ऑनलाइन शिक्षा विद्यार्थियों और अध्यापकों दोनो के लिए चुनौती पूर्ण किया प्रकार है (100 - 150 शब्द)
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प्रमुख बिंदु
COVID-19 महामारी के कारण देश भर में ऑनलाइन शिक्षा का महत्त्व काफी बढ़ गया है, किंतु सामाजिक असमानता और डिजिटल डिवाइड (Digital Divide) ऑनलाइन शिक्षा के समक्ष अभी भी बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development- MHRD) के अंतर्गत स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (Department of School Education and Literacy) के अनुमानानुसार, महामारी के कारण बंद हुए स्कूलों को फिर से खोलने के लिये स्वच्छता और क्वारंटाइन उपायों हेतु प्रति स्कूल 1 लाख रुपए तक खर्च करने की आवश्यकता होगी।
लगभग 3.1 लाख सरकारी स्कूलों, जिनके पास सूचना व संचार तकनीक (ICT) सुविधाएँ नहीं हैं, को ऐसी सुविधाओं से लैस करने के लिये केंद्र सरकार 55,840 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तावित करेगी।
MHRD ने आगामी पाँच वर्षों में डिजिटल पाठ्यक्रम सामग्री और संसाधनों के विकास एवं अनुवाद पर 2,306 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव किया है।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2026 तक देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले लगभग 4.06 करोड़ छात्रों (देश की कुल छात्र संख्या का लगभग 40 प्रतिशत) को लैपटॉप और टैबलेट प्रदान करने की भी योजना बनाई है तथा इस कार्य के लिये कुल 60,900 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया है।
स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के अनुसार, केंद्र और राज्य उपकरण उपलब्ध कराने की लागत को फिलहाल 60:40 के अनुपात में साझा करेंगे।
ऑनलाइन शिक्षा और COVID-19
ध्यातव्य है कि देश में COVID-19 और इसके नियंत्रण हेतु लागू किये गए लॉकडाउन के कारण शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों की गतिविधियाँ गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, विश्व में COVID-19 के किसी प्रमाणिक उपचार के अभाव में इस बीमारी के प्रसार को रोकना ही सबसे बेहतर विकल्प होगा, ऐसे में हमें अपनी दैनिक गतिविधियों में इसी के अनुरूप परिवर्तन करने होंगे।
भारत में लॉकडाउन की शुरुआत से ही लगभग सभी शिक्षण संस्थाएँ शैक्षणिक कार्यों के लिये ऑनलाइन शिक्षा (Online Education) अथवा ई-लर्निंग को एक विकल्प के रूप में प्रयोग कर रही हैं, ऐसे में देश की आम जनता के बीच ऑनलाइन शिक्षा की लोकप्रियता में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
हालाँकि जहाँ एक ओर कई विशेषज्ञों ने मौजूदा महामारी के दौर में ऑनलाइन शिक्षा अथवा ई-लर्निंग को महत्त्व को स्वीकार किया है, वहीं कुछ आलोचकों का मत है कि ऑनलाइन शिक्षा, अध्ययन की पारंपरिक पद्धति का स्थान नहीं ले सकती है।
ई-लर्निंग अथवा ऑनलाइन शिक्षा
ई-शिक्षा से तात्पर्य अपने स्थान पर ही इंटरनेट व अन्य संचार उपकरणों की सहायता से प्राप्त की जाने वाली शिक्षा से है। ई-शिक्षा के विभिन्न रूप हैं, जिसमें वेब आधारित लर्निंग, मोबाइल आधारित लर्निंग या कंप्यूटर आधारित लर्निंग और वर्चुअल क्लासरूम इत्यादि शामिल हैं।
ऑनलाइन शिक्षा की सीमाएँ और चुनौतियाँ
COVID-19 महामारी से पूर्व भारतीय के अधिकांश शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन शिक्षा का कोई विशेष अनुभव नहीं रहा है, ऐसे में शिक्षण संस्थानों के लिये अपनी व्यवस्था को ऑनलाइन शिक्षा के अनुरूप ढालना और छात्रों को अधिक-से-अधिक शिक्षण सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती होगी।
वर्तमान समय में भी भारत में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुत कमी है, देश में अब भी उन छात्रों की संख्या काफी सीमित है, जिनके पास लैपटॉप या टैबलेट कंप्यूटर जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अतः ऐसे छात्रों के लिये ऑनलाइन कक्षाओं से जुड़ना एक बड़ी समस्या है।
शिक्षकों के लिये भी तकनीक एक बड़ी समस्या है, देश के अधिकांश शिक्षक तकनीकी रूप से इतने प्रशिक्षित नहीं है कि औसतन 30 बच्चों की एक ऑनलाइन कक्षा आयोजित कर सकें और उन्हें ऑनलाइन ही अध्ययन सामग्री उपलब्ध करा सकें।
इंटरनेट पर कई विशेष पाठ्यक्रमों या क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़ी अध्ययन सामग्री की कमी होने से छात्रों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
कई विषयों में छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा (Practical Learning) की आवश्यकता होती है, अतः दूरस्थ माध्यम से ऐसे विषयों को सिखाना काफी मुश्किल होता है।
आगे की राह
शिक्षण क्षेत्र पर COVID-19 और लॉकडाउन के प्रभाव ने शिक्षण संस्थाओं को शिक्षण माध्यमों के नए विकल्पों पर विचार करने हेतु विवश कर दिया है।
भारत में ई-शिक्षा अपनी शैशवावस्था में है, आवश्यक है कि इसकी राह में मौजूद विभिन्न चुनौतियों को संबोधित कर ई-शिक्षा के रूप में एक नए शिक्षण विकल्प को बढ़ावा दिया जाए।
टेलीविज़न और रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से देश के दूरस्थ भागों में स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में भी लॉकडाउन के दौरान शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।
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