nibhandh in hindi on chandni raat
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प्रकृति अनन्त रूपा है । यह निरन्तर परिवर्तनशील है । जिस प्रकार सर्प अपनी केंचुली को उतारकर नवयौवन धारण करता है उसी प्रकार प्रकृति भी नित्य नवरूप ग्रहण करती रहती है ।
कभी हड्डियों को कंपा देने वाला शीत का प्रकोप, कभी आग की तरह जलती धरती और कभी वर्षा की ऐसी अंधेरी रातें कि हाथ को हाथ नहीं सूझता । पुन: शरद की स्वच्छ चाँदनी, आकाश मे चमचमाती नक्षत्रावली, शीतल मन्द सुगन्ध समीर और धरती से आकाश तक फैली हुई चाँदनी अनायास ही मन को मोह लेती है ।
चाँदनी रातों का हमारे जीवन मैं विशेष महत्त्व है । वे जीवन में उल्लास भरती हैं, जीवन को शक्ति देती है और आनन्द प्रदान करती है । चाँदनी रात में समुद्र में ज्वार आता है । भगवान कृष्ण भी चाँदनी रात में गोपिकाओं के साथ रासलीला रचाते थे । गोवर्धन की परिक्रमा भी चाँदनी रात में ही होती है । तुलसीदास ने भी वर्षा के बाद शरद् का स्वागत करते हुए लिखा है:
वर्षा विगद सरद रितु आई । लछिमन देखहु परम सुहाई ।।
चाँदनी का वर्णन करते हुए हरिश्वर गुप्त लिखते हैं-
क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा । है स्वच्छ सुमन्द गन्ध वह, निरानन्द है कौन दिशा ?
एक ऐसे ही मनोहारि वातावरण में मित्रों ने गंगा तट पर भ्रमण करने का मन बना लिया । शरद् के सुहावने दिन थे । गंगा हमारे निवास स्थान से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर थी । हम सब रात्रि भोजन करने के पश्चात् घूमते हुए गंगा तट पर पहुँच गए ।
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कभी हड्डियों को कंपा देने वाला शीत का प्रकोप, कभी आग की तरह जलती धरती और कभी वर्षा की ऐसी अंधेरी रातें कि हाथ को हाथ नहीं सूझता । पुन: शरद की स्वच्छ चाँदनी, आकाश मे चमचमाती नक्षत्रावली, शीतल मन्द सुगन्ध समीर और धरती से आकाश तक फैली हुई चाँदनी अनायास ही मन को मोह लेती है ।
चाँदनी रातों का हमारे जीवन मैं विशेष महत्त्व है । वे जीवन में उल्लास भरती हैं, जीवन को शक्ति देती है और आनन्द प्रदान करती है । चाँदनी रात में समुद्र में ज्वार आता है । भगवान कृष्ण भी चाँदनी रात में गोपिकाओं के साथ रासलीला रचाते थे । गोवर्धन की परिक्रमा भी चाँदनी रात में ही होती है । तुलसीदास ने भी वर्षा के बाद शरद् का स्वागत करते हुए लिखा है:
वर्षा विगद सरद रितु आई । लछिमन देखहु परम सुहाई ।।
चाँदनी का वर्णन करते हुए हरिश्वर गुप्त लिखते हैं-
क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा । है स्वच्छ सुमन्द गन्ध वह, निरानन्द है कौन दिशा ?
एक ऐसे ही मनोहारि वातावरण में मित्रों ने गंगा तट पर भ्रमण करने का मन बना लिया । शरद् के सुहावने दिन थे । गंगा हमारे निवास स्थान से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर थी । हम सब रात्रि भोजन करने के पश्चात् घूमते हुए गंगा तट पर पहुँच गए ।
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