पित करे ।
यह भाग कितना होना चाहिए, इस बारे में मनु ने उल्लेख नहीं किया । समय बीतता चला गया स्वेच्छा से कन्या को दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे वरपक्ष का अधिकार बनने लगा और वरपक्ष के लोग तो वर्तमान समय में इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मान बैठे हैं ।
अखबारों में अब विज्ञापन निकलते है कि लड़के या लडकी की योग्यता इस प्रकार हैं । उनकी मासिक आय इतनी है और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत सम्माननीय है । ये सब बातें पढ़कर कन्यापक्ष का कोई व्यक्ति यदि वरपक्ष के यहा जाता है तो असली चेहरा सामने आता है । वरपक्ष के लोग घुमा-फिराकर ऐसी कहानी शुरू करते हैं जिसका आशय निश्चित रूप से दहेज होता है ।
दहेज मांगना और देना दोनों निन्दनीय कार्य हैं । जब वर और कन्या दोनों की शिक्षा-दीक्षा एक जैसी है, दोनों रोजगार में लगे हुए हैं, दोनों ही देखने-सुनने में सुन्दर हैं, तो फिर दहेज की मांग क्यों की जाती है? कन्यापक्ष की मजबूरी का नाजायज फायदा क्यों उठाया जाता है?
शायद इसलिए कि समाज में अच्छे वरों की कमी है तथा योग्य लड़के बड़ी मुश्किल से तलाशने पर मिलते हैं । हिन्दुस्तान में ऐसी कुछ जातियां भी हैं जो वर को नहीं, अपितु कन्या को दहेज देकर ब्याह कर लेते हैं; लेकिन ऐसा कम ही होता है । अब तो ज्यादातर जाति वर के लिए ही दहेज लेती हैं ।
भारत में दहेज एक पुरानी प्रथा है । मनुस्मृति मे ऐसा उल्लेख आता है कि माता-कन्या के विवाह के समय दाय भाग के रूप में धन-सम्पत्ति, गउवें आदि कन्या को देकर वर को समर्पित करे ।
यह भाग कितना होना चाहिए, इस बारे में मनु ने उल्लेख नहीं किया । समय बीतता चला गया स्वेच्छा से कन्या को दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे वरपक्ष का अधिकार बनने लगा और वरपक्ष के लोग तो वर्तमान समय में इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मान बैठे हैं ।
अखबारों में अब विज्ञापन निकलते है कि लड़के या लडकी की योग्यता इस प्रकार हैं । उनकी मासिक आय इतनी है और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत सम्माननीय है । ये सब बातें पढ़कर कन्यापक्ष का कोई व्यक्ति यदि वरपक्ष के यहा जाता है तो असली चेहरा सामने आता है । वरपक्ष के लोग घुमा-फिराकर ऐसी कहानी शुरू करते हैं जिसका आशय निश्चित रूप से दहेज होता है ।
दहेज मांगना और देना दोनों निन्दनीय कार्य हैं । जब वर और कन्या दोनों की शिक्षा-दीक्षा एक जैसी है, दोनों रोजगार में लगे हुए हैं, दोनों ही देखने-सुनने में सुन्दर हैं, तो फिर दहेज की मांग क्यों की जाती है? कन्यापक्ष की मजबूरी का नाजायज फायदा क्यों उठाया जाता है?
शायद इसलिए कि समाज में अच्छे वरों की कमी है तथा योग्य लड़के बड़ी मुश्किल से तलाशने पर मिलते हैं । हिन्दुस्तान में ऐसी कुछ जातियां भी हैं जो वर को नहीं, अपितु कन्या को दहेज देकर ब्याह कर लेते हैं; लेकिन ऐसा कम ही होता है । अब तो ज्यादातर जाति वर के लिए ही दहेज लेती हैं ।
भारत में दहेज एक पुरानी प्रथा है । मनुस्मृति मे ऐसा उल्लेख आता है कि माता-कन्या के विवाह के समय दाय भाग के रूप में धन-सम्पत्ति, गउवें आदि कन्या को देकर वर को समर्पित करे ।
यह भाग कितना होना चाहिए, इस बारे में मनु ने उल्लेख नहीं किया । समय बीतता चला गया स्वेच्छा से कन्या को दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे वरपक्ष का अधिकार बनने लगा और वरपक्ष के लोग तो वर्तमान समय में इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मान बैठे हैं ।
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दहेज मांगना और देना दोनों निन्दनीय कार्य हैं । जब वर और कन्या दोनों की शिक्षा-दीक्षा एक जैसी है, दोनों रोजगार में लगे हुए हैं, दोनों ही देखने-सुनने में सुन्दर हैं, तो फिर दहेज की मांग क्यों की जाती है? कन्यापक्ष की मजबूरी का नाजायज फायदा क्यों उठाया जाता है?
शायद इसलिए कि समाज में अच्छे वरों की कमी है तथा योग्य लड़के बड़ी मुश्किल से तलाशने पर मिलते हैं । हिन्दुस्तान में ऐसी कुछ जातियां भी हैं जो वर को नहीं, अपितु कन्या को दहेज देकर ब्याह कर लेते हैं; लेकिन ऐसा कम ही होता है । अब तो ज्यादातर जाति वर के लिए ही दहेज लेती हैं ।
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