ऑगण हटी बया रसाने की भाव ने
(के) आँगन में बमाना (ग) अत्यंत निकत खना
(ख) कुटिया में रखना (घ) बराकर ले जा जाना
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ख ) कुटिया में रखना
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भावार्थ:-अब मैं संत और असंत दोनों के चरणों की वन्दना करता हूँ, दोनों ही दुःख देने वाले हैं, परन्तु उनमें कुछ अन्तर कहा गया है। वह अंतर यह है कि एक (संत) तो बिछुड़ते समय प्राण हर लेते हैं और दूसरे (असंत) मिलते हैं, तब दारुण दुःख देते हैं। (अर्थात् संतों का बिछुड़ना मरने के समान दुःखदायी होता है और असंतों का मिलना।)॥
उत्तर (क:) जिस प्रकार चंदन का लेप लगाने पर सारे अंग सुगंधित हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार ईश्वर की भक्ति पूरे शरीर में समाकर शरीर और मन दोनों को ही पवित्र कर देती हैं ।
उत्तर (ख:) जिस प्रकार चकोर पक्षी रात भर चंद्रमा की ओर टकटकी लगाए देखता रहता है और सुबह होने की प्रतीक्षा करता है। ठीक उसी प्रकार भक्त एकटक ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है ताकि उसकी कृपा को पा सके
उत्तर (ग:) कवि प्रभु के प्रति अपनी भक्ति को दीए और बाती की तरह देखता है उसका कहना है कि जिस प्रकार दिए की बाती जलकर प्रकाशित करती है ठीक उसी प्रकार आपकी भक्ति रूपी दिया दिन-रात जलकर मुझे अंदर से प्रकाशित करता रहता है।
उत्तर (घ:) कवि प्रभु को का आभार प्रकट करते हुए कह रहा है कि आप ही हैं जो इतनी उदारता दिखा सकते हैं। आप निडर होकर सभी का कल्याण करने वाले हैं।
उत्तर (ड:) कवि का कहना है कि मेरे प्रभु समाज में नीच समझे जाने वाले लोगों को ऊँचा करने वाले अर्थात् समाज में सम्मान दिलाने वाले हैं और ऐसा करते समय वह किसी से भी नहीं डरने वाले हैं।