Nibandh of Joy of giving in hindi
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दिल से और खुशी-खुशी दान देना
दान देने के मामले में, प्रेषित पौलुस ने लिखा: “हर कोई जैसा उसने अपने दिल में ठाना है, वैसा ही करे, न कुड़कुड़ाते हुए, न ही किसी दबाव में, क्योंकि परमेश्वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।” यहोवा कभी किसी के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता कि उसे सच्ची उपासना का साथ देना ही देना है। इसके बजाय, वह अपने सेवकों को यह छूट देता है कि वे अपनी मरज़ी से और खुशी-खुशी दान देने के ज़रिए अपनी भक्ति का सबूत दें। और परमेश्वर के लोगों ने दिल खोलकर सच्ची उपासना की खातिर दान दिए हैं। यह सिलसिला मुद्दतों से चला आ रहा है। आइए इसकी तीन मिसालों पर गौर करें।
यहोवा जब इसराएलियों को मिस्र से बाहर लाया, तब उसने उन्हें एक निवास-स्थान बनाने का निर्देश दिया। इसे बनाने के लिए कई चीज़ों की ज़रूरत थी, इसलिए इसराएलियों को ये चीज़ें दान करने का न्यौता दिया गया। तब “प्रत्येक मनुष्य जिसके मन ने उसे प्रोत्साहित किया,” सोना-चाँदी, गहने-जवाहरात और दूसरी चीज़ें लाया। सभी ने इतनी उदारता से दिए कि आखिरकार, उन्हें रोकने के लिए एक घोषणा करनी पड़ी।
सदियों बाद, जब यहोवा का मंदिर बनाया जाना था, तो एक बार फिर परमेश्वर के लोगों के सामने उदारता से देने का मौका आया। राजा दाविद ने इस काम के लिए अपनी तरफ से बहुत बड़ा दान दिया। उसने दूसरों को भी ऐसा करने का बुलावा दिया। सभी ने खुशी-खुशी दान दिया। नतीजा, इतना दान इकट्ठा हुआ कि अगर केवल सोने-चाँदी का हिसाब लगाया जाए, तो उसकी कीमत आज के समय में 4,800 अरब रुपए से भी ज़्यादा होगी! यही नहीं, अपनी इच्छा से यहोवा को भेंट देने की वजह से लोग बेहद खुश थे
यीशु के शुरूआती चेलों ने भी खुशी-खुशी दान दिया। ईसवी सन् 33 में, पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में करीब 3,000 लोगों ने बपतिस्मा लिया। इनमें से कई लोग यरूशलेम के रहनेवाले नहीं थे। ऊपर से वे गरीब भी थे। इसलिए कुछ समय तक दान जमा करने का इंतज़ाम किया गया, ताकि वे यरूशलेम में रहकर अपने नए विश्वास के बारे में और ज़्यादा सीख सकें। इसके लिए कई भाइयों ने अपनी जायदाद बेचकर प्रेषितों को पैसा दिया। उन भाइयों ने जिस तरह अपना प्यार और विश्वास दिखाया, यह देखकर यहोवा का दिल ज़रूर बाग-बाग हुआ होगा!
देने की खुशी पर निबंध इस प्रकार है
Explanation:
किसी को कुछ देने की खुशी को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है इसे केवल महसूस किया जा सकता। यह एक ऐसा एहसास है जो हमें किसी उपहार प्राप्त करने से भी ज्यादा सुकून देता है।
कुछ आधुनिक अध्ययनों से पता चला है कि जब हम किसी को उपहार देते हैं या प्राप्त करते हैं तो उस समय हमारे दिमाग के कुछ हिस्से सक्रिय हो जाते हैं। उपहार या किसी को कुछ देना जरूरी नहीं है पैसा ही हो या किसी भी रूप में हो सकता है जैसे किसी को खुशी देना, किसी के साथ समय व्यतीत करना या किसी के दुखों को सुनना आदि।
कुछ लोग दूसरों को यह समाज के लिए देखभाल करने और काम करने में बहुत सुख पाते हैं इसलिए उन्हें जो खुशी दूसरों की देखभाल करने में मिलती है वह उन्हें अपार संतुष्टि देती है और वह किसी को कुछ देने का सुख प्राप्त करते हैं।
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