Nibandh on
Urja ki badti mang
It's very very very urgent
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आधुनिक युग विज्ञान का युग है । मनुष्य विकास के पथ पर बड़ी तेजी से अग्रसर है उसने समय के साथ स्वयं के लिए सुख के सभी साधन एकत्र कर लिए हैं । इतना होने के बाद और अधिक पा लेने की अभिलाषा में कोई कमी नहीं आई है बल्कि पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है ।
समय के साथ उसकी असंतोष की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कल-कारखाने, मोटर-गाड़ियाँ, रेलगाड़ी, हवाई जहाज आदि सभी उसकी इसी प्रवृत्ति की देन हैं । उसके इस विस्तार से संसाधनों के समाप्त होने का खतरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है ।
प्रकृति में संसाधन सीमित हैं । दूसरे शब्दों में, प्रकृति में उपलब्ध ऊर्जा भी सीमित है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या के साथ आवश्यकताएँ भी बढ़ती ही जा रही हैं । दिन-प्रतिदिन सड़कों पर मोटर-गाड़ियों की संख्या में अतुलनीय बुदधि हो रही है । रेलगाड़ी हो या हवाई जहाज सभी की संख्या में वृद्धि हो रही है । मनुष्य की मशीनों पर निर्भरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है ।
इन सभी मशीनों के संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । परंतु जिस गति से ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ रही है उसे देखते हुए ऊर्जा के समस्त संसाधनों के नष्ट होने की आशंका बढ़ने लगी है । विशेषकर ऊर्जा के उन सभी साधनों की जिन्हें पुन: निर्मित नहीं किया जा सकता है । उदाहरण के लिए पेट्रोल, डीजल, कोयला तथा भोजन पकाने की गैस आदि ।
पेट्रोल अथवा डीजल जैसे संसाधनों रहित विश्व की परिकल्पना भी दुष्कर प्रतीत होती है । परंतु वास्तविकता यही है कि जिस तेजी से हम इन संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब धरती से ऊर्जा के हमारे ये संसाधन विलुप्त हो जाएँगे ।
अत: यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दें अथवा इसके प्रतिस्थापन हेतु अन्य संसाधनों को विकसित करें क्योंकि यदि समय रहते हम अपने प्रयासों में सफल नहीं होते तो संपूर्ण मानव सभ्यता ही खतरे में पड़ सकती है।
हमारे देश में भी ऊर्जा की आवश्यकता दिन पर दिन विकास व जनसंख्या वृद्धि के साथ बढ़ती चली जा रही है । ऊर्जा की बढ़ती माँग आने वाले वर्षो में आज से तीन या चार गुणा अधिक होगी । इन परिस्थितियों में भारत सरकार की ओर से ठोस कदम उठाने की अवश्यकता है । इस दिशा में अनेक रूपों में कई प्रयास किए गए हैं जिनस कुछ हद तक सफलता भी अर्जित हुई है । ‘बायो-गैस’ तथा अधिक वृक्ष उत्पादन आदि इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं । पृथ्वी पर ऐसे ऊर्जा संसाधनों की कमी नहीं है जो प्रदूषण रहित हैं
Hi mate,
Here is your answer,
ऊर्जा की बढ़ती माँग समस्या और समाधान
ऊर्जा की बढ़ती माँग समस्या और समाधानप्रस्तावना-
ऊर्जा हमारे जीवन की प्रमुख आवश्यकता है फिर चाहे वह किसी भी रूप में हो। भोजन, प्रकाश, यातायात, आवास, स्वास्थ्य की मूलभूत आवश्यकताओं के अलावा मनोरंजन की जरूरतों में भी ऊर्जा के विभिन्न रूपों ने हमारी जीवन शैली में प्रमुख स्थान बना लिया है।
आज के समय में व्यक्ति भोजन से पहले मोबाइल खरीदने के बारे में सोचता है। बिना एयर कंडीशनर के किसी अधिकारी के लिए कार्यालय की कल्पना करना कठिन है।
ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों का समाप्त होना-
आधुनिक युग से पूर्व मनुष्य का जीवन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर आधारित था। लेकिन आज के समय में मनुष्य जीवाश्म स्रोतों (पेट्रोल, डीजल, गैस, कोयला) पर पूरी तरह निर्भर हो चुका है। ऊर्जा के जीवाश्म स्रोत एक बार उपयोग कर लेने के बाद हमेशा के लिए समाप्त हो जाते हैं। यह चिंता फैल रही है कि ऊर्जा के जीवाश्म स्रोतों के खत्म होने के बाद क्या होगा? चूँकि ऊर्जा के परंपरागत संसाधन पृथ्वी पर सीमित मात्रा में हैं और मानव उनका बड़ी तेजी से दोहन कर रहा है इसीलिये भविष्य में उनके खत्म होनी की आशंका बनी हुई है|
नवीन स्रोतों की आवश्यकता-
यह सच है कि ऊर्जा के बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिए हमें जीवाश्म ईंधन के खत्म होने का इंतजार करने के स्थान पर ऊर्जा के उन स्रोतों को अपनाना चाहिए जो कभी खत्म नहीं होंगे। इस तरह के ऊर्जा के स्रोत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, लघु बिजली परियोजना, गोबर गैस आदि हैं। भारत में यूर्य की रोशनी पर्याप्त मात्रा में रहती है। इस रोशनी का विविध रूप में प्रयोग करना संभव है। सूर्य की रोशनी से सोलर कुकर का उपयोग करा जाए और इसे रियायती दर पर दिए जाएं तो लोग खाना पकाने में आसानी से इसका इस्तेमाल कर पाएंगे। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की कमी रहती है। जिसके लिए सबसे अच्छा उपाय है गोबर गैस। गोबर गैस से न केवल मु्फ्त में खाना पकेगा बल्कि रोशनी भी मिलेगी जिससे बिजली भी बचेगी।
हमारी ऊर्जा पर निर्भरता-
पाषाण युग से लेकर आज तक मनुष्य निरंतर प्रगति के पथ पर चल रहा है। इस यात्रा में ऊर्जा को प्रगति की सीढ़ी कहना कोई गलत बात नहीं होगी। जैसे-जैसे मनुष्य विकास की सीढ़ी चढ़ता गया, उसकी ऊर्जा आवश्यकता बढ़ती गई। अपनी इसी जरूरत को पूरा करने के लिए मनुष्य ने कई रूपों में ऊर्जा को खोजना और प्रयोग करना शुरू कर दिया। आज रसोई से लेकर सड़क यातायात तक सभी जगह ऊर्जा के बिना जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती।
उपसंहार-
हमारे देश में ऊर्जा की जरूरत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। ऊर्जा की बढ़ती मांग आने वाले वर्षों में आज से तीन या चार गुना अधिक होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में भारत सरकार की ओर से ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। इस दिशा में अनेक रूपों में कई प्रयास किए गए हैं जिनसे कुछ हद तक सफलता भी हासिल हुई है। जैसे 'बायो गैस' और अधिक वृक्षारोपण आदि।