ओमद्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा 'जूठन' का सार बताते हुए इस आत्मकथा के विषय
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मेरी सलाह है कि आप ओम प्रकाश वाल्मीकि (30 जून 1950-17 नवंबर, 2013) की आत्मकथा जूठन जरूर पढ़ें. दिलचस्प है कि आर्टिकल 15 के लीड एक्टर आयुष्मान खुराना ने एक इंटरव्यू में ये कहा है कि इस रोल की तैयारी करने के क्रम में उन्होंने जूठन किताब को पढ़ा और उन्हें कई रातों तक नींद नहीं आई. कल्पना कीजिए उस व्यक्ति के बारे में जिसने ये जिंदगी जी होगी.
‘जूठन’ का नायक किसी मिथकीय महाकाव्य का अवतारी पुरुष नहीं है. वह सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की राम की शक्तिपूजा का राम नहीं है, न ही मुक्तिबोध की अंधेरे में कविता का सर्वहारा नायक है. वह आधुनिक युग के प्रेमचंद रचित महाकाव्य गोदान का होरी भी नहीं है; अज्ञेय का शेखर होने का सवाल ही नहीं उठता, न ही वह हावर्ड फास्ट के उपन्यास आदिविद्रोही का स्पार्टकस है; न ही गोर्की के उपन्यास मां का पावेल है.
इसमें से कुछ भी होने के लिए इंसान होने का औपचारिक दर्जा प्राप्त होना जरूरी है. इनमें से कोई भी किरदार ऐसा नहीं, जिसका स्पर्श भी वर्जित रहा हो, जिसे खुद ईश्वर ने शास्त्रों के जरिए मानव होने के सभी अधिकारों से वंचित किया हो. किसी ऐतिहासिक महानायक से यदि ‘जूठन’ का नायक मेल खाता है, तो वह डॉ. आंबेडकर हैं. जूठन के प्रकाशन के 22 साल बाद भी ओम प्रकाश वाल्मीकि की ये आत्मकथा आज भी आलोड़न पैदा करती है.
इसे ‘जूठन’ नाम हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने दिया था. पहले खंड की लोकप्रियता का आलम यह है कि अब तक इसके तेरह संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और 2015 में पहली बार प्रकाशित होने वाले दूसरे खंड के भी चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं. ‘जूठन’ का देश और दुनिया की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ. कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया गया. इस पर बहुत सारे शोध-कार्य हुए.