Hindi, asked by samreen17, 1 year ago

nibandh on meri pehli hawai yatra in hindi

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Answered by SatyamMehta
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यह कहानी है – मेरी पहली हवाई यात्रा की ।

गारंटी है कि खेत के मेड़ से, आपके दादाजी की तरह हमारे दादाजी ने भी आकाश में कई बार हवाई जहाज उड़ते देखी होगी, जब तक सिर के ऊपर से वह पुरी तरह से गुजर न जाए। उस पर चढ़ने का स्वपन देखने की गलती उन्होनें नहीं की होगी, इतना तो मुझे पुरा विश्वास है । वे लोग बस बगल से एक बार हवाई जहाज देख पाते तो खुद को भाग्यशाली मानते । ये अलग बात है खेत के मेड़ से हवाई – जहाज देखने के दौरान, इधर उनका भैंसा अपना ही खेत चर गया ।

अच्छा छोड़िए गुजरे जमाने की, सीधे लैंडिंग किजीए हमारे जमाने में । हमारे कस्बों में लालु नेता, आई मिन, आलु नेता, भिंडी नेता को भाषण के लिए भीड़ जमानी हो तो बस हेलीकाप्टर से पहूँचना होता है । हमारे गाँवों में तो खैनी डोलते पटुआ के खेत से बस हेलीकाप्टर भगवान का दर्शन करने पहूँच जाती है, भारी भीड़ ।

जाने दीजिए गाँव की बात ,हमारे शहर में, मैं भी एक बार ऐसे ही भाषण सुनने गया था, पर देखता रहा दो घंटे तक हेलीकाप्टर और उसके बड़े – बड़े डैने और दिमाग भिड़ाता रहा उसे फंक्सनिंग पर।

खानदान में सबने प्लेन देखा, पर दूर से । सबके आशीर्वाद से पैसावाला हो गया ना, अब तो मैं बगल से प्लेन देख सकता हूँ । यह मन चिड़ैया भी है ना, बड़ा लोभी होता है । ट्रेन में नये यात्री की तरह, बैठने दो तो पैर उठाने का जगह निकाल लेगा, पैर उठाने दो तो, थोड़ी देर में पसर जाएगा । आमदनी बढ़ी तो मेरे मन का अपना धंधा शुरू हो गया । अब मानव जन्म सार्थक करने का मौका है । कुछ घंटो के लिए पंछी का अवतार मिल सकता है ।

हाँ तो मैनें ठान लिया, प्लेन पर चढ़ना है । इकोनामी क्लास की हवाई यात्रा भी चलेगी । गुग्गुल की बुटी दादाजी के दवाई के काम आता था । ये कैसा होता है कभी जानने की कोशिश नहीं की हमने पर वैसा ही कुछ मिलता जुलता नाम का उपयोग हमने गुग्गुल डाट काम का किया ईटरनेट में – सस्ते फ्लाईट खोजने में । बहुत छानकर मिला एक – स्पाईस जेट । शब्दार्थ खोजा तो पता चला – मशाला जेट । वैसे स्पाईस जेट के प्रचार में लाल ड्रेस में एयर होस्टेस एकदम लाल परी सी लग रही थी । मैनें भी मशाला फिल्मों से इसे जोड़ दिया । मतलब ये हुआ कि, हवाई जहाज में खुबसुरत एयर होस्टेस । अब क्या था – मन हिलोरें मारने लगा । इस मुसीबत की दुनिया से काफी उपर, नील आकाश में लाल परियों के साथ यात्रा ।

शुरु हो गयी तैयारी । टिकट बुक करवाया ईटरनेट से । मगर विश्वास नहीं हुआ कि बिना लाईन में लगे खुद से प्रिटिंग किया हूआ कागज टिकट कैसे हो सकता है । खुद को ऐसे मनाया कि मेरे को ठग सकते है सभी को थोड़े ही न ठगेंगे । कुछ भी हो हमलोग समझदार यात्री है, हमने टिकट परे छपे नियम-कानुन ध्यान से पढ़े । देखा एक ही बैग ले जाने को कहा है – उसकी लंबाई – चौड़ाई – ऊँचाई – भार, 35 किलो सब निर्धारित है । एक अलग से लैपटाप जा सकता है । चल तब तो ठीक है ।

टिकट करवाया था यात्रा के एक महीना पहले । घर पे तो पहले बता ही दिया कि मैं इस बार फ्लाईट से आ रहा हूँ । रिश्तेदारों में यह बात फैल गयी । अब उनसे बात होती तो, फ्लाईट का जिक्र जरूर करता । दिन गिनने लगा मैं फिर ।

सामान भर कर बैग बहुत भारी लग रहा था – कहीं 35 किलो तो न हो गया । सुबह पनसारी की दुकान गया । कहा – भैया मेरा बैग नाप दो जरा । चावल -दाल के जगह बैग, वह शायद सोच रहा होगा । पता है, वह भारी था सिर्फ 15 किलो ।

उस दिन फ्लाईट शाम को थी । आफिस से भी जाया जा सकता था, यही तो बिजी लाईफ है न । आफिस का काम भी ज्यादा कुछ नहीं, मगर आन लाईन बहुत दिनों बाद भेंट हो गयी – एक पुरानी दोस्त । जिसके पास शिकायतों का पुरी रेडीमेड पोटली थी । पर मैनें न छेड़ी उसे । पता था – अगर पोटली खुली तो, शांति का आशा नहीं थी । और उस दिन को मैं पुरी शुभ यात्रा बनाना चाहता था । फिर किसी को जान बुझकर दुखी करके यात्रा थोड़े ही न बनता है । सो मैनें थोड़ी देर ही सही बिलकुल नये दोस्त के तरह बात की, वो खुश और मैं भी खुश । बाई – बाई फिर आफलाईन ।

दोपहर का खाना आफिस में उस दिन खाया भी न जाता था । फुल एक्साईटमेंट । बहुत सारे सहकर्मियों के लिए हवाई यात्रा, आटो रिक्शा जैसा था । मैं एक बार खाली चढ़ तो लुँ, हवाई जहाज पर, हरेक साफ्टवेयर प्रोफेशनल की तरह अपना भी जन्म सार्थक हो जाए । एयरपोर्ट जाने के नाम पे आटोवाले ने भी रेट ज्यादा लगाया । उसका रेट पचास रुपये ज्यादा था । खैर मैंने भी सोचा, प्लेन पर चलने वाले को इन आटो वालों से ज्यादा मोल भाव नहीं करना चाहिए । मैं भी मान गया, उसका रेट । वो भी जा खुश होकर ले जा रहा था हवाई यात्री को । मैं महसुस कर रहा था – पुरा गर्वित ।

वैसे ही घर सात महीने के बाद जा रहा था – वो भी हवाई जहाज से । वहाँ घर पे सब महीने – दिन – अब घंटे गिन रहे थे । खुब नाम लिया – अपने भगवान का ।

एयरपोर्ट पर पहूँचकर देखा तो सब स्टेन्डर्ड यात्री । ज्यादातर बढ़िया सुटकेश और बढ़िया बैग लेकर चलने वाले । इधर हमारे स्टेशन पर तो झोला वाले ज्यादा दिखते हैं , वैसे सस्ते सुटकेश ही आजकल खुब दिखते हैं – दिल्ली, पंजाब जाने वालों मजदुरों के ।

हम भी हाई क्वालिटी साफ्टवेयर मजदुर जो ठहरे । मन में प्लान हो गया कि अगली बार के लिए एक हवाई यात्रा लायक सैमसोनाईट सुटकेश खरीदना होगा , आखिर हमारे सम्मान की बात है । खैर हमने भी अपना बैग का चेन चेक कर लिया था । किस्सा था कि उस बैग का चेन कभी-कभी स्लिप करता था ।

हमारे एक मित्र हैं – जिन्होनें बता दिया था कि पुरी जाँच पड़ताल होती है, सीट नम्बर भी वहीं मिलेगा इसलिए एक घंटा पहले जाना चाहिए । हमने लिखा देखा – “चेक इन” और खड़ा हो गया, अपना बैग लेकर । मैं पुरा एक घंटे पहले पहूचा था ना इसलिए नबंर एक मे था लाईन में । पुरे बीस मिनट खड़ा रहा वहीं । पीछे मुढ़कर देखा तो लंबी लाईन लगी थी । मैं पुरा गौरवान्वित महसुस कर रहा था उस समय , नहीं तो मुझे एक बार लेट से स्टेशन पहूँचकर चलती गाड़ी में चढ़ने का बुरा अनुभव रहा है ।

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