ओ नभ में मंडराते बादल' कविता ka सार
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ओ नभ में मंडराते बादल' कविता का सार
ओ नभ में मंडराते बादल' कविता रामेश्वर शुक्ल ’अंचल’ जी द्वारा लिखी गई है|
कविता में कवि बादलों से अनुरोध कर रहे हैं कि वह बिना बरस के न जाए वह धरी पर बरसे सभी लोग उनका इंतजार कर रहे है और आपके बरसने से उनके होंठों में मुस्कान वापिस आएगी|
पशु-पक्षी अपनी प्यास भुजाने के लिए इंतजार कर रहे है , उनकी प्यास बुझाए | किसान अपनी खेती के लिए आपका इंतजार कर रहा है | सब गर्मी से तप रहे है , धरती पर आओ बादल और सब शीतलता प्रदान करो|
बहुत से कारणों से बादलों को बरसने का की प्रार्थना कर रहे है जिससे प्रकृति और मनुष्य को तपती गर्मी से राहत मिल सके और उन्हें जीवन की खुशियाँ प्राप्त हों।
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Answer oh no Memon rate Badal ka sar
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