Nibandh on global warming in hindi
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Gloबल वार्मिंग निबंध 3
धरती के लगातार बढ़ते तापमान स्तर को ग्लोबल वार्मिंग कहते है। पूरे विश्व में इंसानों की न ध्यान देने वाली गलत आदतों की वजह से हमारी धरती की सतह दिनों-दिन गर्म होती जा रही है। धरती के वातावरण के लिये ये सबसे चिंताजनक पहलू है क्योंकि इससे लगातार धरती पर जीवन की संभावानाएँ कम होती जाएँगी। इसके समाधान तक पहुचने से पहले, हमें वातावरण पर इसके कारण और पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जरुर सोचना चाहिए जिससे हम आश्वस्त हो सके कि हम इससे राहत पाने की सही दिशा में आगे बढ़ रहे है। धरती के लगातार गर्म होने का मतलब पर्यावरण में CO2 गैस का बढ़ना है। जबकि, CO2 के बढ़ते स्तर के कई कारण है जैसे पेड़ों की कटाई, कोयले का इस्तेमाल, जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल, परिवहन के लिये गैसोलिन का इस्तेमाल, बिजली का गैर-जरुरी इस्तेमाल आदि से धरती का तापमान बढ़ता है। इससे ओजोन परत में क्षरण, समुद्र जल स्तर में वृद्धि, मौसम के स्वभाव में बदलाव, बाढ़, तूफान, महामारी, खाद्य पदार्थों की कमी, मौंते आदि में बढ़ौतरी होगी जो धरती पर जीवन के संभावानाओं को कम करता जाएगा।
ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे लिये किसी एक को दोष नहीं दिया जा सकता बल्कि पूरी मानव जाति इसके लिये जिम्मेदार है जिसका समाधान वैश्विक जागरुकता और हर एक के उदार प्रयास से ही संभव होगा।
धरती के लगातार बढ़ते तापमान स्तर को ग्लोबल वार्मिंग कहते है। पूरे विश्व में इंसानों की न ध्यान देने वाली गलत आदतों की वजह से हमारी धरती की सतह दिनों-दिन गर्म होती जा रही है। धरती के वातावरण के लिये ये सबसे चिंताजनक पहलू है क्योंकि इससे लगातार धरती पर जीवन की संभावानाएँ कम होती जाएँगी। इसके समाधान तक पहुचने से पहले, हमें वातावरण पर इसके कारण और पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जरुर सोचना चाहिए जिससे हम आश्वस्त हो सके कि हम इससे राहत पाने की सही दिशा में आगे बढ़ रहे है। धरती के लगातार गर्म होने का मतलब पर्यावरण में CO2 गैस का बढ़ना है। जबकि, CO2 के बढ़ते स्तर के कई कारण है जैसे पेड़ों की कटाई, कोयले का इस्तेमाल, जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल, परिवहन के लिये गैसोलिन का इस्तेमाल, बिजली का गैर-जरुरी इस्तेमाल आदि से धरती का तापमान बढ़ता है। इससे ओजोन परत में क्षरण, समुद्र जल स्तर में वृद्धि, मौसम के स्वभाव में बदलाव, बाढ़, तूफान, महामारी, खाद्य पदार्थों की कमी, मौंते आदि में बढ़ौतरी होगी जो धरती पर जीवन के संभावानाओं को कम करता जाएगा।
ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे लिये किसी एक को दोष नहीं दिया जा सकता बल्कि पूरी मानव जाति इसके लिये जिम्मेदार है जिसका समाधान वैश्विक जागरुकता और हर एक के उदार प्रयास से ही संभव होगा।
KINGKHAN7715:
thanks bro
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क्या है ग्लोबल वार्मिंग?
जैसा कि नाम से ही साफ है, ग्लोबल वार्मिंग धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी है। हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से उष्मा ( हीट, गर्मी ) प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल ( एटमास्पिफयर) से गुजरती हुईं धरती की सतह (जमीन, बेस) से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित ( रिफलेक्शन) होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश ( मोस्ट आफ देम, बहुत अधिक ) धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण ( लेयर, कवर ) बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब ( इट इस रिकाल्ड, मालूम होना ) है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन ( अधिक मोटा होना) या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव ( साइड इफेक्ट) ।
क्या हैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह?
ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तो मनुष्य और उसकी गतिविधियां (एक्टिविटीज ) ही हैं। अपने आप को इस धरती का सबसे बुध्दिमान प्राणी समझने वाला मनुष्य अनजाने में या जानबूझकर अपने ही रहवास ( हैबिटेट,रहने का स्थान) को खत्म करने पर तुला हुआ है। मनुष्य जनित ( मानव निर्मित) इन गतिविधियों से कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है जिससे इन गैसों का आवरण्ा सघन होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है जिससे धरती के तापमान में वृध्दि हो रही है। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों ( प्लांटस), उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध होने वाले गैसीय उत्सर्जन ( गैसों का एमिशन, धुआं निकलना ) की वजह से कार्बन डायआक्साइड में बढ़ोतरी हो रही है। जंगलों का बड़ी संख्या में हो रहा विनाश इसकी दूसरी वजह है। जंगल कार्बन डायआक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं, लेकिन इनकी बेतहाशा कटाई से यह प्राकृतिक नियंत्रक (नेचुरल कंटरोल ) भी हमारे हाथ से छूटता जा रहा है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव :
और बढ़ेगा वातावरण का तापमान : पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी।
समुद्र सतह में बढ़ोतरी : ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लैशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। ग्लैशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय ( कोस्टल) इलाकों में रहने वाले अधिकांश ( बहुत बडा हिस्सा, मोस्ट आफ देम) लोग बेघर हो जाएंगे।
मानव स्वास्थ्य पर असर : जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेग़ा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर ( एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग ( एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे। वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास ( नाक से ली जाने वाली सांस की प्रोसेस) लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो।
पशु-पक्षियों व वनस्पतियों पर असर : ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान ( रवाना होना) करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे।
ग्लोबल वार्मिंग से कैसे बचें?
1- सभी देश क्योटो संधि का पालन करें। इसके तहत 2012 तक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन ( एमिशन, धुएं ) को कम करना होगा।
2- यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। हम सभी भी पेटोल, डीजल और बिजली का उपयोग कम करके हानिकारक गैसों को कम कर सकते हैं।
3- जंगलों की कटाई को रोकना होगा। हम सभी अधिक से अधिक पेड लगाएं। इससे भी ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम किया जा सकता है।
4- टेक्नीकल डेवलपमेंट से भी इससे निपटा जा सकता है। हम ऐसे रेफ्रीजरेटर्स बनाएं जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल न होता हो और ऐसे वाहन बनाएं जिनसे कम से कम धुआं निकलता हो।
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