niddhand on meri pheli rail gadi ki yatra
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रेल-यात्रा सदैव एक अविस्मर्णीय अनुभव होता है। मैंने रेल से अनेक बार
यात्रा क़ी किन्तु इस बार क़ी रेल-यात्रा मुझे सदैव याद रहेगी।
पिछले सोमवार को मैं लखनऊ से दिल्ली क़ी रेल-यात्रा कर रही थी। मेरे डिब्बे में एक सज्जन खिड़की में पैर फैलाए अख़बार पढ़ रहे थे। वे बहुत सुन्दर चमकीले जूते पहने हुए थे। कभी-कभी वे महाशय इन जूतों को एड़ी में से बाहर कर लेते थे। इस प्रकार बिना ध्यान दिए एक जूता पैर से निकल कर गिर पड़ा। इस पर वह तत्काल उठे उन्होंने दूसरा जूता भी बाहर फ़ेंक दिया। एक साथ वाले सज्जन ने पूछा कि आपने दूसरा जूता क्यों फेंका? यात्री ने उत्तर दिया कि मैं एक जूते का क्या करता। अब दोनों तो किसी के काम आ सकेंगे।
यह सुनकर मुझे आश्चर्य तो हुआ परन्तु साथ ही उनकी सूझ कि प्रशंसा करनी पड़ी। प्रत्येक रेल यात्रा में कुछ न कुछ सीखने को अवश्य मिलता है।
पिछले सोमवार को मैं लखनऊ से दिल्ली क़ी रेल-यात्रा कर रही थी। मेरे डिब्बे में एक सज्जन खिड़की में पैर फैलाए अख़बार पढ़ रहे थे। वे बहुत सुन्दर चमकीले जूते पहने हुए थे। कभी-कभी वे महाशय इन जूतों को एड़ी में से बाहर कर लेते थे। इस प्रकार बिना ध्यान दिए एक जूता पैर से निकल कर गिर पड़ा। इस पर वह तत्काल उठे उन्होंने दूसरा जूता भी बाहर फ़ेंक दिया। एक साथ वाले सज्जन ने पूछा कि आपने दूसरा जूता क्यों फेंका? यात्री ने उत्तर दिया कि मैं एक जूते का क्या करता। अब दोनों तो किसी के काम आ सकेंगे।
यह सुनकर मुझे आश्चर्य तो हुआ परन्तु साथ ही उनकी सूझ कि प्रशंसा करनी पड़ी। प्रत्येक रेल यात्रा में कुछ न कुछ सीखने को अवश्य मिलता है।
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