Nibandh lekhan
➡️भारतीय समाज में नारी⬅️
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Answers
◻️◻️ भारतीय समाज में नारी◻️◻️
⚛प्रस्तावना :
भारतीय समाज में नारी सदा से ही सम्मानीय रही है।
हमारे यहां विश्वास है - जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं। नारी के बिना मानव जीवन का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता नारी के बिना जीवन नीरस शुष्क और व्यर्थ हो जाता है । नारी का गौरवपूर्ण इतिहास हमें नारी उत्थान की ओर सोचने को विवश करता है। नारी प्रतिदिन उत्थान की ओर अग्रसर है।
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⚛विभिन्न युगों में नारी का उत्थान:
नारी प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में उच्च स्थान रखती है। प्राचीन युग में गृह लक्ष्मी मानी जाने वाली नारी को सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक कार्यों में पुरुष के समान भाग लेने का पूर्ण अधिकार प्राप्त था । स्त्रियां चारों ओर आश्रमों में प्रविष्ट होती थी और वेद पाठ करती थी। युद्ध के मैदान में भी पुरुषों के साथ नारी भाग लेती थी। किंतु देश की परतंत्रता के साथ नारी परतंत्र होती चली गई।
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⚛वर्तमान काल की नारी:
आधुनिक काल नारी चेतना के जागरण का काल है । सदियों की दास्तां से दुखी नारी सहानुभूति का पात्र बनी ।
बंगाल में राजा राममोहन राय और उत्तर भारत में दयानंद सरस्वती ने नारी को पुरुष के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए बिगुल बजाया।
कभी वाणी ने भी नारी की स्वतंत्रता मांग की।
नारी नारी को पुनः देवी, मां, सह चारी, प्रेयसी का गौरवपूर्ण पद प्राप्त हुआ।
नारियों ने सामाजिक ,धार्मिक राजनीतिक और साहित्यिक सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ कर कार्य किया विजयलक्ष्मी पंडित कमला नेहरू सरोजिनी नायडू ,इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा सुभद्रा कुमारी चौहान ,महादेवी वर्मा ,अमृता प्रीतम ,शिवानी आदि अनेक नाम ऐसे हैं जो सदा स्मरण किए जाएंगे।
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⚛नारी के प्रति राष्ट्र और समाज का कर्तव्य:
समाज और राष्ट्र का भी कर्तव्य है किनारी को अपने उत्थान में सहयोग दें और उन्हें प्रोत्साहित करें समाज और राष्ट्र को चाहिए कि वह नारी की मर्यादा को जी जान से रक्षा करें और उन्हें अपने उत्थान के लिए वातावरण दे ।
आज भी समाज में नारी तमाम तरह के बंधनों में जकड़ी है। राष्ट्र और समाज नारी को इन बंधनों से मुक्ति दिलाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करें तब नारी उत्थान की सीमा सफल हो पाएगी ।
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⚛उपसंहार:
आज नारी भोग वाद के आकर्षण में फंसी हुई है ।परंतु यह सत्य है कि नारी अपनी मध्यकाल में खोई हुई प्रतिष्ठा को प्राप्त कर चुकी है ।अब नारी दया की पात्र नहीं है सरकार द्वारा भी नारी उत्थान की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ।इसी प्रयास का एक पड़ाव बालिका वर्ग भी है जो महिलाओं के उत्थान का एक प्रमुख सोपान बनेगा।
राष्ट्रीय परिपेक्ष में नारी उत्थान राष्ट्र उत्थान का संकल्प आज लेना चाहिए।
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Answer:
भारतीय समाज में नारी की स्थिति अनेक प्रकार के विरोधों से ग्रस्त रही है। एक तरफ़ वह परंपरा में शक्ति और देवी के रूप में देखी गई है, वहीं दूसरी ओर शताब्दियों से वह ‘अबला’ और ‘माया’ के रूप में देखी गई है । दोनों ही अतिवादी धारणाओं ने नारी के प्रति समाज की समझ को, और उनके विकास को उलझाया है। नारी को एक सहज मनुष्य के रूप देखने का प्रयास पुरुषों ने तो किया ही नहीं, स्वयं नारी ने भी नहीं किया। समाज के विकास में नारी को पुरुषों के बराबर भागीदार नहीं बनाने से तो नारी पिछड़ी हुई रही ही, किंतु पुरुष के बराबर स्थान और अधिकार माँगने के नारी मुक्ति आंदोलनों ने भी नारी की स्थिति को काफ़ी उछाला । नारी के संबंध में धार्मिक-आध्यात्मिक धारणा ने अनेक तरह की भ्रांतियाँ पैदा कीं तो आधुनिक समतावादी समाज में नारी और पुरुष दोनों के एक-जैसा समान समझने के कारण भी टकराव पैदा हुआ। भारत की संस्कृति हज़ारों वर्ष पुरानी होने के कारण इसमें नारी के जो विविध रूप अंकित हुए उनके वास्तविक एवं व्यावहारिक पक्ष को समझने में भी बहुत कठिनाई हुई। इसलिए न केवल भारतीय नारी की स्थिति को बल्कि पुरुष एवं पुरुष प्रधान समाज के परिप्रेक्ष्य में विश्व नारी को समझना एक जटिल कार्य है।
भारत की कुल जनसंख्या में नारी का अनुपात 48 प्रतिशत है और यह लगातार कम होता जा रहा है। 1901 में प्रति एक हज़ार पुरुषों पर नारी का अनुपात 972 से घटकर 2012 में 940 है किंतु 0-6 वर्ष की आयु में यह अनुपात 916 ही रह गया है और इसके घटने की गति और अधिक बढ़ती जा रही है। यद्यपि यह तो सामाजिक चिंता का विषय है ही कि भारतीय समाज में प्रतिवर्ष स्त्रियों की संख्या पुरुषों की तुलना में कम होती जा रही है, किंतु पुरुषों की तुलना में उनका विकास भी असंतुलित है। शिक्षा की दृष्टि से भारत में औसत शिक्षा ? प्रतिशत कि तुलना में ? प्रतिशत कम है। क्या कारण है कि इस मानव-सृष्टि और संस्कृति की रचना में पुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक योगदान करने वाली नारी स्वयं के विकास को लेकर उपेक्षित रही। ‘बलवान पुरुष’ को जन्म देनेवाली नारी ‘ आँचल में दूध एवं आँखों में पानी’ लिए हुए ‘अबला’ ही बनी रही।
मानव समाज के विकास का यह खुला रहस्य है कि जब तक सभी लोग सहकारिता से भागीदार नहीं होते, सबका विकास संभव नहीं है। इसलिए स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार तथा सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक क्षेत्रों में नारी की पुरुषों के बराबर ही सहभागिता अनिवार्य है, और तभी संपूर्ण समाज का विकास हो सकेगा । नारी का विकास केवल नारी की खुशहाली की दृष्टि से ही आवश्यक नहीं है बल्कि वह संपूर्ण समाज के संतुलित विकास की दृष्टि से भी अनिवार्य है।