Hindi, asked by avanthikaavi4390, 1 year ago

One page short stories with moral of tenali rama krishna in hindi

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Answered by Smritipriya
8
एक गर्मी की रात, जब तेनाली रामा और उसकी पत्नी सो रहे थे, तो उन्होंने बाहर की ओर से पेड़ के पत्तियों की एक सशक्त आवाज सुनाई दी।

उस समय थोड़ी सी भी हवा चल नहीं रही थी, इसलिए उसने सोचा कि कुछ चोर झाड़ियों में छिपे होंगे। उन्होंने सोचा कि वे रात में उनके घर को लूटने की योजना बना रहे होंगे।

तेनाली रामा एक योजना के बारे में सोचा और अपनी पत्नी से कहा की मैंने सुना है कि कुछ कुख्यात चोर हमारी पड़ोस में ढीले हैं। तो, हम सभी गहने और धन को हमारे घर के बहार कुँए में छिपा देते है।



थोड़ी देर बाद, तेनाली रामा और उनकी पत्नी एक बड़े बर्तन को लेकर घर से निकल पड़ी, और उसे कुएं में गिरा दिया तब वे घर के अंदर वापस चले गए, और सो जाने का नाटक कर रहे थे।

चोर ये सब देखते रहे और तेनाली रामा और उसकी पत्नी के घर में जाने के बाद कुँए से पानी निकालने लगे जिससे वो कुँए में डाला हुआ सोना निकाल सके

वे कुँए को अच्छी तरह से खाली करने और खजाना पाने की आशा रखते थे। चोर पूरी रात पानी बाहर खींचते रहे। सुबह होते वे बर्तन को बाहर निकालने में कामयाब रहे, और जब उन्होंने इसे खोला, तो वे बहुत ही चौंक गए और निराश थे कि इसमें केवल कुछ बड़े पत्थरों ही थे।

चोर समज गए कि यह तेनाली रामा की योजना थी। बस तब, तेनाली रमन अपने घर से निकल गए और कहा, मेरे दोस्तों को धन्यवाद, मेरे पौधों को पानी देने के लिए। मुझे आपके श्रम के लिए आपको भुगतान करना होगा।

सिख: यह कहानी से हमको सिख मिलती है की गंभीर परिस्थितियों में अपनी बुद्धि का उपयोग कर आप हर मुसीबत से बहार निकल सकते है।✌✌

Answered by amber123
8
एक बार राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक महान विद्वान आया। उसने वहां दरबार में उपस्थित सभी विद्वानों को चुनौती दी कि पूरे विश्व में उसके समान कोई बुद्धिमान व विद्वान नहीं है। 

उसने दरबार में उपस्थित सभी दरबारियों से कहा कि यदि उनमें से कोई चाहे तो उसके साथ किसी भी विषय पर वाद-विवाद कर सकता है, परंतु कोई भी दरबारी उससे वाद-विवाद करने का साहस न कर सका। 

अंत में सभी दरबारी सहायता के लिए तेनालीराम के पास गए। तेनालीराम ने उन्हें सहायता का आश्वासन दिया और दरबार में जाकर तेनाली ने विद्वान की चुनौती स्वीकार कर ली। दोनों के बीच वाद-विवाद का दिन भी निश्चित कर दिया गया।

निश्चित दिन तेनालीराम एक विद्वान पंडित के रूप में दरबार पंहुचा। उसने अपने एक हाथ में एक बड़ा-सा गट्ठर ले रखा था, जो देखने में भारी पुस्तकों के गट्ठर के समान लग रहा था। 

शीघ्र ही वह महान विद्वान भी दरबार में आकर तेनालीराम के सामने बैठ गया। 

पंडितरूपी तेनालीराम ने राजा को सिर झुकाकर प्रणाम किया और गट्ठर को अपने और विद्वान के बीच में रख दिया, तत्पश्चात दोनों वाद-विवाद के लिए बैठ गए।

राजा जानते थे कि पंडित का रूप धरे तेनालीराम के मस्तिष्क में अवश्य ही कोई योजना चल रही होगी इसलिए वे पूरी तरह आश्वस्त थे। अब राजा ने वाद-विवाद आरंभ करने का आदेश दिया।

पंडित के रूप में तेनालीराम पहले अपने स्थान पर खड़ा होकर बोला, 'विद्वान महाशय! मैंने आपके विषय मैं बहुत कुछ सुना है। आप जैसे महान विद्वान के लिए मैं एक महान तथा महत्वपूर्ण पुस्तक लाया हूं जिस पर हम लोग वाद-विवाद करेंगे।'

तेनालीराम के अनुसार वह विद्वान तो आज के वाद-विवाद के लिए पिछले कई दिनों से प्रतीक्षा कर रहा था, परंतु अतिथि की इच्छा का ध्यान रखना तेनाली का कर्तव्य था इसलिए वह सरलता से मान गया। परंतु वाद-विवाद में हारने के भय से वह विद्वान नगर छोड़कर भाग गया।

अगले दिन प्रातः जब विद्वान शाही दरबार में उपस्थित नहीं हुआ तो तेनालीराम बोला, 'महाराज, वह विद्वान अब नहीं आएगा। वाद-विवाद में हार जाने के भय से लगता है, वह नगर छोड़कर चला गया है।'

'तेनाली, वाद-विवाद के लिए लाई गई उस अनोखी पुस्तक के विषय में कुछ बताओ जिससे कि डरकर वह विद्वान भाग गया?' राजा ने पूछा।

'महाराज, वास्तव में ऐसी कोई भी पुस्तक नहीं है। मैंने ही उसका यह नाम रखा था। 

‘तिलक्षता महिषा बंधन’, इसमें ‘तिलक्षता' का अर्थ है ‘शीशम की सूखी लकड़ियां’ और ‘महिषा बंधन' का अर्थ है, ‘वह रस्सी जिससे भैंसों को बांधा जाता है।’ 

मेरे हाथ में वह गट्ठर वास्तव में शीशम की सूखी लकड़ियों का था, जो कि भैंस को बांधने वाली रस्सी से बंधी थीं। उसे मैंने मलमल के कपड़े में इस तरह लपेट दिया था ताकि वह देखने में पुस्तक जैसी लगे।'

तेनालीराम की बुद्धिमता देखकर राजा व दरबारी अपनी हंसी नहीं रोक पाए। राजा ने प्रसन्न होकर तेनालीराम को ढेर सारा पुरस्कार दिया।

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