Hindi, asked by ajay631sharma6, 2 months ago

nibandh Mere Jeevan Ka uddeshya

pura essay likhna usse main brainlist mark karungi ♡ ​

Answers

Answered by ndsharma843
1

Answer:

मेरे जीवन का लक्ष्य अथवा उद्देश्य

भूमिका- मनुष्य अनेक कल्पनाएं करता है । वह अपने को ऊपर उठाने के लिए योजनाएं बनाता है । कल्पना सबके पास होती है लेकिन उस कल्पना को साकार करने की शक्ति किसी-किसी के पास होती है । सपनों में सब घूमते हैं । सभी अपने सामने कोई-न कोई लक्ष्य रख कर चलते हैं । सभी महत्वाकांक्षा का मोती प्राप्त करना चाहते हैं ।

विभिन्न लक्ष्य- विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न लक्ष्य होते हैं । कोई डॉक्टर बनकर रोगियों की सेवा करना चाहता है तो कोई इंजीनियर बनकर निर्माण करना चाहता है । कोई कर्मचारी बनना चाहता है तो कोई व्यापारी । कोई नेता बनना चाहता है तो कोई अभिनेता । मेरे मन में भी एक कल्पना है । मैं अध्यापक बनना चाहता हूँ । भले ही कुछ लोग इसे साधारण उद्देश्य समझें पर मेरे लिए यह गौरव की बात है । देश सेवा और समाज सेवा का सबसे बड़ा सा धन यही है ।

मेरे लक्ष्य का महत्व- मैं व्यक्ति की अपेक्षा समाज और समाज की अपेक्षा राष्ट्र को अधिक महत्व देता हूं । स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ को महत्व देता हूँ । मैं मानता हूँ कि जो ईंट नींव बनती है,महल उसी पर खड़ा होता है । मैं धन, कीर्ति और यश का भूखा नहीं । मेरे सामने तो राष्ट्र-कवि श्री मैथिली शरण गुप्त का यह सिद्धान्त रहता है ‘समष्टि के लिए व्यष्टि हों बलिदान’ । विद्यार्थी देश की नींव है । मैं उस नींव को मजबूत बनाना चाहता हूँ ।

Answered by AaryaDhide
1

Answer:

मेरे जीवन का उद्देश्य

Explanation:

आधुनिक युग योजनाओं का है। बिना योजना के हम दिशाहीन भटकते रहते हैं। यदि हमने कोई योजना बनाई तो हम निरन्तर उसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं। हर प्रकार से अपनी शक्ति एक बिन्दु पर केन्द्रित रखें तो उद्देश्य की प्राप्ति में सफलता मिलती है। उचित साधनों को एकत्रित करके हम उद्देश्य की ओर सुगमता से चरण बढाते रहते हैं।

मैंने पर्याप्त सोच विचार करके अपने जीवन का उद्देश्य सफल वकील बनना निश्चित कर लिया है। इसकी प्रेरणा मुझे पिता जी से मिली है। वे भी एक सफल वकील है। उनके पास प्रति दिन अनेकों मुवक्किल आते रहते है। मैं भी उनके सम्पर्क में आता हूं। उनका व्यवहार एवं आचारण देखता रहता हूं। मेरे पिता जी जिस प्रकार अनेकों मुवक्किलों को आकर्षित करते है, मैं भी उसी प्रकार का प्रयत्न करूंगा।

मैं अभी दशवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ। कठोर परिश्रम से अच्छे अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण होने का प्रयत्न कर रहा हूं। इसके पश्चात तीन वर्ष स्नातक बनने में व्यतीत होंगे। मुझे समाज संसार को समझने परखने का अवकाश मिलेगा, बुद्धि में भी परिपक्वता आ जाएगी।

बी.ए. पास करने बाद वकालत की शिक्षा प्राप्त करूंगा। इसमे दो वर्ष लग जाएंगे। वकालत उत्तीर्ण करके सर्व प्रथम पिता जी के साथ रहकर अनुभव प्राप्त करूंगा। थोड़ा अनुभव प्राप्त हो जाने पर मैं स्वतंत्र वकील बन जाऊंगा।

मेरे पिताजी के पास बहुत से मुकद्दमें आते है। मैं देखता हूं कि उनमें से बहुत से झूठे होते हैं। किसी को सताने के लिए, किसी की सम्पत्ति पर अधिकार करने के लिए झूठी कहानियां गढ कर लोग जीतना चाहते हैं। पर मैंने निश्चय कर लिया है कि ऐसे मुकद्दमे मैं नहीं लूंगा। मैं तो केवल सच्चाई का वकील बनना चाहता हूं। वकील बनकर, सताए गए लोगों की सहायता करना ही मेरे जीवन का उद्देश्य रहेगा।

कुछ वकील अपने धन लाभ के लिए मुकद्दमों को अधिक से अधिक समय तक चलाने में ही अपनी सफलता मानते हैं। यह उनके लालच के कारण ही होता है। इससे मुवक्किल परेशान हो जाते हैं। कहते हैं कि न्याय मिलने में देरी भी अन्याय कहलाता है। मेरा प्रयत्न होगा कि किसी भी मुकद्दमें के निर्णय में अनावश्यक विलम्ब न हो।

ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि धनवान एवं सम्पन्न लोग गरीबों पर अत्याचार करते है। उनकी सम्पत्ति हड़प लेते हैं। वे बेचारे इस स्थिति में नहीं होते कि वकील को फीस देकर खडा कर सकें। अन्याय को सहन करने के अतिरिक्त उनका कोई विकल्प नही रहता। ऐसे लोगों के लिए मैं निशुल्क वकालत करूंगा। अन्यायी और अत्याचारियों के विरुद्ध मैं लडकर उनको उचित कठोर दण्ड दिलवाऊंगा।

जीविका निर्वाह के लिए धन की आवश्यक्ता होती है। इसलिए अन्य मुकद्दमें तो लिए ही जाएंगे, जिसकी फीस से मेरा और परिवार का निर्वाह होता रहे। कुछ प्रतिशत मुकद्दमें गरीब असहायों के होंगे जिनसे कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।

मैं अपने मुकद्दमों का पूरा अध्ययन करके ही अदालतों में जाया करूंगा। सरदार पटेल एवं पंडित जवाहर लाल नेहरू का आदर्श मेरे सामने होगा। सरदार पटेल को मुकद्दमें की बहस करते समय अपनी पत्नी के निधन का तार मिला। उन्होंने उसे पढा और बहस में लग गए। कर्तव्य निष्ठा का कैसा अनुपम उदाहरण है। आजाद हिन्द के सैनिकों पर जब मुकद्दमा चलाया जाने लगा तो राजनीति से अवकाश लेकर नेहरूजी ने उनकी पैरवी की, उनका उदाहरण भी भारत के इतिहास की थाती है। मैं भी एक वकील के रूप में ऐसे ही आदर्श स्थापित करना चाहता हूं। भगवान मेरी कामना पूरी करें।

Similar questions