Hindi, asked by avnisingh1257, 1 year ago

nibandh on aadhunikta or naari

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Answered by Anonymous
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हर धर्म का एक ही निचोड़ है कि मनुष्य को नैतिक शिक्षा देना परम आवश्यक है और इसका आंरभ उसके मनुष्य के बाल्यकाल से हो जाता है। सब पर दया रखना, कभी झूठ नहीं बोलना, बड़ों का आदर करना, दुर्बलों को तंग न करना, चोरी न करना, हत्या जैसा कार्य न करना, सच बोलना, सबको अपने समान समझते हुए उनसे प्रेम करना, सबकी मदद करना, किसी की बुराई न करना आदि कार्य नैतिक शिक्षा या नैतिक मूल्य है। सभी धर्म गंथों का यही उद्देश्य रहा है। मनुष्य में इन गुणों का विकास करना ताकि वह अपने व मानवता को सही सही रास्ते में ले जा सके। विद्यार्थी की शिक्षा आरंभ होती है, उससे बहुत पहले ही घरवालों द्वारा उसे नैतिक मूल्यों से अवगत करा दिया जाता है। जैसे-जैसे उसकी शिक्षा का स्तर बढ़ता जाता है। उसके मूल्यों में विस्तार होना आवश्यक हो जाता है। यह मूल्य उसे सिखाते हैं की उसे समाज में, बड़ों के साथ, अपने मित्रों के साथ व अन्य लोगों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए। किताबों में कहानी व महत्वपूर्ण घटनाओं के माध्यम से उसके मूल्यों को संवारा व निखारा जाता है। वह एक ऐसी गीली मिट्टी के समान होता है, उसे जैसा रूप दे दिया जाए उसका स्वरूप वैसा ही बनता है। यदि एक देश का विद्यार्थी नैतिक मूल्यों से रहित होगा, उस देश का कभी विकास नहीं हो सकता। लेकिन विडंबना है कि यह नैतिक मूल्य हमारे जीवन से धूंधले हो रहे हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली से नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है। क्योंकि इनमें नैतिक शिक्षा का अभाव है। अपने स्वार्थ सिद्धी के लिए हम किसी भी हद तक गिर जाते हैं। ये इस बात का संकेत है कि समाज कि स्थिति कितनी हद तक गिर चुकी है। चोरी, डकैती, हत्याएँ, धोखा-धड़ी, जालसाज़ी, बेईमानी, झूठ, दूसरों और बड़ों का अनादर, गंदी आदतें नैतिक मूल्यों में आई कमी का परिणाम है। हमें चाहिए नैतिक मूल्यों के मूल्य को पहचाने और इसे अपने जीवन में विशेष स्थान दे। मनुष्य को जिस तरह मनुष्य को जीने के लिए हवा, पानी और भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मनुष्य को नैतिक मूल्यों की भी उतनी ही आश्यकता होती है। इनके बिना मनुष्य जानवर के समान है।

avnisingh1257: thnx
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