nibandh on mere jeevan ka uddeshya
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संसार के सभी प्राणियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । इसके पीछे भी कारण है । मनुष्य में ईश्वर ने सोचने की शक्ति तथा सही- गलत का निर्णय लेने की क्षमता प्रदान की है । मनुष्य अपने भविष्य के बारे में कल्पना कर सकता है, योजनाएँ बना सकता है । इसलिए मनुष्य अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की कल्पनाएं करता है । वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहता है ।
महत्वाकांक्षी प्राणी होने के कारण प्रत्येक मानव के हृदय में एक प्रबल -इच्छा होती है कि वह ऐसा कोई काम करे जिससे उसका मान–सम्मान हो प्रतिष्ठा हो । इसलिए प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन का कोई न कोई लक्ष्य अवश्य निर्धारित करता है । मेरा भी जीवन लक्ष्य का है । पशु-पक्षियों में तथा मनुष्य में यदि विशेष अंतर है तो वह यह है कि वह सोच-समझ सकता है । वह पढ़-लिख सकता है । विद्या बिना तो मनुष्य पशु समान है ।
अशिक्षित व्यक्ति का समाज में कोई मान-सम्मान नहीं करता । वह पड़े-लिखे लोगों की बातें नहीं समझ पाता । उसे खाने -पीने, उठने–बैठने का तरीका आता है । शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य में मानवी गुणों का समावेश होता है । इसलिए मैंने निश्चय किया कि मैं एक अध्यापक बनूँगी । समाज में बच्चों में शिक्षा का प्रचार करूँगी विशेष तौर पर ऐसे बच्चे जो शिक्षा से वंचित रह जाते हैं । मैंने यह निर्णय बहुत सोच-समझ कर लिया है ।
मैं जानती हूँ कि अध्यापक का वेतन अन्य व्यवसायों की अपेक्षा कम होता है । परिश्रम की अधिक आवश्यकता होती है । जीवन में धन कमाना ही हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए । आज अपने शिक्षकों को देख कर मेरी इच्छा होती है कि मैं भी शिक्षक बनकर समाज सेवा करूंगी तथा विद्यार्थियों को अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दूंगी । आज हर कोई इंजीनियर, डॉक्टर, व्यापारी बनना चाहता है । कोई अनोखा ही होगा जो अध्यापक बनना चाहेगा । लोगों को जब मेरे लक्ष्य का पता चलता है तो वे मेरा मजाक उड़ाते हैं ।
यदि सभी बड़ा व्यक्ति बनना चाहेंगे तो आने वाले समय में शिक्षकों की कमी हो जाएगी । कौन हमारे देश के बच्चों को शिक्षा देगा? मैं एक शिक्षक बनकर अपने विद्यार्थियों को सांस्कारित, सदाचारी, देशभक्त एवं चरित्रवान बनाऊंगी । उनमें कर्त्तव्यनिष्ठा, देश प्रेम, ईमानदारी तथा अपनी संस्कृति के प्रति प्रेमभावना जगाऊंगी ।
अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए मैं खूब मन लगाकर परिश्रम करूंगी तथा उचित प्रशिक्षण लेकर गांव में जाकर वहां के बच्चों को शिक्षित करूँगी । यदि मेरी तरह अन्य युवक-युवतियां भी शिक्षक बनने का निर्णय लें तो आज हमारे देश में जिस प्रकार नैतिक मूल्यों की कमी होती जा रही है तथा देश के भावी कर्णधार दिशा-विहीन होकर कर्त्तव्य पथ से विमुख हो रहे हैं, तो वह स्थिति न आने पाएगी ।
अध्यापक राष्ट्र का निर्माता होता है । देश का, राष्ट्र का, समाज का तथा जाति का भविष्य अध्यापक के ही हाथ में होता है । वह देश, समाज तथा जाति को जैसा बनाना चाहे बना सकता है । शिक्षक के विषय में किसी कवि ने ठीक ही कहा है – शिक्षक युग का महा प्राण निकल पड़ा है जीवन पथ पर चढ़ कर नव उन्नति के रथ पर करने चला जगत का कल्याण शिक्षक युग का महाप्राण । आज हमारे देश में भ्रष्टाचार में निरन्तर वृद्धि हो रही है, लोग अपने कर्त्तव्यों को भूलकर पथभ्रष्ट हो रहे हैं, देशभक्ति तो लगभग समाप्त ही हो गई है ।
समाज तथा देश प्रतिदिन नई-नई समस्याओं से उलझ रहा है । आज हमारे समाज को ऐसे अध्यापकों की आवश्यकता है जो नए समाज का निर्माण कर सके । केवल अध्यापक ही हैं जो बच्चों को चरित्र निर्माण की शिक्षा दै सकते हैं । वह दिन दूर नहीं जब मैं अपने .आदर्श जीवन से अपने विद्यार्थियों को चरित्रवान मनुष्य, परोपकारी एवं सदाचारी डॉक्टर, इंजीनियर एवं कुशल शासक बनाऊंगी ।
तभी मेरा जीवन सार्थक होगा । मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगी कि वे मेरे इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मेरी सहायता करें । मेरा उद्देश्य है कि मैं आदर्श अध्यापक बनकर सारे देश के बच्चों को शिक्षित करूँ । कोई भी बच्चा अशिक्षित न रहे इससे हमारे देश का एवं हमारा मान बढ़ेगा ।
महत्वाकांक्षी प्राणी होने के कारण प्रत्येक मानव के हृदय में एक प्रबल -इच्छा होती है कि वह ऐसा कोई काम करे जिससे उसका मान–सम्मान हो प्रतिष्ठा हो । इसलिए प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन का कोई न कोई लक्ष्य अवश्य निर्धारित करता है । मेरा भी जीवन लक्ष्य का है । पशु-पक्षियों में तथा मनुष्य में यदि विशेष अंतर है तो वह यह है कि वह सोच-समझ सकता है । वह पढ़-लिख सकता है । विद्या बिना तो मनुष्य पशु समान है ।
अशिक्षित व्यक्ति का समाज में कोई मान-सम्मान नहीं करता । वह पड़े-लिखे लोगों की बातें नहीं समझ पाता । उसे खाने -पीने, उठने–बैठने का तरीका आता है । शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य में मानवी गुणों का समावेश होता है । इसलिए मैंने निश्चय किया कि मैं एक अध्यापक बनूँगी । समाज में बच्चों में शिक्षा का प्रचार करूँगी विशेष तौर पर ऐसे बच्चे जो शिक्षा से वंचित रह जाते हैं । मैंने यह निर्णय बहुत सोच-समझ कर लिया है ।
मैं जानती हूँ कि अध्यापक का वेतन अन्य व्यवसायों की अपेक्षा कम होता है । परिश्रम की अधिक आवश्यकता होती है । जीवन में धन कमाना ही हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए । आज अपने शिक्षकों को देख कर मेरी इच्छा होती है कि मैं भी शिक्षक बनकर समाज सेवा करूंगी तथा विद्यार्थियों को अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दूंगी । आज हर कोई इंजीनियर, डॉक्टर, व्यापारी बनना चाहता है । कोई अनोखा ही होगा जो अध्यापक बनना चाहेगा । लोगों को जब मेरे लक्ष्य का पता चलता है तो वे मेरा मजाक उड़ाते हैं ।
यदि सभी बड़ा व्यक्ति बनना चाहेंगे तो आने वाले समय में शिक्षकों की कमी हो जाएगी । कौन हमारे देश के बच्चों को शिक्षा देगा? मैं एक शिक्षक बनकर अपने विद्यार्थियों को सांस्कारित, सदाचारी, देशभक्त एवं चरित्रवान बनाऊंगी । उनमें कर्त्तव्यनिष्ठा, देश प्रेम, ईमानदारी तथा अपनी संस्कृति के प्रति प्रेमभावना जगाऊंगी ।
अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए मैं खूब मन लगाकर परिश्रम करूंगी तथा उचित प्रशिक्षण लेकर गांव में जाकर वहां के बच्चों को शिक्षित करूँगी । यदि मेरी तरह अन्य युवक-युवतियां भी शिक्षक बनने का निर्णय लें तो आज हमारे देश में जिस प्रकार नैतिक मूल्यों की कमी होती जा रही है तथा देश के भावी कर्णधार दिशा-विहीन होकर कर्त्तव्य पथ से विमुख हो रहे हैं, तो वह स्थिति न आने पाएगी ।
अध्यापक राष्ट्र का निर्माता होता है । देश का, राष्ट्र का, समाज का तथा जाति का भविष्य अध्यापक के ही हाथ में होता है । वह देश, समाज तथा जाति को जैसा बनाना चाहे बना सकता है । शिक्षक के विषय में किसी कवि ने ठीक ही कहा है – शिक्षक युग का महा प्राण निकल पड़ा है जीवन पथ पर चढ़ कर नव उन्नति के रथ पर करने चला जगत का कल्याण शिक्षक युग का महाप्राण । आज हमारे देश में भ्रष्टाचार में निरन्तर वृद्धि हो रही है, लोग अपने कर्त्तव्यों को भूलकर पथभ्रष्ट हो रहे हैं, देशभक्ति तो लगभग समाप्त ही हो गई है ।
समाज तथा देश प्रतिदिन नई-नई समस्याओं से उलझ रहा है । आज हमारे समाज को ऐसे अध्यापकों की आवश्यकता है जो नए समाज का निर्माण कर सके । केवल अध्यापक ही हैं जो बच्चों को चरित्र निर्माण की शिक्षा दै सकते हैं । वह दिन दूर नहीं जब मैं अपने .आदर्श जीवन से अपने विद्यार्थियों को चरित्रवान मनुष्य, परोपकारी एवं सदाचारी डॉक्टर, इंजीनियर एवं कुशल शासक बनाऊंगी ।
तभी मेरा जीवन सार्थक होगा । मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगी कि वे मेरे इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मेरी सहायता करें । मेरा उद्देश्य है कि मैं आदर्श अध्यापक बनकर सारे देश के बच्चों को शिक्षित करूँ । कोई भी बच्चा अशिक्षित न रहे इससे हमारे देश का एवं हमारा मान बढ़ेगा ।
anjali86:
nice answer
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