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अव्यय
इन्हें अविकारी शब्द के नाम से भी जाना जाता है।
अव्यय (अविकारी शब्द)
वे शब्द जिनमें लिंग वचन कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता उन्हें अव्यय कहते हैं।
अव्यय हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है, इनका रूपान्तरण नहीं होता, इसलिए ये शब्द अविकारी होते हैं।
उदाहरण:
हमारे सामने शेर 'अचानक' आ गया।
अब से 'ऐसी' बात नहीं होगी।
राम 'वहाँ टहलता है।
अव्यय मुख्यतः चार प्रकार के होते है:-
क्रियाविशेषण अव्यय
संबंधबोधक अव्यय
समुच्चयबोधक अव्यय
विस्मयादिबोधक अव्यय
निपात अव्यय
क्रियाविशेषण अव्यय
जिन शब्दों से क्रिया या विशेषण की विशेषता प्रकट हो, उन्हें क्रियाविशेषण कहते है।
उदाहरण:
आज मैं वहां जाऊंगा।
क्रियाविशेषणों का वर्गीकरण तीन आधारों पर किया जाता है:-
प्रयोग
रूप
अर्थ
1. प्रयोग के आधार पर तीन प्रकार होते हैं:-
(i) साधारण क्रियाविशेषण:–जिन क्रियाविशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतंत्र होता है, उन्हें साधारण क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
हाय! अब मैं क्या करूं?
बेटा जल्दी घर आओ ।
(ii) संयोजक क्रियाविशेषण:- जिन क्रियाविशेषणों का संबंध किसी उपवाक्य के साथ रहता है, उन्हें संयोजक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
जब मन्नू ही नहीं, तो मैं जी के क्या करूंगी!
जहाँ अभी समुद्र है, वहाँ किसी समय जंगल था।
(iii) अनुबद्ध क्रियाविशेषण:- जिन क्रियाविशेषणों के प्रयोग अवधारण (निश्र्चय) के लिए किसी भी शब्दभेद के साथ होता हो, उन्हें अनुबद्ध क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
यह तो किसी ने धोखा ही दिया है।
मैंने उसे देखा तक नहीं।
2. रूप के आधार पर तीन प्रकार होते हैं:-
(i) मूल क्रियाविशेषण:- जो क्रियाविशेषण दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते, उन्हें मूल क्रियाविशेषण कहते हैं।
इसमें ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
ठीक है, तुम सो जाओ।
मनीष अचानक घर आ गया।
(ii) यौगिक क्रियाविशेषण:- जो क्रियाविशेषण दूसरे शब्दों में प्रत्यय या पद जोडने से बनते हैं, उन्हें यौगिक क्रियाविशेषण कहते हैं।
इसमें जिससे, किससे, चुपके से, देखते हुए, भूल से, यहाँ तक, झट से, कल से इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
मनीष ने चुपके से खाना खा लिया।
सरिता टीवी देखते हुए सो गयी।
(iii) स्थानीय क्रियाविशेषण:- जो क्रियाविशेषण बिना किसी रूपांतर के किसी विशेष स्थान पर आते हैं, उन्हें स्थानीय क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
तुम दौड़कर चलते हो
वह अपना सिर पढ़ेगा
3. अर्थ के आधार पर चार प्रकार होते हैं:-
(i) कालवाचक क्रियाविशेषण:- जिन शब्दों से कालसंबंधी क्रिया की विशेषता का बोध हो , उन्हें कालवाचक क्रियाविशेषण कहते है।
इसमें कल ,आज ,परसों ,जब ,तब सायं इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
कृष्ण कल जाएगा।
मैं परसों खेलने आऊंगा।
(ii) स्थानवाचक क्रियाविशेषण:- जो क्रियाविशेषण क्रिया के होने या न होने के स्थान का बोध कराएँ, उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते है।
इसमें यहाँ ,इधर ,उधर ,बाहर ,आगे ,पीछे ,आमने ,सामने ,दाएँ ,बाएँ इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
उधर मत जाओ।
सामने देखकर चलो।
(iii) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण:- जो क्रियाविशेषण क्रिया के परिमाण मात्रा की विशेषता का बोध कराएँ, उन्हें परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते है।
इसमें जरा, थोड़ा, कुछ, अधिक, कितना, केवल इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
थोड़ा नमक देना।
केवल मैं भूखा हूँ।
(iv) रीतिवाचक क्रियाविशेषण:- जो क्रियाविशेषण क्रिया के होने के ढंग का बोध कराएँ, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते है।
इसमें जोर से, धीरे-धीरे, भली-भाँति, ऐसे, सहसा, सच, तेज, नहीं, कैसे, वैसे, ज्यों, त्यों इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
वह पैदल चलता है।
मैं उसे भली-भाँति जानता हूँ।
संबंधबोधक अव्यय
जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबन्ध बताये वे शब्द सम्बन्धबोधक अव्यय कहलाते है।
इसमें र, पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
वृक्ष के ऊपर पक्षी बैठे है।
धन के बिना कोई काम नही होता।
प्रथम वाक्य में 'ऊपर' शब्द 'वृक्ष और 'पक्षी' के सम्बन्ध को दर्शता है।
दूसरे वाक्य में 'बिना' शब्द 'धन' और 'काम' में सम्बन्ध दर्शता है।
विशेष:- यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सम्बन्धबोधक शब्द को सम्बन्ध दर्शाना आवश्यक होता है।
समुच्चयबोधक अव्यय
जो अविकारी शब्द दो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर मिलाते है, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते है।
दो वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते है।
इसमें यद्यपि, और, अथवा, चूँकि, परन्तु, किन्तु इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
राम और लक्ष्मण दोनों भाई थे।
मोहन ने बहुत परिश्रम किया परन्तु सफल नहीं हुआ।
विस्मयादिबोधक अव्यय
जो शब्द आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा, आशीर्वाद, क्रोध, उल्लास, भय आदि भावों को प्रकट करें, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते है।
इसमें हाय, अरे, शाबाश, उफ, आह, ओहो इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
हाय! अब मैं क्या करूँ?
उफ़ ! कितनी गर्मी है।
शाबाश! तुम पास हो गए।
निपात अव्यय
जो अव्यय किसी शब्द या पद के बाद जुड़कर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल भर देते हैं उन्हें निपात कहते हैं।
इसमें ही ,भी ,तो ,तक ,भर ,केवल, मात्र इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
राम ही लिख रहा है।
तुम तो कल जयपुर जाने वाले थे।
मनीष अभी तक यहीं है।