Hindi, asked by PushkaAgrawal, 1 month ago

Nida fazli lekhak parichay class 10 in your own words​

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Answered by crajveer761
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Answered by MohammadFazil123
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जन्म

निदा फाजिल का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था। उनका वास्तविक नाम मुक़्तदा हसन निदा था। उनके पिता का नाम मुर्तुज़ा हसन तथा उनकी माता का नाम जमील फ़ातिमा था। उनके पिता एक शायर थे, जो भारत विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए। उनकी एक बेटी है जिसका नाम तहरीर है।

शिक्षा

उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा ग्वालियर से ही प्राप्त की और इसके बाद ग्वालियर के ही विक्टोरिया कॉलेज से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई भी पूरी की।

करियर

निदा फाजिल 1964 में मुंबई आए और धर्मयुग पत्रिका और ब्लिट्ज जैसे अखबार में काम किया। उनकी काव्य शैली ने फिल्म निर्माताओं और हिंदी और उर्दू साहित्य के लेखकों को आकर्षित किया।

फ़िल्म प्रोड्यूसर-निर्देशक-लेखक कमाल अमरोही उन दिनों फ़िल्म रज़िया सुल्तान (हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र अभिनीत) बना रहे थे जिसके गीत जाँनिसार अख़्तर लिख रहे थे जिनका अकस्मात निधन हो गया। जाँनिसार अख़्तर ग्वालियर से ही थे और निदा के लेखन के बारे में जानकारी रखते थे जो उन्होंने शत-प्रतिशत शुद्ध उर्दू बोलने वाले कमाल अमरोही को बताया हुआ था। तब कमाल अमरोही ने उनसे संपर्क किया और उन्हें फ़िल्म के वो शेष रहे दो गाने लिखने को कहा जो कि उन्होंने लिखे। इस प्रकार उन्होंने फ़िल्मी गीत लेखन प्रारम्भ किया और उसके बाद इन्होने कई हिन्दी फिल्मों के लिये गाने लिखे।

उनकी पुस्तक मुलाक़ातें में उन्होंने उस समय के कई स्थापित लेखकों के बारे मे लिखा और भारतीय लेखन के दरबारी-करण को उजागर किया जिसमें लोग धनवान और राजनीतिक अधिकारयुक्त लोगों से अपने संपर्कों के आधार पर पुरस्कार और सम्मान पाते हैं। इसका बहुत विरोध हुआ और ऐसे कई स्थापित लेखकों ने निदा का बहिष्कार कर दिया और ऐसे सम्मेलनों में सम्मिलित होने से मना कर दिया जिसमें निदा को बुलाया जा रहा हो।

जब वह पाकिस्तान गए तो एक मुशायरे के बाद कट्टरपंथी मुल्लाओं ने उनका घेराव कर लिया और उनके लिखे शेर –

घर से मस्जिद है बड़ी दूर, चलो ये कर लें।

किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए॥

पर अपना विरोध प्रकट करते हुए उनसे पूछा कि क्या निदा किसी बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा ने उत्तर दिया कि मैं केवल इतना जानता हूँ कि मस्जिद इंसान के हाथ बनाते हैं जबकि बच्चे को अल्लाह अपने हाथों से बनाता है।

रचनाएँ

काव्य संग्रह

लफ़्ज़ों के फूल (पहला प्रकाशित संकलन)

मोर नाच

आँख और ख़्वाब के दरमियाँ

खोया हुआ सा कुछ (1996) (1998 में साहित्य अकादमी से पुरस्कृत)

आँखों भर आकाश

सफ़र में धूप तो होगी

आत्मकथा

दीवारों के बीच

दीवारों के बाहर

निदा फ़ाज़ली (संपादक: कन्हैया लाल नंदन)

संपादित

बशीर बद्र : नयी ग़ज़ल का एक नाम

जाँनिसार अख़्तर : एक जवान मौत

दाग़ देहलवी : ग़ज़ल का एक स्कूल

मुहम्मद अलवी : शब्दों का चित्रकार

जिगर मुरादाबादी : मुहब्बतों का शायर

संस्मरण

मुलाक़ातें

सफ़र में धूप तो होगी

तमाशा मेरे आगे

लोकप्रिय गीत

तेरा हिज्र मेरा नसीब है, तेरा गम मेरी हयात है (फ़िल्म रज़िया सुल्ताना)। यह उनका लिखा पहला फ़िल्मी गाना था।

आई ज़ंजीर की झन्कार, ख़ुदा ख़ैर कर (फ़िल्म रज़िया सुल्ताना)

होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज है (फ़िल्म सरफ़रोश)

कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता (फ़िल्म आहिस्ता-आहिस्ता) (पुस्तक मौसम आते जाते हैं से)

तू इस तरह से मेरी ज़िंदग़ी में शामिल है (फ़िल्म आहिस्ता-आहिस्ता)

चुप तुम रहो, चुप हम रहें (फ़िल्म इस रात की सुबह नहीं)

दुनिया जिसे कहते हैं, मिट्टी का खिलौना है (ग़ज़ल)

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी (ग़ज़ल)

अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये (ग़ज़ल)

टीवी सीरियल सैलाब का शीर्षक गीत

पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार

नेशनल हारमनी अवॉर्ड फॉर राइटिंग ऑन कम्युनल हारमनी

स्टार स्क्रीन पुरस्कार

बॉलीवुड मूवी पुरस्कार

मप्र सरकार द्वारा मीर तकी मीर पुरस्कार

खुसरो पुरस्कार

महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का श्रेष्ठतम कवि‍ता पुरस्कार

बिहार उर्दू पुरस्कार

उप्र उर्दू अकादमी पुरस्कार

हिन्दी उर्दू संगम पुरस्कार

मारवाड़ कला संगम द्वारा पुरस्कृत

पंजाब एसोसिएशन के द्वारा नवाजा गया।

कला संगम पुरस्कार से नवाजा गया।

2013 में भारत सरकार ने उन्हे पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया।

मृत्यु

8 फरवरी 2016 को निदा फाजिल का देहांत हो गया।

vese mera naam bhi fazil hai hahahaha

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