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मनुष्य को सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए कर्म करने की आवश्यकता पड़ती है । कर्मप्रधान व्यक्ति ही जीवन में वास्तविक सुख का आनंद प्राप्त कर सकता है । अकर्मण्यता मनुष्य को निराश और भाग्यवादी बनाती है ।
मनुष्य के कर्म अनेक प्रकार के होते हैं । कुछ कर्म तो वह अनिच्छापूर्वक बाध्यता के साथ करता है परंतु मनोयोग से किया गया कृत्य ही उसे सच्चा आनंद प्राप्त कराता है । इन समस्त क्रियाओं में अध्ययन सर्वश्रेष्ठ है । अध्ययनप्रिय व्यक्ति स्वयं को सदैव प्रसन्नचित्त अनुभव करता है ।
अध्ययन में मनुष्य की अभिरुचि सदैव उसे उत्थान की ओर ले जाती है । अध्ययन की महिमा अनंत है । किसी भी राष्ट्र अथवा देश के नागरिक जितना ही अध्ययन को महत्व देंगे वह राष्ट्र उतना ही प्रगतिशील होगा । समस्त विकसित देश, विकासशील देशों से इसलिए अग्रणी हैं क्योंकि उन्होंने प्रारंभ से ही अध्ययन को महत्व दिया । शिक्षा का उनका स्तर हमारी तुलना में कहीं अधिक ऊँचा है । अत: राष्ट्र का विकास तभी संभव है जब वह देश में अध्ययन को महत्व देता है ।
अध्ययन से मनुष्य का चारित्रिक विकास होता है । अपनी भौतिक शिक्षा के अतिरिक्त वह उन नैतिक मूल्यों को भी ग्रहण करता है जो उसमें आत्मबल व आत्मसंयम प्रदान करते हैं । अध्ययन अर्थात् पुस्तकों में रुचि रखने वाला व्यक्ति स्वयं को कभी भी एकाकी महसूस नहीं करता है । मुसीबत व परीक्षा की घड़ी में पुस्तकें ही उसका परम विश्वसनीय मित्र होती हैं । उसकी सभी समस्याओं का हल उसे उन पुस्तकों के अध्ययन से प्राप्त हो जाता है ।
इस प्रकार अध्ययन से प्राप्त आनंद असीमित है । विज्ञान व तकनीकी से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन कर वह खगोलीय व धरातल के रहस्यों को उजागर करता है । रहस्यों की जितनी परत खुलती जाती है मनुष्य उतना ही अधिक हर्षोल्लास व रोमांच का अनुभव करता है ।
इसी प्रकार साहित्य से संबंधित पुस्तकों के माध्यम से वह मानवीय संवेदनाओं को लिखकर व उनका अध्ययन कर उन्हें प्रकट कर सकता है । साहित्य में निहित कविताएँ, लेख, नाटक, कहानियाँ व उपन्यास आदि के माध्यम से वह मानव ध्येय की संवेदनाओं को छूता है जो उसे पुलकित करती हैं ।
अध्ययन की अभिरुचि से ही मनुष्य कालिदास, मिल्टन व शेक्सपियर जैसे महान लेखकों के महान लेखों का आनंद उठा सकता है । अध्ययन में रस प्राप्त करने वाला व्यक्ति देश-विदेश में होने वाली घटनाओं की जानकारी रखता है । ऐसे व्यक्ति शोषण का शिकार नहीं हो सकते अर्थात् अध्ययन उनकी उन आपदाओं से रक्षा करता है जो प्राय: निरक्षर व्यक्तियों को अपनी चपेट में ले लेती हैं ।
अच्छी पुस्तकों का अध्ययन सत्संग के तुल्य होता है । सद्संगति की भाँति अच्छी पुस्तकें मनुष्य को सही राह दिखाती हैं तथा उसे कुसंगति से बचाती हैं । मनुष्य में अध्ययन की प्रवृत्ति उसे छुद्र मानसिकता से दूर हटाती है । हमारा देश वर्षों से विदेशी आधिपत्य में रहा है । इन विदेशी ताकतों के कारण तथा हमारी रूढ़िगत परंपराओं के चलते हमारे देश की नारियाँ शिक्षा हेतु सदैव ही उपेक्षित रही हैं । नारी को उसके शिक्षा के अधिकार से वर्षों तक वंचित रखा गया ।
आज वातावरण में काफी परिवर्तन देखने को मिलता है । नारी शिक्षा को हमारी सरकार विशेष प्रोत्साहन दे रही है । अब नारी स्वतंत्र रूप से अध्ययन की ओर अग्रसर हो रही है । इसका सुखद परिणाम हमें स्वत: देखने को मिल रहा है ।
अध्ययन की शक्ति नारी के हाथ लग जाने से वह विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है । देश प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है । इस प्रकार हम देखते हैं कि मनुष्य में अध्ययन की अभिरुचि उसके सर्वांगीण विकास में सहायक है । अध्ययन से मनुष्य में वे सभी तत्व सहज रूप से आ जाते हैं जो उसके चारित्रिक विकास में सहायक होते हैं ।
अच्छी पुस्तकों का अध्ययन उसे एक सच्चे मित्र की तरह साथ देता है तथा कठिनाइयाँ व मुसीबतें आने पर उसे उन विपत्तियों का सामना करने की शक्ति एवं सामर्थ्य प्रदान करता है । दूसरे शब्दों में, अध्ययनशील व्यक्ति स्वयं को सदैव गौरवान्वित महसूस करता है और समाज भी उसे पूर्ण प्रतिष्ठा प्रदान करता है ।
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