nimnlikhit padon ki vyakhya kare
(chapter 2 Mirabai class 10)
Answers
Explanation:
1 .
भावार्थ - इस पद में मीराबाई अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण से विनती करते हुए कहती हैं कि हे प्रभु अब आप ही अपने भक्तों की पीड़ा हरे । जिस तरह आपने अपमानित द्रोपदी की लाज उसे चीर प्रदान करके बचाई थी जब दुःशासन ने उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया था । अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह रुप धारण किया था । आपने ही डूबते हए हाथी की रक्षा की थी और उसे मगरमच्छ के मुंह से बचाया था । इस प्रकार आपने उस हाथी की पीड़ा दूर की थी । इन उदाहरणों को देकर दासी मीरा कहतीं हैं की हे गिरिधर लाल ! आप मेरी पीडा भी दूर कर मुझे छुटकारा दीजिये ।
2.
भावार्थ - इन पदों में मीरा भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहती हैं कि हे श्याम ! आप मुझे अपनी दासी बना लीजिये । आपकी दासी बनकर में आपके लिए बाग - बगीचे लगाऊँगी , जिसमें आप विहार कर सकें । इसी बहाने मैं रोज आपके दरशन कर सकूँगी । मैं वृंदावन के कुंजों और गलियों में कृष्ण की लीला के गान करूंगी । इससे उन्हें कृष्ण के नामस्मरण का अवसर प्राप्त हो जाएगा तथा भावपूर्ण भक्ति की जागीर भी प्राप्त होगी । इस प्रकार दर्शन , स्मरण और भाव - भक्ति नामक तीनों बातें मेरे जीवन में रच - बस जाएगी । अगली पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के रूप - सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरे प्रभु कृष्ण के शीश पर मोरपंखों का बना हआ मुकुट सुशोभित है । तन पर पीले वस्त्र सशोभित हैं । गले में वनफूलों की माला शोभायमान है । वे वृन्दावन में गायें चराते हैं और मनमोहक मुरली बजाते हैं । वृन्दावन में मेरे प्रभु का बहुत ऊँचे - ऊँचे महल हैं । वे उस महल के आँगन के बीच - बीच में सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं । वे कुसुम्बी साड़ी पहनकर अपने साँवले प्रभु के दर्शन पाना चाहती हैं । मीरा भगवान कृष्ण से निवेदन करते हए कहती हैं कि हे प्रभु ! आप आधी रात के समय मुझे यमुना जी के किनारे अपने दर्शन देकर कृतार्थ करें । हे गिरिधर नागर ! मेरा मन आपसे मिलने के लिए बहुत व्याकुल है, इसलिए दर्शन देने अवश्य आइएगा ।
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