nibandh- नारी के विविध रूप
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Explanaनारी के रूप
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जग में नारी हैं कई,पर हैं उनमे भेद।
इक नारी घर जोड़ती,दूजा करती छेद।।
जो नारी घर जोड़ दे,लक्ष्मी के हैं रूप।
फर्क नहीं उस नार को,छाँव मिले या धूप।।
प्रेम बहे परिवार में,जहाँ गुणी हो नार।
गुजरे दिन सुख में सदा,विपदा माने हार।।
ससुरा हो या मायका,दे सबको सम्मान।
हरपल ऐसी नार की,करे लोग गुणगान।।
जो नारी मन में सदा,रखे कपट के भाव।
ऐसी नारी की जुबाँ,देवै नित ही घाव।।
सुने पराई बात जो,घर की बातें टाल।
आदर न कही पा सके,सदा बजावै गाल।।
घर की बातें गैर को बाहर जो बतलाय।
सारे जग के सामने,खुद की हँसी कराय।।
कपट भाव को त्याग कर,सबको दे सम्मान।
लागे उनका घर सदा,मानो स्वर्ग समान।।
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव(छ.ग.)
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। tion: