Hindi, asked by anshumanchauhanonlin, 1 month ago

nibhand on yadi mere paikh hote

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Answered by maahisingh99
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पंख होने पर मैं भी आकाश-विहारी बन जाता। धरती के बंधन से मुक्त होकर मैं भी पक्षियों की तरह आकाश में अपनी इच्छा के अनुसार सैर करता। मैं दूर-दूर तक, ऊँची-ऊँची मनचाही उड़ानें भरता। मैं बहुत निकट से बादलों की शोभा और इंद्रधनुष की रंगावली देखता। हवा के इस महासागर में तैरने का आनंद ही कुछ निराला होता है।

यदि मेरे पंख होते तो मैं नित्य नए-नए सुंदर, विशाल, सघन जंगलों की सैर करता रहता। न शेर का डर होता, न बाघ या चीते का भय। खाने-पीने की चिंता ही न रहती। वृक्षों पर बैठकर मनचाहे मधुर फलों का स्वाद लेता।

पंख होने से मुझे साइकिल, मोटर, स्कूटर आदि वाहनों के लिए इच्छा न होती। रेल के टिकट के लिए कतार में भी न खड़ा होना पड़ता। जब जी में आता तब फौरन अपने मित्रों और संबंधियों से मिल आता। न सड़क या पटरी की चिंता होती, न नदियों या पर्वतों की। कोई भी मेरा मार्ग न रोक पाता।

पंख होने से मुझे साइकिल, मोटर, स्कूटर आदि वाहनों के लिए इच्छा न होती। रेल के टिकट के लिए कतार में भी न खड़ा होना पड़ता। जब जी में आता तब फौरन अपने मित्रों और संबंधियों से मिल आता। न सड़क या पटरी की चिंता होती, न नदियों या पर्वतों की। कोई भी मेरा मार्ग न रोक पाता।किसी से झगड़ा होने पर मुझे पिटने का भी भय न होता। मकर संक्रांति के अवसर पर बिना जेब हल्की किए मेरे पास पतंगों का ढेर लग जाता। माँ कोई सामन मँगाती तो मैं झट से उड़कर ले आता। कहीं कोई दुर्घटना होती तो मैं तुरंत वहाँ पहुँचकर दुर्घटनाग्रस्त लोगों की सहायता करता और वहाँ का सारा वृत्तांत ले आता। अखबारों की मुझे गरज ही न रहती।

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