Nibandh on "चुनाव 2019"..
min. 200 words
max. 250 words..
Answers
नरेंद्र मोदी इस समय न सिर्फ़ बीजेपी से, बल्कि इस विचार की पितृ संस्था आरएसएस से भी बड़े ब्रांड माने जा रहे हैं.
यह मामला बीजेपी-एनडीए खेमे में जितना सेटल्ड यानी तय है उतनी ही अनिश्चितता विपक्षी खेमे में है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक सवाल के जवाब में कह चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं.
इसके अलावा भी कई दलों के नेताओं के मन में यह महत्वाकांक्षा है कि वे प्रधानमंत्री बनें. देश का नेता कैसा हो, हमारे नेता जैसा हो का उद्घोष पार्टियों के आयोजनों में होता रहता है. जब कोई पार्टी नेता कहता है कि प्रधानमंत्री का फैसला चुनाव नतीजों के बाद होगा तो इस बात में एक अनकही बात यह भी होती है कि हो सकता है कि मेरी बारी आ जाए.
आखिर यह कहां लिखा है कि सबसे बड़े गठबंधन दल का नेता ही प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनेगा. यहां तो एक विधायक मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री बनने तक की नजीर है और देश ने इंद्र कुमार गुजराल जैसा प्रधानमंत्री भी देखा है, जिनके खेमे में एक भी सासंद नहीं था.
बल्कि जिनका कोई खेमा ही नहीं था. एचडी देवेगौड़ा से लेकर चरण सिंह और चंद्रशेखर भी प्रधानमंत्री बन चुके हैं. इसलिए सैद्धांतिक रूप से देखें तो प्रधानमंत्री कोई भी बन सकता है.
कुल मिलाकर, विपक्ष के खेमे में नेतृत्व का मामला अनिर्णीत नजर आ रहा है.
इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES
रेस में तीन तरह के चेहरे
इस रेस में विपक्ष की ओर से अभी तीन तरह के चेहरे दिख रहे हैं. राहुल गांधी विपक्ष के सबसे बड़े दल के अध्यक्ष के तौर पर, स्वाभाविक रूप से, एक दावेदार हैं. दूसरी दावेदारी शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे क्षेत्रीय दलों के नेताओं की है, जो यह प्रयास करेंगी/करेंगे कि फेडरल फ्रंट जैसी कोई चीज बनाकर महागठबंधन के अंदर अपनी सौदेबाजी मजबूत करें. लेकिन इस बीच एक तीसरा नाम उभरकर आ रहा है बहनजी यानी मायावती का.
2014 के लोकसभा चुनाव में वोट पाने के लिहाज से बीजेपी और कांग्रेस के बाद, बहुजन समाज पार्टी देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है. उसे कुल वोट का 4.1 फीसदी हासिल हुआ. यानी देश के 2 करोड़ 29 लाख लोगों ने बीएसपी को वोट डाला इमेज कॉपीरइटPTI
लेकिन देश के कई राज्यों में बिखरे इस वोट से पार्टी को लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली. जबकि बीएसपी से कम वोट पाकर तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक को क्रमश: 34 और 37 लोकसभा सीटें मिल गईं.
बीएसपी के साथ त्रासदी यह हुई कि उत्तर प्रदेश के तितरफा मुक़ाबले में उसके 20 फ़ीसदी के ज्यादा वोट से कोई विनिंग फॉर्मूला नहीं बन पाया. यही कहानी 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी दोहराई गई, जहां उसके सिर्फ़ 19 विधायक बने.
लेकिन बीएसपी और मायावती की कहानी वोट प्रतिशत से कहीं बड़ी है.