on nature short story for 6 gread in hindi
Answers
एक प्रसिद्ध ज़ेन मंदिर में स्थित बगीचे की देखरेख एक पुजारी करता था। उसे यह काम इसलिये दिया गया था क्योंकि उसे फूलों, झाड़ियों और पेड़ों से प्यार था। इस मंदिर के पास एक और छोटा मंदिर था, जहाँ एक बूढ़े ज़ेन गुरु रहते थे।
एक दिन, जब पुजारी को कुछ विशेष मेहमानों के आने की उम्मीद थी, तब उसने बगीचे की अतिरिक्त देखभाल की थी। उसने घासफूस निकाली, झड़ियों की छंटनी की, पौधों को संवारा और सावधानी एवं ध्यानपूर्वक सूखी शरद ऋतु की सभी पत्तियों को व्यवस्थित करने में एक लंबा समय बिताया। जब वह काम कर रहा था तब दोनों मंदिरों अलग करती दीवार के उस पार से बूढ़े गुरु उसे उत्सुकता के साथ देख रहे थे।
जब वह काम समाप्त कर चुका, तब पुजारी ने थोड़ी देर खड़े होकर अपने काम को प्रशंसापूर्वक देखा। "यह सुंदर है कि नहीं" उसने बूढ़े गुरु से पूछा। "है," बूढ़े आदमी ने कहा, "लेकिन कुछ कमी है। मुझे इस दीवार को पार करने में मदद करो और मैं ठीक उसे ठीक करता हूँ।" थोड़ी झिझक के बाद, पुजारी ने बूढ़े गुरु को उठाया और उसे नीचे उतार लिया। धीरे-धीरे, गुरु बगीचे के बीच में स्थित पेड़ के पास गये, उसे तने द्वारा पकड़ कर हिलाया। पूरे बगीचे में पत्तियां बौछार के रूप नीचे गिरने लगीं। बूढ़े गुरु ने कहा,"तुम मुझे वहाँ रख सकते हैं
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IN HINDI
संसार के अग्रणी वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन को वर्ष 1921 में भौतिकी के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह जीवन के अंतिम समय तक नई-नई खोजों में तो लगे ही रहे, ईश्वर के प्रति भी उनकी अटूट निष्ठा बनी रही।
एक बार आइंस्टीन बर्लिन हवाई अड्डे से विमान में सवार हुए। वायुयान जब ऊपर पहुँचा, तो उन्होंने अपनी जेब से एक माला निकाल ली। उनकी बगल की सीट पर बैठे एक युवक ने यह देखा, तो वह आश्चर्य में पड़ गया।
उसने धीरे से उनसे कहा, ‘आज हमारे युग में अनेक वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं। आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिकों का युग है और आप जैसा युवक माला जपकर दकियानूसी होने का परिचय दे रहा है।’
उस युवक ने अपना कार्ड निकालकर उन्हें दिखाया और बोला, ‘मैं अंधविश्वास और ईश्वर के अस्तित्व के विरुद्ध अभियान में लगा हूँ। आप भी इसमें सहयोग करें। ‘
आइंस्टीन उस युवक की बातें सुनकर मुसकराए और अपना कार्ड निकालकर उसे दिया । कार्ड पर जैसे ही उसने ‘अलबर्ट आइंस्टीन’ शब्द पढ़ा, तो हक्का-बक्का रह गया।वह तुरंत श्रद्धापूर्वक उनके चरणों में झुक गया। वर्ष 1930 में जब गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर आइंस्टीन से मुलाकात करने बर्लिन गए, तो उस भेंट में दोनों महापुरुषों ने ईश्वर और धर्म के संबंध में चर्चा की थी ।
आइंस्टीन ने कहा था, ‘मैं ईश्वर के अस्तित्व की अनुभू कर चुका हूँ। अतः गर्व से अपने को धार्मिक कहता हूँ।’
IN ENGLISH
Once upon a time, a boy was walking through a wood and he thought he could hear a sad cry, as though someone was crying while singing. Following the sound he came to a big, round, mysterious, grey fountain. The sad sobbing seemed to be coming from the fountain pool. The boy swept aside the pool's dirty surface water and saw a group of grey fish swimming in a slow circle through the pond. With each lap they made, their little voices opened and out came the sobbing sound.
Amused by this, the boy tried to catch one of these incredible talking fish. But when he stuck his arm into the water it turned grey right up to the elbow. As this happened, a huge sadness entered into him, and he suddenly understood how sorrowful the fish was feeling. He felt just like the earth on his arm; dirty and contaminated.
He quickly pulled his arm out of the water, and ran from that place. But the arm stayed grey, and the boy continued feeling sad. He tried so many times to cheer himself up, but nothing worked. That was, until he realised that if he were to make the Earth happy then that happiness would be, in turn, transmitted back to him, through the earth on his arm.
From then on he set about looking after the countryside. He cared for the plants, he did what he could to keep the water from being polluted, and he encouraged others to do the same. He was so successful that his hand started to recover its normal colour. When the grey had disappeared completely, he started feeling happy again, and he decided to go and visit the fountain. When he was still some way from the fountain he could hear the fish singing happy hymns, and he heard them joyfully splashing in the crystal clear waters of that magic fountain.
It was plain to see that the Earth had returned to its original happiness; and the boy felt even happier at the sight.