ओ नए साल, कर कुछ कमाल,
जाने वाले को जाने दे,
दिल से अभिनंदन करते हैं,
कुछ नई उमंगें आने दे।
आने-जाने से क्या डरना,
ये मौसम आते-जाते हैं
तन झुलसे शिखर दुपहरी में,
कभी बादल भी छा जाते हैं।
इक वह मौसम भी आता है,
जब पत्ते भी गिर जाते हैं,
हर मौसम को मनमीत बना,
नवगीत खुशी के गाने दे।
जो भूल हुई जा भूल उसे, अब आगे भूल सुधार तो कर,
बदले में प्यार मिलेगा भी,
पहले औरों से प्यार तो कर
फूटेंगे प्यार के अंकुर भी,
वह ज़मीं ज़रा तैयार तो कर,
भले जीत का जश्न मना,
पर हार को भी स्वीकार तो कर,
मत नफ़रत के शोले भड़का,
बस गीत प्यार के गाने दे।
इस दुनिया में लाखों आए
और आकर वे सब चले गए,
कुछ मालिक बनकर बैठ गए,
कुछ माल पचाकर चले गए, कुछ किलों के अंदर बंद रहे,
कुछ किले बनाकर चले गए,
लेकिन कुछ ऐसे भी आए,
जो शीश चढ़ाकर चले गए,
उन वीरों के पद-चिह्नों पर,
अब 'साथी' सुमन चढ़ाने दे।
(क) मौसम के आने - जाने से क्या अनभप्राय है?
(ख) दुनिया में कैसे-कैसे लोग आए और चले गए ?
(ग) कवि नए साल से क्या कामना कर रहे हैं ?
(घ) ‚भले जीत का जश्न मना ---------------------- ‛ पंक्ति में कवि क्या प्रेरणा दे रहे हैं ?
(ङ) ‘जो शीश चढ़ाकर चले गए ’---- यह पंक्ति किनकी ओर संकेत कर रही है?
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