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संगति का अर्थ होता है साहचर्य या साथ। मनुष्य अपने दैनिक जीवन में जिसके साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करता है, वही उसकी संगति कहलाती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह बिना संगति के जी नहीं सकता। अब यह एक विचारणीय प्रश्न है कि मानव किसके साथ संगति करे और किसके साथ न करे। क्योंकि संगति से ही गुण और दोष उत्पन्न होते हैं। ‘संसर्ग जः दोषगुणाः भवन्ति।’ एक अंग्रेज चिन्तक का विचार है- ‘किसी व्यक्ति की पहचान उसकी संगति से होती है।
संगति दो प्रकार की होती है- सुसंगति और कुसंगति। सज्जनों की संगति सुसंगति कहलाती है और दूर्जनों की संगति कुसंगति कहलाती है। सुसंगति मनुष्य को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती है और कुसंगति कुमार्ग की ओर। इसलिए साधुओं की संगति में रहने वाले साधु बनते हैं और दुष्टों की संगति में रहने वाले दुष्ट। गोस्वामी जी लिखते हैं-
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