Note bandi per nibandh in h
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हमारा भारत पहला देश नहीं है जहाँ पर नोटबंदी हुई है। भारत में पहली बार वर्ष 1946 में 500, 1000, और दस हजार के नोटों की नोटबंदी की गई थी। मोरारजी में भी जनवरी, 1978 में 1000, 5000, और 10000 के नोटों को बंद किया गया था | भारत में 2005 में मनमोहन सिंह की सरकार ने भी 2005 से पहले के 500 के नोटों को बदलवा दिया था।जब यूरोप यूनियम बना तब उन्होंने यूरो नाम की नई करेंसी चलाई थी तब सारे पुराने नोट बैंकों में जमा करवाए गये थे। यूरोप में हुई इस नोटबंदी ने यूरोप में बवाल मचा दिया था लेकिन शायद भारत में हुआ उतना नहीं। जिम्बाब्वे में भी महंगाई से बचने के लिए 2015 में नोटबंदी का प्रयोग किया गया था। भारत में पहले भी नोटबंदी हुई थी परंतु वह इतनी प्रसिद्ध नहीं हुई थी।आज हम छोटे सिक्कों जैसे 5, 10, 20, 50, 100 पैसों का प्रयोग नहीं करते हैं उन्हें भी बंद किया गया था। लेकिन 500 और 1000 के नोटों की नोटबंदी की कहानी ही अलग है। इन दो करेंसी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के 86% भाग को काबिज किया था यही नोट बाजार में सबसे अधिक चलते थे। इसी वजह से इसका इतना बड़ा बवाल और परिणाम हुआ। 8 नवम्बर, 2016 को 8:15 बजे 500 और 1000 के नोटों की नोटबंदी की घोषणा की गई। लोगों को आशा थी कि प्रधानमंत्री जी भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली नोक-झोक की बात करेंगे लेकिन नोटबंदी की घोषणा ने तो सभी को हिला कर रख दिया।कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री जी का समर्थन किया तो कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री जी का विरोध किया और नोटबंदी को खारिज करने की मांग की लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिन लोगों ने काले धन को छिपा कर रखा हुआ था वो सुनारों के पास जाकर उस धन से सोना खरीदने लगे। नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन से ही बैंकों और एटीएम के बाहर लाईने लगनी शुरू हो गयीं।सरकार ने काला धन निकालने के लिए बहुत प्रयत्न किये जैसे – बैंकों में नोटों को बदलवाने की संख्या में घटा-बढ़ी की गई, नए-नए कानून बनाए गये, नियमों को सख्ती से लागू किया गया। सरकार ने अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए 50 दिन का समय माँगा। पुराने नोटों को बदलने के लिए 500 और 2000 के नए नोटों को चलाया गया।