Hindi, asked by priyabhalerao123456, 18 days ago

ॐ यज्जाग्रतो दूरभुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति ।
दूरक्रमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥1॥ meaning ​

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Answered by amansingh17576
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Answer:

यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति । दूरड्गमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।। ऋषि कहते हैं कि जागृत अवस्था में मन दूर दूर तक गमन करता है । सदैव गतिशील रहना उसका स्वभाव है और उसकी गति की कोई सीमा भी नहीं है ।

Answered by krithikasmart11
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Answer:

जो वस्तु जागे हुए व्यक्ति से दूर होती है, वह सोए हुए व्यक्ति के ठीक सामने होती है.

दूर का क्रम प्रकाश का एक प्रकाश है, और वह मेरे मन का शिव-संकल्प हो सकता है

Explanation:

•,जो वस्तु जागे हुए व्यक्ति से दूर होती है, वह सोए हुए व्यक्ति के ठीक सामने होती है.

दूर का क्रम प्रकाश का एक प्रकाश है, और वह मेरे मन का शिव-संकल्प हो सकता है उसी प्रकार निद्रा की अवस्था में जो इतनी दूर से वापस आता है, सभी ज्योतियों में प्रकाश, वही मन.मन और आत्मा में हमेशा शिव का विचार रहेगा।

• जो व्यक्ति ईश्वर से अनुमति और आज्ञा लेता है, वह अपने साथ इतनी सारी शक्तियां लाएगा से मन को शुद्ध करता है विद्वानों की संगति, जो जाग्रत अवस्था में, विस्तृत व्यवहार के साथ वही मन नींद की स्थिति में शांत होना,विषय में तेजी से ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधन होने के कारण इंद्रियों को प्रवर्तक मन को नियंत्रित करते हैं, अशुभ व्यवहार को छोड़कर मन को अच्छे व्यवहार में बदल सकते हैं।

#SPJ2

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