Hindi, asked by gaurimadigi, 1 month ago

nimnlikhit Kisi Ek Vishay par 80 se 100 shabdon Mein nibandh likhiye yadi Mein shiksha mantri Hota To yah FIR Jal Hai To Jivan hai ​

Answers

Answered by kavitamittal123
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Answer:

agar mein mantri hota

भूमिका : व्यक्ति जब भी अपने जीवन से संतुष्ट होता है तो वह अपने संतुष्टि के कारणों को मिटाने की कोशिश करता है। इसी इच्छा से मनुष्य की उन्नति के भेद का पता चलता हैं। मैं एक विद्यार्थी हूँ तो मेरी ज्यादातर इच्छाएँ मेरी शिक्षा से संबंधित हैं इसलिए मैं कई बार शिक्षा में ऐसे परिवर्तन लाने की कोशिश करता हूँ जिससे हमारी शिक्षा सही अर्थों में उपयोगी बन जाये। जब तक मैं शिक्षा मंत्री नहीं बन जाता तब तक मैं अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकता इसलिए कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि – काश! मैं शिक्षा मंत्री होता।

पाठ्य पुस्तकों का बोझ कम करने : यदि मैं शिक्षा मंत्री होता तो सबसे पहले ये आदेश जारी करता कि पाठ्यक्रमों में किताबों का बोझ कम कर दिया जाये। आज के समय में एक ही विषय की चार-चार किताबें होती हैं विद्यार्थी उन्हें देखकर ही घबरा जाता है और उसे कुछ भी समझ में नहीं आता। विद्यार्थी उन्हें देखकर असमंजस में पड़ जाते हैं कि वे कौन सी पुस्तक को अपनाएं। विद्यार्थियों पर पाठ्यपुस्तकों का बहुत भार होता हमें ज्यादा-से-ज्यादा बोझ को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।

व्यवसाय से जुडी शिक्षा : शिक्षा को व्यवसायिक बनाना जरूरी होता है। आज की वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमे किताबी कीड़ा बनाती है और बाद में बेकार नौजवानों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर देती है। इस व्यवस्था को बदलने के लिए मेहनत और साहस की जरूरत होती है। लेकिन मुझे भरोसा है कि जब मैं शिक्षा मंत्री बन जाउँगा तब मैं अपनी मन की इच्छा को पूरा जरुर करूंगा।भूमिका : व्यक्ति जब भी अपने जीवन से संतुष्ट होता है तो वह अपने संतुष्टि के कारणों को मिटाने की कोशिश करता है। इसी इच्छा से मनुष्य की उन्नति के भेद का पता चलता हैं। मैं एक विद्यार्थी हूँ तो मेरी ज्यादातर इच्छाएँ मेरी शिक्षा से संबंधित हैं इसलिए मैं कई बार शिक्षा में ऐसे परिवर्तन लाने की कोशिश करता हूँ जिससे हमारी शिक्षा सही अर्थों में उपयोगी बन जाये। जब तक मैं शिक्षा मंत्री नहीं बन जाता तब तक मैं अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकता इसलिए कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि – काश! मैं शिक्षा मंत्री होता।

पाठ्य पुस्तकों का बोझ कम करने : यदि मैं शिक्षा मंत्री होता तो सबसे पहले ये आदेश जारी करता कि पाठ्यक्रमों में किताबों का बोझ कम कर दिया जाये। आज के समय में एक ही विषय की चार-चार किताबें होती हैं विद्यार्थी उन्हें देखकर ही घबरा जाता है और उसे कुछ भी समझ में नहीं आता। विद्यार्थी उन्हें देखकर असमंजस में पड़ जाते हैं कि वे कौन सी पुस्तक को अपनाएं। विद्यार्थियों पर पाठ्यपुस्तकों का बहुत भार होता हमें ज्यादा-से-ज्यादा बोझ को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।

व्यवसाय से जुडी शिक्षा : शिक्षा को व्यवसायिक बनाना जरूरी होता है। आज की वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमे किताबी कीड़ा बनाती है और बाद में बेकार नौजवानों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर देती है। इस व्यवस्था को बदलने के लिए मेहनत और साहस की जरूरत होती है। लेकिन मुझे भरोसा है कि जब मैं शिक्षा मंत्री बन जाउँगा तब मैं अपनी मन की इच्छा को पूरा जरुर करूंगा।

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